राजीव रंजन मिश्रा राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के पूर्व महानिदेशक रहे हैं 
नदी

क्यों बची चंबल नदी!

बड़े पैमाने पर घने जंगल और बीहड़ इलाकों ने नदी किनारे शहरीकरण होने से न केवल बचाया बल्कि उन नगरों के औद्योगिकीकरण के प्रदूषण से भी सुरक्षित किया

Rajiv Ranjan Mishra

हम अक्सर प्रदूषित और पारिस्थितिक रूप से खराब नदियों के बारे में ही सुनते आए हैं। इस मामले में चंबल नदी आश्चर्यजनक रूप से एक अलग नदी के रूप में जानी और पहचानी जाती है। मध्य प्रदेश (एमपी), राजस्थान और उत्तर प्रदेश (यूपी) से गुजरने वाली 965 किलोमीटर लंबी चंबल नदी काफी हद तक एक स्वच्छ नदी के रूप में आज भी जानी जाती है। यह नदी अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व, महान प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता मूल्यों के लिए प्रसिद्ध है। अतीत में डाकुओं के ठौर के रूप में जानी जाने वाली क्षेत्र से जानी जाने वाली चंबल वास्तव में ईको-पर्यटन का स्वर्ग है।

चंबल नदी विंध्य की ढलानों पर मध्य प्रदेश के महू के दक्षिण में मांडव के पास जानापाव की पहाड़ियों से निकलती है। नदी मध्य प्रदेश के उत्तर-उत्तरपूर्व में बहती है। कुछ समय के लिए यह नदी राजस्थान से होकर भी गुजरती है, फिर राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच सीमा बनाती है और फिर दक्षिण-पूर्व की ओर मुड़कर यूपी में यमुना नदी में समाहित हो जाती है। ऐसी कहानियां प्रचलित हैं जो हमें बताती हैं कि राजा रंतिदेव द्वारा बलि दिए गए मवेशियों के खून से इसकी उत्पत्ति हुई थी।

लोक कथाओं में इस नदी के तट पर पांडवों द्वारा इसके खेले गए जुए में हारने की घटना से जोड़ती हैं, जिसके कारण द्रौपदी का अपमान हुआ था। और तब द्रोपदी ने चंबल को शाप दिया था कि जो कोई भी इसका पानी पीएगा, वह प्रतिशोध की आग में भर जाएगा। इस शाप के कारण कोटा शहर को छोड़कर नदी के किनारे कोई भी बड़ा शहर नहीं बसा है। इससे कोई भी यह सोचने के लिए मजबूर हो सकता है कि अतीत में शायद इस शाप के कारण बड़े पैमाने पर घने जंगल और बीहड़ इलाकों ने नदी किनारे शहरीकरण होने से न केवल बचाया xबल्कि उन नगरों के औद्योगिकीकरण के प्रदूषण से भी सुरक्षित किया। हालांकि, यह भविष्य में नदी को बचाने के लिए यह कारण पर्याप्त नहीं हो सकता है। वर्तमान और भविष्य के खतरों का पता लगाने से पहले चंबल के महत्वपूर्ण और अद्वितीय महत्व को समझना महत्वपूर्ण है।

चंबल यमुना की सबसे बड़ी सहायक नदी है और वास्तव में यमुना को पुनर्जीवित करने में इसका अहम योगदान है। इसलिए इसका गंगा बेसिन में अद्वितीय स्थान है। यमुना जो दिल्ली और आगे आगरा तक अपने विस्तार में घातक रूप से प्रदूषित है। ऐसे विपरीत हालात में उसे चंबल से जीवनदायी स्वच्छ मीठा पानी मिलता है। यह पुनर्जीवित यमुना प्रयागराज में पवित्र संगम पर पहुंचकर गंगा नदी में प्रवाह को और बेहतर बनाने के लिए आवश्यक पानी लाती है। इसलिए गंगा बेसिन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका पर ज्यादा जोर देने की जरूरत नहीं है। कोई आश्चर्य कर सकता है कि क्या चंबल को मिला अभिशाप यमुना और इसलिए गंगा के लिए वरदान है?

चंबल, अपनी अनूठी पारिस्थितिकी के साथ, अत्यधिक संकटग्रस्त नदी जीवों के एक उल्लेखनीय समूह (स्तनधारियों, पक्षियों, मछलियों, सरीसृपों की 500 से अधिक प्रजातियां) का घर है। इनमें घड़ियाल और मगर, गंगा डॉल्फिन, चिकने-कोट वाले ऊदबिलाव, मीठे पानी के कछुए, स्कीमर, सारस क्रेन, काली गर्दन वाले सारस आदि शामिल हैं। नदी के रेतीले तट मगरमच्छों, मीठे पानी के कछुओं और भारतीय स्कीमर के लिए महत्वपूर्ण आवास प्रदान करते हैं। राष्ट्रीय चंबल वन्यजीव अभयारण्य तीन राज्यों में फैला अभयारण्य है। यह 5,400 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है और 400 किमी नदी के हिस्से को भी संरक्षित करता है।

बढ़ती मानव आबादी, शहरीकरण, रसायनों के बढ़ते उपयोग के साथ कृषि पद्धतियां, प्रवाह में कमी और नदी के किनारे औद्योगीकरण ने नदी में अपशिष्ट जल के प्रवाह को बढ़ा दिया है, जिससे जल गुणवत्ता की चुनौतियां पैदा हो गई हैं। यह देखना महत्वपूर्ण है कि चंबल नदी के निम्नलिखित दो हिस्से भी सीपीसीबी द्वारा पहचाने गए प्रदूषित नदी हिस्सों की सूची में शामिल हैं। नदियों के कायाकल्प के प्रयासों की निगरानी एनजीटी द्वारा की जाती है।

* नागदा से रामपुरा खंड की पहचान प्राथमिकता 1 (सबसे प्रदूषित- प्राथमिकता 1, सबसे कम- प्राथमिकता 5) प्रदूषित के रूप में कई गई है। नागदा चंबल के किनारे बसा एक औद्योगिक शहर है जो अनुपचारित/अपर्याप्त रूप से उपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों का निर्वहन करके नदी को गंभीर रूप से प्रदूषित करता है, जिसके फलस्वरूप पानी की गुणवत्ता जो नागदा से ऊपर की ओर ए श्रेणी की है, नीचे की ओर ई श्रेणी में बदल जाती है। सौभाग्य से नदी लगभग 20 किलोमीटर बहने के बाद नदी अपने पानी की गुणवत्ता में सुधार कर लेती है।

1,00,000 से अधिक आबादी के बावजूद नागदा में सीवेज उपचार की सुविधा नहीं है। पर्याप्त उपचार के बिना छोड़े गए जहरीले औद्योगिक कचरे के कारण पानी की गुणवत्ता में भारी गिरावट आती है। हाल के दिनों में इस दिशा में ध्यान दिया गया है, जिसमें एनजीटी के निर्देश भी शामिल हैं जिसके उपरांत औद्योगिक परिदृश्य में सुधार हुआ है और कुछ उद्योग जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (जेडएलडी) अपना रहे हैं। नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) ने इस साल 18 एमएलडी एसटीपी को मंजूरी दी है और उनके जल्द चालू होने से मदद मिलेगी।

* सवाई माधोपुर से कोटा तक का दूसरा खंड प्राथमिकता V में है। कोटा एक बड़ा और फैलता हुआ शहर है लेकिन यहां सीवेज उपचार क्षमता नगण्य है। लगभग 312 एमएलडी के अनुमानित सीवेज उत्पादन के मुकाबले, मौजूदा उपचार क्षमता केवल 50 एमएलडी है। नमामि गंगे के तहत 50 एमएलडी क्षमता वाले अतिरिक्त एसटीपी बनने के बाद भी बड़ा अंतर बना हुआ है। उद्योगों, थर्मल पावर प्लांट आदि की मौजूदगी इन जटिलताओं को और बढ़ाती है। भले ही नदी के स्वास्थ्य पर पड़ा प्रभाव अभी गंभीर नहीं है। लेकिन भविष्य में यह एक गंभीर समस्या होगी और त्वरित हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

एनएमसीजी ने गंगा बेसिन में जैव विविधता संरक्षण के लिए वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) के साथ सहयोग किया। चंबल के लिए बनी एनएमसीजी-डब्ल्यूआईआई परियोजना का लक्ष्य जैव विविधता का आकलन और प्राथमिकता वाली प्रजातियों का संरक्षण, आवास विशेषताओं का मूल्यांकन और नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करने वाली मानवजनित गतिविधियों का मूल्यांकन करना है। कुल मिलाकर, डॉल्फिन, मगर और घड़ियाल के वितरण पैटर्न से पता चला है कि नदी के निचले क्षेत्र, निचले मध्य क्षेत्र और ऊपरी मध्य क्षेत्र का संरक्षण की दृष्टि से बड़ा महत्व है और वन्यजीवों के प्रबंधन के लिए उचित रणनीतियों की आवश्यकता है। कई तेजी से विकसित हो रही चुनौतियों की पहचान की गई है। बस्तियां फैल रही हैं और नदी को कई ऐसी गतिविधियों का सामना करना पड़ रहा है जो पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा हैं। कई जल निष्कर्षण परियोजनाएं जल विज्ञान को प्रभावित करती हैं और नदी के प्रवाह को कम करती हैं। रेत खनन गतिविधियों को रोकना मुश्किल है जिनसे नदी को नुकसान पहुंचता है। नदी की रेत और घड़ियाल, मगरमच्छ और कछुए जैसे वन्यजीवों के रेत के किनारों पर उनके घोंसले के स्थान खत्म हो जाते हैं। अवैध और अत्यधिक मछली पकड़ना, अवैध शिकार, नदी किनारे की कृषि पद्धतियां इत्यादि असली खतरे हैं।

हम चंबल जैसी स्वच्छ नदी को खोने का जोखिम नहीं उठा सकते। चंबल पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इसमें निम्न बिंदु शामिल हैं:

  • सभी सहायक नदियों और मुद्दों को कवर करने वाली वैज्ञानिक चंबल नदी बेसिन प्रबंधन योजनाएं। समग्र बेसिन पर विचारोपरांत जल निकासी परियोजनाओं पर निर्णय

  • नदी के किनारे सभी बस्तियों, एसटीपी आदि का व्यापक मानचित्रण और सशर्त मूल्यांकन तथा दीर्घकालिक मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे के लिए प्राथमिकता निवेश

  • नमामि गंगे के अनुरूप दीर्घकालिक संचालन और रखरखाव सुनिश्चित करने की जरूरत है

  • औद्योगिक निर्वहन मानकों का सख्त प्रवर्तन, पुनर्चक्रण और जेडएलडी को बढ़ावा देना

  • रेत खनन का सख्त विनियमन

  • अभयारण्यों में प्रभावी संरक्षण के लिए अंतर-राज्यीय समन्वय में सुधार

  • सभी चंबल बेसिन जिलों को बहु-क्षेत्रीय तालमेल के लिए जिला गंगा योजनाओं की तर्ज पर जिला चंबल योजनाओं को विकसित और कार्यान्वित करना चाहिए, जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिए। संरक्षण प्रयासों में मजबूत सामुदायिक भागीदारी से ईको-टूरिज्म जैसे आजीविका के साथ तालमेल की खोज की जा सकती है। गंगा प्रहरी जैसे स्वयंसेवक विकसित करें

  • प्रकृति और उसकी सीमाओं का सम्मान करने की आवश्यकता है। नदी को अपने पारिस्थितिक प्रवाह की आवश्यकता है। उसे अपने और स्वयं पर आश्रित जीवन को बनाए रखने के लिए भूमि-बाढ़ के मैदानों (डूबक्षेत्र) की आवश्यकता है

चंबल की कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम अपना व्यवहार तभी बदलेंगे जब यह नदी अभिशाप बन जाएगी? या फिर हमें चंबल ही नहीं बल्कि सभी नदियों, उनके पारिस्थितिकी तंत्र जैसे प्रकृति के वरदानों को बनाए रखने के लिए सकारात्मक कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। हमें खुद को बचाने के लिए नदियों को बचाने की जरूरत है।

(लेखक राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के पूर्व महानिदेशक रहे हैं)