प्रदूषण का शिकार यमुना; फोटो: प्रभात कुमार 
नदी

अतिक्रमण से जूझती यमुना: अदालती आदेशों का नहीं किया गया पालन, एनजीटी की फटकार

17 अक्टूबर, 2019 को दिए अपने आदेश में एनजीटी ने कहा था नदी के बाढ़ के मैदानों पर कब्जा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि इसकी वजह से नदी पारिस्थितिकी को नुकसान हो सकता है।

Susan Chacko, Lalit Maurya

पिछले कई वर्षों में कई आदेशों के बावजूद, दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (डीडीए) जैसे प्राधिकरणों ने दिल्ली में यमुना को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए अपेक्षित कदम नहीं उठाए हैं, यह बात नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) ने छह फरवरी 2025 को दिए अपने आदेश में कही है।

डीडीए ने नई रिपोर्ट दाखिल करने और अदालती आदेशों का पालन करने के प्रयासों का खुलासा करने के लिए एनजीटी से तीन सप्ताह का समय मांगा है। इस मामले में अगली सुनवाई 4 अप्रैल, 2025 को होगी।

17 अक्टूबर, 2019 को दिए अपने आदेश में एनजीटी ने कहा था नदी के बाढ़ के मैदानों पर कब्जा करने की अनुमति नहीं दी जा सकती, क्योंकि इसकी वजह से नदी पारिस्थितिकी को नुकसान हो सकता है।

इस मामले में यमुना को अतिक्रमण मुक्त रखने का निर्देश दिया गया है। इसके साथ ही अदालत ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) और वन विभाग को कानून के अनुसार कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया था।

पांच सालों में भी नहीं हुआ आदेश पर अमल

आवेदक के मुताबिक इस मामले में पांच साल से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन अब तक ट्रिब्यूनल के आदेश का पालन नहीं किया गया है। इसी वजह से  निष्पादन आवेदन के माध्यम से, आवेदक ने एनजीटी से 17 अक्टूबर, 2019 के आदेश का पालन सुनिश्चित करने के लिए आदेश जारी करने का अनुरोध किया है।

ऐसे में न्यायाधिकरण ने न केवल दिल्ली में यमुना डूब क्षेत्र से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया है, साथ ही 8 अप्रैल, 2024 को दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश का भी पालन करने का निर्देश दिया है। अपने इस आदेश में उच्च न्यायालय ने भी डीडीए को सभी संबंधित एजेंसियों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि अतिक्रमण को हटाया जाए।

इसके साथ ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने डीडीए के उपाध्यक्ष को एक अन्य आदेश में यमुना नदी तट, नदी तल और नदी में गिरने वाले नालों पर मौजूद सभी प्रकार अतिक्रमण और अवैध निर्माण हटाने का भी निर्देश दिया था।

एनजीटी ने यह भी कहा है कि दो जनवरी, 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने उसके इस विचार से सहमति जताई थी कि यमुना डूब क्षेत्र को न केवल जनता बल्कि पर्यावरण के फायदे के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए।