सर्वोच्च न्यायालय ने चार राज्यों व केंद्र सरकार को सरदार सरोवर बांध मामले में बड़ा झटका दिया है। अदालत ने इन सभी पक्षों को आदेश देते हुए कहा है कि वे बांध के जलस्तर बढ़ाने और पुनर्वास के मुद्दों पर त्वरित चर्चा करें और निर्णय लें। यह आदेश सर्वोच्च न्यायाल की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सरदार सरोवर नर्मदा परियोजना के विस्थापितों की तरफ से दायर की गई याचिका पर दिया। इस आदेश के बाद नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता मेधा पाटकर सहित कई और कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह आश्चर्य की बात है कि क्यों कि केंद्र सरकार, गुजरात सरकार और नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण, ये तीनों स्वतंत्र इकाइयां ही नहीं अपने आप में एक संस्थाएं भी हैं और इन्हें पुनर्वास सहित सभी मुद्दों पर निर्णय लेने ओर मार्ग दर्शन देने का आधिकार है।
इस खंडपीठ ने गत 18 अक्टूबर को आदेश देते हुए कहा था की सरदार सरोवर का जलस्तर बढ़ाने तथा पुनर्वास के इन दोनें मुद्यों चार मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, और गुजरात के तथा केंद्रीय जल शक्ति मंत्री की अध्यक्षता में है एक पुनर्विचार समिति का गठन किया गया था। यह समिति नर्मदा ट्रिब्यूनल फैसले के तहत गठित हुई है। इस समिति के समक्ष जलस्तर बढ़ाने और पुनर्वास जैसे मुद्यों पर चर्चा और निर्णय होना जरूरी था, लेकिन इस समिति की जो उच्च स्तरीय बैठक होनी थी, वह नहीं लेते हुए केंद्र सरकार और नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने एक साजिश के तहत के तहत उन्होंने सरदार सरोवर जलाशय के नियमन के लिए गठित कमेंटी (सरदार सरोवर जलाशय नियमन कमिटी) की बैठक में ही यह बहस चलाई और अपनी रिपोर्ट पेश की। यहां तक कि मध्यप्रदेश शासन के जलस्तर बढ़ाने पर उसकी असहमति जानते हुए हुए भी उसको दाखिल नहीं किया गया।
खंडपीठ ने उस रेगुलेशन कमिटी की रिपोर्ट को नकारते हुए कहा कि चारो मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री की उच्च स्तरीय समिति में ही इन दोनों मुद्दों पर चर्चा और निर्णय होना चाहिए| उन्होंने इस समिति के सामने विस्थापितों को अपना आवेदन याचिकाकर्ता के रूप में प्रस्तुत करने की अनुमति भी दी और पुनर्वास समिति की बैठक जल्द से जल्द कराए जाने का आदेश दिया। अदालत में विस्थापितों की ओर से संजय पारिख पैरवी कर रहे थे, वहीं गुजरात, केंद्र शासन और नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता पैरवी की।