बहते पानी से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) उत्सर्जन का अनुमान महासागरों के कुल कार्बन उत्सर्जन से चार गुना अधिक है।
नदियां और नाले वायुमंडल में बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करती हैं, लेकिन अब उमिया और लुसाने विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि उत्सर्जन पहले जितना सोचा गया था उससे कहीं गुना अधिक हो सकता है।
बहते पानी से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का वर्तमान अनुमान मैन्युअल नमूनों पर आधारित है, जहां एक व्यक्ति नदी में जाता है तथा उसका नमूना लेता है और पानी में कार्बन डाइऑक्साइड का विश्लेषण करता है।
लेकिन इस आधार पर हमने पहले मान लिया था कि समय के साथ कार्बन डाइऑक्साइड सांद्रता स्थिर है। पिछले कुछ दशकों में, सेंसर तकनीक में एक क्रांति आई है और अब हम पानी में लगातार, पानी के मापदंडों को माप सकते हैं और जान सकते हैं कि समय के साथ यह किस तरह बदल रहा है।
इस अध्ययन में उमिया विश्वविद्यालय में इकोले पॉलीटेक्निक फेडरेल डी लुसाने, जेरार्ड रोचर-रोस और रयान स्पोंसेलर में लुलिस गोमेज़-जेन की अगुवाई में किए गए शोध में अंतरराष्ट्रीय शोध दल ने नदियों और धाराओं में कार्बन डाइऑक्साइड को मापने के लिए सेंसर की शक्ति का उपयोग किया है। उन्होंने पाया कि कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन दिन की तुलना में रात में अधिक था।
ये परिणाम वैश्विक कार्बन चक्र में नालों और नदियों की भूमिका के बारे में हमारी समझ के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि पिछले अनुमानों के अनुसार, दिन के दौरान मैनुअल नमूनों के आधार पर वास्तविक प्रवाह को कम करके आंका गया था।
उदाहरण के लिए, वैश्विक डेटाबेस में एकत्र किए गए 90 फीसदी नमूनों को सुबह आठ से दोपहर चार बजे के बीच लिया गया था। उमिया विश्वविद्यालय में पारिस्थितिकी, पर्यावरण और पृथ्वी विज्ञान विभाग में पोस्टडॉक्टरल फेलो गेरार्ड रोचर-रोसे कहते हैं इस बार हमारे लगातार मापों के आधार पर केवल दस प्रतिशत दिनों में ही बहुत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन देखा गया है।
यह अध्ययन दुनिया भर के मापों पर आधारित है, जो उष्णकटिबंधीय जंगलों से आर्कटिक टुंड्रा तक और कई अलग-अलग प्रकार की नदियों और नालों से लिया गया है।
दिन का कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का पैटर्न बहुत अधिक आश्चर्य नहीं था, हम जानते हैं कि पौधे और शैवाल दिन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं और सांद्रता को कम करते हैं और इसलिए दिन के मुकाबले रात में उत्सर्जन अधिक होता है।
नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित अध्ययन में अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि हमारे अध्ययन के बारे में दिलचस्प बात यह है कि हम यह पता लगाने में सफल रहे कि ऐसा कहां और कब होता है। उदाहरण के लिए, घने जंगलों और गहरे पानी वाले स्थानों में, प्रकाश कम उपलब्ध होता है और यह भिन्नता प्रभाव कम है, जबकि खुली नदियों और नालों में, साफ पानी या बहुत सारे पोषक तत्वों के साथ, शैवाल की अधिक से अधिक वृद्धि और एक बड़ा अंतर है जो कार्बन डाइऑक्साइड की दिन-रात की सांद्रता के बीच होता है।