संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) का मानना है कि पानी के बाद रेत दूसरा सबसे बड़ा दोहित संसाधन है। इसका सबसे अधिक खनन होता है। नदी के तल से रेत का खनन अक्सर नियमों को ताक पर रखकर किया जाता है। इसका नदी के प्राकृतिक पारिस्थितिकी पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह ध्यान नहीं रखा जाता। भारत में 1990 के दशक में उदारीकरण के बाद शहरीकरण में बेहताशा वृद्धि के कारण रेत की मांग ने जोर पकड़ा और अवैध खनन का उद्योग खड़ा हो गया। हालांकि देश में खनन को लेकर कानून हैं, लेकिन कार्यान्वयन और नियमित निगरानी का अभाव है। पुलाहा रॉय ने सिद्धार्थ अग्रवाल और कोलकाता स्थित गैर लाभकारी संगठन वेदितुम इंडिया फाउंडेशन के शोधकर्ता कुमार अनिर्वान के साथ नदियों के सैटेलाइट तस्वीरों का विश्लेषण किया और पाया कि देशभर में बड़े पैमाने पर कानूनों का खुला उल्लंघन कर नदियों को छलनी किया जा रहा है
बेतवा : हमीरपुर जिला, उत्तर प्रदेश
यहां बेतवा नदी के प्राकृतिक और बाधित प्रभाव में स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है जो 7 किलोमीटर में फैले कृत्रिम पुश्ते (वाहनों के आवागमन के लिए बना अस्थायी ढांचा) का नतीजा है। कृत्रिम पुश्ते के निकट ट्रकों और अर्थ मूवर्स की हलचल अथवा उपस्थिति प्रतीक है कि यहां खनन धड़ल्ले से जारी है। इस प्रकार का व्यापक खनन नदी के प्राकृतिक बहाव में बाधा उत्पन्न करने के साथ ही उसकी पारिस्थितिकी पर प्रभाव डालता है। मसलन, पानी में मिलने वाली जलीय प्रजातियां गायब हो जाती हैं और खाद्य श्रृंखला पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
केन: बांदा जिला, उत्तर प्रदेश
मध्य प्रदेश से निकलने वाली केन उत्तर प्रदेश से होकर गुजरती है और बांदा जिले के चिल्लाघाट में यमुना नदी में मिल जाती है। यहां भी करीब 5 किलोमीटर के दायरे में रेत का खनन हो रहा है व ट्रकों, अर्थ मूवर्स और कृत्रिम बांधों की मौजूदगी देखी जा रही है। इनसे नदी का प्राकृतिक प्रवाह भी प्रभावित हो रहा है। यहां रेत के खनन से पारिस्थितिक असंतुलन और प्रदूषण की समस्या भी देखी जा रही है।
सोन : रोहतास नगर, बिहार
पारिस्थितिक प्रभावों के अलावा अनियंत्रित रेत खनन का पुलों और रेलवे ट्रैक पर भी असर पड़ता है। इनके आसपास अत्यधिक खनन से अनियंत्रित पानी ढांचों को कमजोर कर सकता है। यही वजह है कि केंद्र ने ऐसे ढांचों के 200 से 500 मीटर के दायरे में खनन न करने का नियम बनाया है। राज्यों के भी अपने नियम हैं। हालांकि बिहार जैसे कुछ राज्य ढांचे से 50 मीटर दूर खुदाई की अनुमति देते हैं। यही वजह है कि डेहरी जैसी जगह में रेलवे ट्रैक और पुल के नजदीक बड़े पैमाने पर कृत्रिम पुश्ते बन गए हैं जिससे ढांचे की स्थिरता पर खतरा मंडरा रहा है।
यमुना : यमुनानगर जिला, हरियाणा
राज्य का खनन कानून कहता है कि अपस्ट्रीम में पुल की लंबाई से पांच गुणा और डाउनस्ट्रीम में पुल की लंबाई से 10 गुणा की दूरी तक रेत का खनन प्रतिबंधित है। इसका मतलब है कि यमुनानगर में बने 572.9 मीटर पुल से कम से कम 2,864 मीटर अपस्ट्रीम तक रेत का खनन नहीं होना चाहिए। डाउनस्ट्रीम में यह दूरी और लंबी होनी चाहिए। लेकिन सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि पुल के दोनों तरफ इस दूरी से पहले ही कई कृत्रिम पुश्ता बने हैं। यह स्पष्ट तौर पर खनन के संकेत हैं।
कठजोड़ी : कटक जिला, ओडिशा
महानदी की सहायक नदी कठजोड़ी के किनारे राज्य के सबसे लंबे नेताजी सुभाषचंद्र बोस पुल के बहुत पास अत्यधिक रेत खनन के संकेत मिलते हैं। ओडिशा का कानून कहता है कि ढांचे के निकट रेत के खनन के लिए स्ट्रक्चरल पैरामीटर को ध्यान में रखना होगा। हालांकि राज्य ने यह नहीं बताया है कि स्ट्रक्चरल पैरामीटर क्या होते हैं और न ही यह बताया गया है कि किसी ढांचे से कितनी दूर खनन प्रोजेक्ट होना चाहिए।
नर्मदा : सीहोर जिला, मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश में मशीनों से रेत खनन प्रतिबंधित है। लेकिन नर्मदा की सैटेलाइट तस्वीरों से सीहोर जिले में नदी किनारे कम से कम तीन जगह अर्थ मूवर्स की मौजूदगी मिली है। यहां खनन क्षेत्र 50 एकड़ में फैला है। पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना 2006 के मुताबिक, इतने बड़े खनन प्रोजेक्ट की मंजूरी केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मिलनी चाहिए। हालांकि सार्वजनिक पटल पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, प्रोजेक्ट को मंजूरी राज्य ने दी है जो केंद्र के कानून का खुला उल्लंघन है।
हुगली : हुगली जिला, पश्चिम बंगाल
रेत खनन कई तरह से नदी का प्राकृतिक प्रवाह बाधित करता है। उदाहरण के लिए, सक्शन पंप का इस्तेमाल कर बड़ी मात्रा में नदी तल से रेत निकाली जाती है। इससे विषैले तत्व नदी तल पर मौजूद जलीय जीवों के भोजन श्रृंखला में पहुंच जाते हैं और इनमें पूरे ईकोसिस्टम को नष्ट करने की क्षमता है। हुगली नदी में कोलकाता से 60 किलोमीटर अपस्ट्रीम तक रेत खनन ड्रेजिंग बोट में लगे सक्शन पंप की मदद से हो रही है। राज्य के कानून में भले ही इन पंपों पर पाबंदी न हो लेकिन ये नदी की ईकोलॉजी को तबाह तो कर ही रहे हैं।
चंबल : मुरैना जिला, मध्य प्रदेश
चंबल नदी के साथ लगा राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य संरक्षित क्षेत्र है जो राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फैला है। सैटेलाइट तस्वीरों से मध्य प्रदेश और राजस्थान को जोड़ने वाले धौलपुर पुल के पास खनन का संकेत मिलता है। इस क्षेत्र में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 2022 से खनन की अनुमति है, लेकिन पुल के नजदीक खनन नियमों के विरुद्ध है। राज्य के कानून के मुताबिक, पुल से खनन प्रोजेक्ट की दूरी 200 मीटर होनी ही चाहिए। अभयारण्य में खनन यहां पाए जाने वाले घड़ियाल और कछुओं के लिए विनाशकारी भी हैं।