फोटो: विकास चौधरी / सीएसई
नदी

कैमरे की नजर से: यमुना के तीरे, उत्तराखंड के लोहारी गांव से लेकर उत्तर प्रदेश के नोएडा तक का सफर

हिमालय की ऊंची बर्फीली चोटियों से निकलकर यमुना सदियों से उत्तर भारत की जिंदगी का हिस्सा रही है। इसे देवी माना गया, इससे खेत सींचे गए, लाखों लोग इसी के सहारे पले बढ़े। उत्तराखंड के लोहारी गांव से लेकर उत्तर प्रदेश के नोएडा तक के सफर के दौरान मुझे कोई पवित्र नदी नहीं दिखी, बल्कि एक घायल धारा थी जिसका पाट खोदकर छलनी कर दिया गया है। यह सिर्फ नदी की कहानी नहीं है, यह इंसानी लालच का किस्सा है जहां हर दिन हजारों ट्रक इसकी रेत निगल जाते हैं विकास चौधरी

Vikas Choudhary

लोहारी, देहरादून (उत्तराखंड)

यहां डैम बनने के बाद गांव खाली हो गया। टूटी दीवारें अब भी उजड़ेपन की याद दिलाती हैं। लोग बताते हैं कि खेती से पेट नहीं भरता, फैक्ट्रियां दूर हैं, अब बस नदी से रेत निकालना ही काम बचा है। ट्रैक्टर ट्रक लाइन लगाकर खड़े रहते हैं। जो नौजवान पहले खेतों में काम करते थे, अब पूरा दिन रेत लादने में गुजारते हैं

नोएडा (उत्तर प्रदेश)

नोएडा में नदी किनारे पहले गांव और जंगल थे। अब शीशे की ऊंची इमारतें खड़ी हैं। लेकिन इन इमारतों की भूख मिटाने के लिए खनन आज भी जारी है। यमुना तटों पर लगातार खनन दिखाई दे रहा है

पांवटा साहिब (हिमाचल प्रदेश)

यहां हाल और बुरा है। नदी का तल गहरे गड्ढों में बदल चुका है। इतने बड़े कि ट्रैक्टर भी छोटे खिलौनों जैसे दिखते हैं। बच्चों की डूबकर मौत की खबरें आम हो गई हैं। जहां कभी घाट थे वे अब मौत के गड्ढे बन गए हैं