नदी

खत्म हो रही नर्मदा की निर्मलता, कई स्थानों पर डी क्लास में पहुंचा पानी

Rakesh Kumar Malviya

नर्मदा के बारे में आध्यात्मिक श्रुति यह कहती है कि उसके दर्शन मात्र से गंगा में नहाने जितना पुण्य मिल जाता है, लेकिन वैज्ञानिक परीक्षण अब यह कह रहे हैं कि इसके जल की गुणवत्ता साल दर साल खराब हो रही है। मप्र प्रदूषण नियंत्रण की केवल चार सालों की रिपोर्ट एक गंभीर चेतावनी पेश कर रहे हैं। डाउन टू अर्थ के चार सालों के विश्लेषण से पता चलता है कि इसका जल अब डी ग्रेड तक छू गया है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के जल गुणवत्ता वर्गीकरण के मुताबिक पानी के नमूनों में टोटल कोलिफॉर्म ऑर्गेनिज्म, पीएच, डिजॉल्वड ऑक्सीजन, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड को जांचा जाता है। पानी के नमूनों में इनकी मात्रा के आधार पर जल गुणवत्ता ए, बी, सी, डी, ई जैसे वर्गों में तय होती है। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इसी गाइडलाइन पर काम करता है। 

मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए विभिन्न जगहों पर मॉनीटरिंग सेंटर बनाए हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक ‘ए’ श्रेणी में पाए जाने वाला पानी सबसे बेहतर होता है जिसे साफ़ करके पीया जा सकता है, ‘बी’ श्रेणी में आने वाले पानी में नहाया जा सकता है, ‘सी’ कैटेगिरी के पानी को पारंपरिक उपचार और ठीक से रोगाणु रहित किए जाने के बाद ही पीया जा सकता है, ‘डी’ श्रेणी का पानी केवल वाइल्ड लाइफ और फिशरीज के काम के लिए उपयोग की सलाह दी जाती है, जबकि ‘ई’ श्रेणी का पानी केवल सिंचाई के लिए ही उपयोग में लेने की सलाह दी जाती है।  

मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 50 स्टेशनों से मिली रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल 2016-17 में में नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से लेकर मध्य प्रदेश  की सीमा रेखा ककराना अलीराजपुर के सभी स्टेशनों पर पानी ए ग्रेड यानी सबसे बेहतरीन स्थिति में पाया गया था। लेकिन इसके अगले ही साल से पानी की सेहत बिगड़नी शुरू हुई जो साल दर साल जारी है।

2017-18 में सांडिया घाट से लेकर सीहोर जिले के होलीपुरा स्टेशन का पानी बी ग्रेड में पाया गया। इससे पहले और बाद का हिस्सा एक ग्रेड में ही दर्ज था। इसके अगले साल 18—19 में भी बुधनी घाट से लेकर होलीपुरा घाट का पानी बी ग्रेड में था। अगले साल भी नदी के इस हिस्से में हालात कमोबेश ऐसे ही थे जबकि पानी बी ग्रेड में रहे। और साल 2020-21 में इसी हिस्से के बी वाले भाग में पानी सी ग्रेड में चला गया, जबकि दो स्टेशनों में पानी डी ग्रेड को छू गया।

सबसे बुरे हालात में जैत स्टेशन का पानी पाया गया, जहां अक्टूबर में पानी सी ग्रेड में था, वहीं नवम्बर और दिसम्बर में यह डी ग्रेड को छू गया। जिनकी वजह थी टी केलीफोर्म बैक्टीरिया जिसकी मात्रा 24000 एमपीएन प्रति 100 एमएल को छू गई।

उल्लेखनीय है कि जैत गांव मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का गांव है और इसी गांव में साल के दो महीने नदी का पानी डी ग्रेड में पाया गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तीन साल पहले नर्मदा सेवा यात्रा निकालकर नदी किनारे करोड़ों पौधे रोपने का रिकॉर्ड भी बनाया है, पर दूसरी ओर उनके अपने गांव में नदी के पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है। इसके अगले हिस्से में टैक्सटाइल्स मिल्स स्टेशन होलीपुरा तक पानी या तो सी ग्रेड का है या डी ग्रेड का है। पानी की गुणवत्ता को प्रभावित करने वाला टी कैलीफार्म बैक्टीरिया 92000 एमपीएन प्रति 100 एमएल की सीमा को छू गया, साल में इसकी औसत मात्रा 13 हजार एमपीएन प्रति 100 एमएल रही।

सां​डिया से होलीपुरा तक क्यों गंदी हुई नर्मदा:

सांडिया से नर्मदापुरम तक नर्मदा क्यों खराब हुई इसकी बड़ी वजह जहां शहरों से बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे मिल रहा गंदा पानी तो है ही, इसके साथ ही देश में नोट का कागज बनाने का कारखाना सिक्योरिटी पेपर मिल भी है। इस कारखाने से नदी के प्रदूषित होने की खबरें बहुत पहले से ​मीडिया में आती रही हैं, वहीं पिछले एक दशक में नर्मदापुरम के ठीक सामने सीहोर जिले में बसे स्पेशल इकॉनोमिक जोन में भी बीसियों कारखाने खुले हैं। इन कारखानों में जहां नर्मदा का पानी ले जाया जा रहा है, वहीं इन कारखानों से​ निकला पानी भी नर्मदा में ही आकर मिलता है, यही वजह है कि इस छोटे से हिस्से में जहां नर्मदा की पारिस्थितिकी और जैव विविधता नष्ट हुई है, वहीं पानी की गुणवत्ता भी अब खराब होती जा रही है।

सहायक नदियों के सूखने का असर :

नर्मदा गंगा की तरह किसी बर्फ के पहाड़ से नहीं निकलती। उसका एक सपाट इलाके से उद्गम है। राह में चलते—चलते पेड़—पौधे, छोटे नदी, नाले उसे जल से समृद्ध करते जाते हैं, इसके साथ ही नदी भी बड़ी होती जाती है। नर्मदा में सहायक नदियां मिलती हैं। पिछले कुछ दशकों में इन सहायक नदियों की हालत बेहद खराब होती चली गई है। कभी साल भर बहने वाली नदियों में अब साल में कुछ महीने ही पानी रहता है। इन नदियों पर किताब लिखने वाले लेखक बाबा मायाराम कहते हैं कि पहले इन नदियों में बारह महीनों पानी रहता था, लेकिन बिगड़ती जलवायु में इनकी सेहत भी बिगड़ी है, इसका असर नर्मदा पर भी पड़ रहा है।

बांध बनने से रुक गया जल प्रवाह:

बांध बनने से रुक गया जल प्रवाह: नर्मदा घाटी विकास परियोजना के तहत नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर तीस बड़े, 135 मझौले और तीन हजार छोटे बांध बनाए जाने हैं। सहायक नदियों पर बांध बनाने का काम अब भी चल रहा है। इससे नदी का प्रवाह प्रभावित हुआ है, यह बड़े—बड़े जलाशयों में तब्दील हो गई है। विशेषज्ञों के मुताबिक पानी के प्रवाह रुकने का बड़ा असर पानी की गुणवत्ता पर भी पड़ता है। पिछले दिनों नर्मदा बचाओ आंदोलन ने बड़वानी जिले के राजघाट का पानी का परीक्षण करवाया गया था और रिपोर्ट में आया है कि अब यह पीने के लायक नहीं रहा, यह क्षेत्र सरदार सरोवर जलाशय के अंतर्गत आता है।

इसके साथ ही नर्मदा की जैव विविधता भी नष्ट हो रही है। ऐसे कई अध्ययन किए जा रहे हैं जिसमें पता चल रहा है कि नर्मदा में पाए जाने वाले सूक्ष्म जीव जो पानी को साफ करने में मदद कर रहे थे, वे खत्म हो रहे हैं।