सरदार सरोवर बांध से विस्थापितों द्वारा दायर याचिका पर देश की सर्वोच्च अदालत ने गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को नोटिस जारी किया है और बिना पुनर्वास डूब के मुद्दे पर तीनों राज्य सरकारों से जवाब मांगा है। बुधवार 18 सितंबर को इस सबंध में सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीड ने सुनवाई की। अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख 26 सितंबर तय की है।
सरदार सरोवर के विस्थापितों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर आज न्यायाधीश एनवी रामन्ना व अजय रस्तोगी की खण्डपीठ के समक्ष सुनवाई हुई। विस्थापितों की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने अदालत को बताया कि नर्मदा न्यायाधिकरण के फैसले के तथा सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2000 एवं 2005 के फैसलों के खिलाफ सरदार सरोवर में जल स्तर बढ़ाने का नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के निर्णय से तीनों राज्यों के हजारों परिवरों को अन्याय और अत्याचार सहना पड़ रहा है।
अप्रैल, 2019 में ट्रिब्यूनल के फैसले के अनुसार पुनर्वास की बात करने के बावजूद, सभी राज्यों को प्रभावितों को हटाने की योजना प्रस्तुत करने को कहा गया और 15 अक्टूबर, 2019 तक 138.68 मीटर यानी पूर्ण जलाशय स्तर तक पानी सरदार सरोवर में भरने की मंजूरी दी गई थी लेकिन अब जबकि 15 अक्टूबर के लगभग एक माह पूर्व ही जलाशय को भर कर राज्य सरकार ने देश की सर्वाच्च अदालत के फैसलों का सीधा उल्लंघन किया है। अधिवक्ता पारिख ने अदालत को बतया कि बाद में इस समय पत्रक को भी बदलकर 17 सितंबर, 2019 कर दिया गया और इसी तारीख को लक्ष्य बनाकर सरदार सरोवर बांध में पूर्ण जलस्तर तक पानी भरा गया। अब इस समय में बांध की ऊंचाई 138.68 मीटर के बराबर पानी भरा हुआ है।
इससे तीनों राज्यों के हजारों परिवारों के घर, गांव, खेत, मंदिर, कई धार्मिक स्थल, हजारों-हजार पेड़, चारागाह, दुकान, शालाएं, शासकीय भवन आदि डूब गए हैं। बिना पुनर्वास, कई खेतीहर मजदूर, कुम्हार, दुकानदार सहित हजारों परिवारों की आजीविका छिन गई है। पुनर्वास 2017 के सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार भी पुनर्वास को अधूरा रखकर ही जल भराव हुआ। सर्वोच्च अदालत ने इस पर गुजरात, महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश को नोटिस जारी कर उनसे इस मुद्दे पर जवाब मांगा है। अगली सुनवाई 26 सितंबर, 2019 को होगी। याचिका में अधिवक्ता अभिमन्यु श्रेष्ठ ने संजय परिख की मदद की।