पावन गंगा; प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
नदी

गंगा नदी के बाढ़ क्षेत्र से अतिक्रमण हटाने के लिए क्या कुछ की गई है कार्रवाई, एनजीटी ने मांगी रिपोर्ट

मामला हरिद्वार के कनखल स्थित बेलीराम आश्रम में अपार्टमेंट के निर्माण और उसकी वजह से गंगा में होने वाले प्रदूषण से जुड़ा है

Susan Chacko, Lalit Maurya

22 अगस्त, 2024 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हरिद्वार के जिला मजिस्ट्रेट से एक नई रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। रिपोर्ट में उनसे गंगा बाढ़ क्षेत्र में हुए अतिक्रमण को हटाने के लिए क्या कार्रवाई की गई है, उसकी जानकारी मांगी गई है। उनसे हलफनामे में गंगा नदी (पुनरुद्धार, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण आदेश, 2016 के संदर्भ में की गई कार्रवाई का भी खुलासा करने को कहा गया है।

मामला हरिद्वार के कनखल स्थित बेलीराम आश्रम में अपार्टमेंट के निर्माण और उसकी वजह से गंगा में होने वाले प्रदूषण से जुड़ा है।

वहीं हरिद्वार के जिला मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने बाढ़ क्षेत्र को मानचित्र पर चिह्नित किया है। रिपोर्ट के मुताबिक इसे हर 25, 50 और 100 वर्षों में कितनी बार बाढ़ आती है, उसके आधार पर चिह्नित किया गया है।

उत्तराखंड के वकील ने इस बात पर सहमति जताई कि यह मानचित्रण उत्तराखंड बाढ़ मैदान क्षेत्रीकरण अधिनियम, 2012 के अनुसार किया गया था, न कि गंगा नदी (पुनरुद्धार, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण आदेश, 2016 के नियमों के अनुसार। उन्होंने यह भी माना कि 2016 का यह नियम 2012 के राज्य कानून से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।

सुनवाई के दौरान, हरिद्वार के जिला मजिस्ट्रेट की ओर से पेश वकील यह नहीं बता सके कि उन्होंने बाढ़ क्षेत्र का निर्धारण कैसे किया, जबकि यह निर्णय 100 वर्षों में सबसे अधिक बाढ़ स्तर और उनके द्वारा प्रयुक्त मापों पर आधारित था।

हालांकि जिला मजिस्ट्रेट के हलफनामे या हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण की रिपोर्ट में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि गंगा नदी (पुनरुद्धार, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण आदेश 2016 के नियमों के अनुसार बाढ़ क्षेत्र को चिह्नित करने के लिए अब तक क्या किया गया है।

निचले इलाकों में फ्लाई ऐश का उचित तरीके से किया जा रहा है निपटान: एलपीजीसीएल

ललितपुर पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड (एलपीजीसीएल) ने 23 अगस्त, 2024 को एनजीटी में अपनी एक रिपोर्ट सौंपी है। इस रिपोर्ट में उन्होंने कहा है कि सभी आवश्यक मानदंडों और दिशानिर्देशों का पालन करते हुए एलपीजीसीएल निचले इलाकों में फ्लाई ऐश का उचित तरीके से निपटान कर रही है।

रिपोर्ट के मुताबिक परियोजना को भूमि सुधार के लिए फ्लाई ऐश के उपयोग की अनुमति 19 अप्रैल, 2017 को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) से मिली थी, जबकि तीन दिसंबर, 2019 को ललितपुर के जिला मजिस्ट्रेट से भी मंजूरी मिल चुकी है। 2021 में कंपनी को यूपीपीसीबी से स्थापना की सहमति (सीटीई) भी मिल चुकी है।

परियोजना प्रस्तावक ने 2021 से 2024 की अवधि के लिए भूजल के बारे में रिपोर्ट भी साझा की है। इस रिपोर्ट को संसाधन विश्लेषण और नीति संस्थान, हैदराबाद द्वारा तैयार किया गया है।