नदी

उत्तराखंड: बांध की खातिर फिर डूबा एक और गांव

1972 में यमुना पर ब्यासी जल विद्युत परियोजना पर काम शुरू किया गया है, लेकिन बाद में इसे रोक दिया गया था

Trilochan Bhatt

उत्तराखंड के देहरादून जिले के सुदूरवर्ती कालसी विकासखंड का 72 परिवारों वाला जनजातीय गांव लोहारी आखिरकार बिजली परियोजना की भेंट चढ़ गया।  बिना वैकल्पिक व्यवस्था किये गांव को खाली करवा दिया गया है।

जमीन के बदले जमीन, मकान के बदले मकान, नौकरी और भरपूर मुआवजा देने सहित कोई भी मांग सरकार ने पूरी नहीं की। इन दिनों गांव के जूनियर हाई स्कूल के 4 कमरों में 20 परिवार रह रहे हैं। चार कमरों के एक अन्य पुराने और खंडहर हो चुके मकान में 11 परिवारों ने डेरा डाला है।

देहरादून जिला प्रशासन की ओर से मानवीय आधार पर लोगों के रहने की अस्थाई व्यवस्था करने के बावजूद गांव में कोई मदद नहीं पहुंची है। इसके उलट प्रशासन की ओर से भेजे जाने वाले पीने के पानी के टैंकर भी बंद कर दिये गये हैं।

खुले में खाना बनाने और खाने, खुले में शौच और दूषित पानी का इस्तेमाल करने से गांव के लोग तेजी से डायरिया की चपेट में आ रहे हैं। अब तक दर्जनभर लोगों को डायरिया के कारण अस्पताल भेजा जा चुका है। कुछ लोग अवसाद के कारण भी अस्पतालों में भर्ती हैं।

120 मेगावाट की व्यासी जल विद्युत परियोजना 50 वर्ष पहले 1972 में बनाई गई थी। इस परियोजना के तहत यमुना नदी पर 634 मीटर ऊंचा बांध बनाये जाने के कारण बांध स्थल से करीब 5 किमी दूर बसा जनजातीय गांव लोहारी पूर्ण डूब क्षेत्र में आ रहा था। तब से लेकर अब तक इन जनजातीय लोगों को कई बार ठगा गया।

भरपूर मुआवजा, हर परिवार को नौकरी, जमीन के बदले जमीन जैसे कई वायदे गांव के लोगों के साथ किये गये, लेकिन ये सभी वायदे झूठ का पुलिंदा ही साबित हुए।

1972 से 1989 के बीच नौ किस्तों में लोहारी गांव की 8,495 हेक्टेअर जमीन अधिग्रहित की गई। इस जमीन पर कहीं कर्मचारियों की आवासीय कॉलोनी बनाई गई तो कहीं स्टोन क्रशर लगाया गया। उस समय के हिसाब से इस जमीन का मुआवजा भी लोगों को दिया गया।

गांव उदय सिंह तोमर बताते हैं कि 1989 में इस परियोजना के तहत लोहारी गांव के पास यमुना में पुल बनाया जा रहा था। निर्माणाधीन पुल टूट जाने से 14 लोगों की मौत हुई और कई घायल हो गये। तब परियोजना पर काम बंद हो गया। लोग अधिग्रहित जमीन सहित अपनी दूसरी जमीन पर काश्तकारी करते रहे।

लेकिन 2013 में एक बार फिर परियोजना पर काम शुरू करने की बात शुरू हुई। व्यासी बांध का निर्माण भी शुरू हुआ। गांव की कुछ अन्य जमीन लेने की बात हुई और नये सिरे से मुआवजा तय करने की बात कही गई। इसके अलावा परियोजना में नौकरी या काम देने सहित कई तरह के लालच दिये गये।

गांव के राजकुमार सिंह तोमर कहते हैं कि दरअसल हम जनजातीय लोगों की परंपराएं और रीति-रिवाज अन्य समाज से अलग हैं। हमारे देवता भी बाकी समाज के देवताओं से अलग हैं। ऐसे में हमारी राय थी कि पूरे गांव को एक ही जगह पर बसाया जाए।

वर्ष 2014-15 में जब मुआवजा की बात हुई तो लोगों ने मुआवजा लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि उन्हें जमीन के बदले जमीन और मकान के बदले मकान दिया जाए। राज्य सरकार ने यह मांग मान भी ली थी। कैबिनेट में इस पर फैसला भी हुआ और विकासनगर के पास जमीन चिन्हित भी हुई, लेकिन बाद में यह फैसला पहले स्थगित और फिर निरस्त कर दिया गया।

लोहारी की ब्रह्मी देवी कहती हैं कि जून, 2021 में बांध में पानी भरना शुरू हुआ तो लोहारी के लोगों ने बांध स्थल पर धरना शुरू कर दिया। इस दौरान जल सत्याग्रह भी किया गया। 120 दिन तक धरना चलता रहा। 2 अक्टूबर की देर रात भारी संख्या में पुलिस बल भेजकर गांव के 17 लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और बाकी लोगों को खदेड़ दिया गया।

रमेश सिंह चौहान कहते हैं कि हाल में गांव के कुछ लोगों के खाते में 2 लाख से 6 लाख रुपये तक भेजे गये हैं, लेकिन रुपये किस हिसाब से भेजे गये, यह नहीं बताया जा रहा है। नया मुआवजा 23 लाख रुपये प्रति हेक्टेअर तय किया गया था। वह भी 20-25 परिवारों को ही मिला।

जनजाति एक्ट में प्रावधान है कि यदि विस्थापित किये जाने वाला कोई परिवार भूमिहीन हो तो उसे 2.50 हेक्टेयर जमीन का मुआवजा दिया जाएगा। लेकिन, लोहारी के मामले में इन सब कानूनों का पालन नहीं किया गया। इतना ही नहीं, जो जमीन एक्वायर की गई थी, बांध का पानी उससे भी ज्यादा भर दिया गया है। उन्हें यह भी नहीं बताया गया है कि पानी कहां तक भरेगा?

ग्रामीणों का कहना है कि बांध निर्माण के दौरान गांव के कुछ लोगों की गाड़ियां काम पर लगी थी, कुछ लोगों ने मजदूरी की, लेकिन बाद में कहा गया कि मजदूरी और गाड़ियों के किराये के रूप में गांव वालों को जो पैसा दिया गया है, वह मुआवजे में से काट दिया जाएगा।

गांव के ओमपाल सिंह चौहान सवाल उठाते हैं कि बांध निर्माण में पूरे देश के सैकड़ों लोगों को काम मिला था, ऐसे में लोहारी गांव के लोगों के मुआवजे में से पैसे काटने का कोई औचित्य समझ नहीं आ रहा है। गांव के लोगों के सरकार से पूछने के लिए कई सवाल हैं, लेकिन कोई उनकी बात सुनने को तैयार नहीं। लोगों को घरों से खदेड़कर उनके हाल पर छोड़ दिया गया है।