नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनडीवीए) द्वारा हरदा एवं होशंगाबाद जिले में नर्मदा घाटी पर मोरंड एवं गंजाल नदी पर प्रस्तावित संयुक्त सिंचाई परियोजना के निर्माण के खिलाफ अब लोग सड़कों पर उतर आए हैं। अब तक इस परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिली है, लेकिन एनवीडीए ने इसके लिए निविदा जारी कर दी। इस परियोजना से प्रभावित होने वाले सैकड़ों लोगों ने जिला मुख्यालय पर प्रदर्शन किया और इस बांध को रद्द करने की मांग की। परियोजना से प्रभावितों ने जिलाधीश से मांग की कि वे हमें बताएं कि इस परियोजना के कारण कितने गांव, खेती और जंगल डूबेंगे। आरोप है कि इस परियोजना से हरदा, होशंगाबाद ओर बैतूल के 2371. 14 हैक्टेयर घना जंगल डूब जाएगा।
नर्मदा नदी पर बने सरदार सरोवर बांध से विस्थापित रहमत खान कहते हैं कि एनवीडीए अब तक सरदार सरोवर बांध की वजह से जितने गांव डूबे हैं, उनके विस्थापितों का अब तक पुनर्वास नहीं किया गया है। ऐसे में एक और परियोजना की तैयारी करना पूरी तरह से गैर कानूनी है। जिंदगी बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता शमारुख धारा ने कहा कि राज्य सरकार तो हमें इस परियोजना से जुड़ी कोई भी जानकारी देने को तैयार ही नहीं है। पिछली बार हमने सूचना के अधिकार के तहत इस परियोजना के निविदा के बारे में जानकारी जुटाई थी। उनका कहना है कि सरकार हर काम चुपचाप करना चाहती है। वह जानती है कि यदि परियोजना से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक की गई तो उनके लिए मुश्किल होगा। ध्यान रहे कि यह बांध नर्मदा घाटी पर बनने वाले तीस बड़े बांधों में से छठे नंबर का होगा। इसके पहले पांच बड़े बांध पहले ही घाटी पर बन चुके हैं। जिनका अब तक स्थानीय जनता को लाभ नहीं पहुंच पाया है।
इस परियोजना के प्रस्तावक नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को 17 अक्टूबर, 2012 में टीओआर (टर्म्स ऑफ रिफरेंसेज) मिला था, जिसकी वैधता 2 वर्ष की थी, जिसे बढ़ाकर 4 वर्ष किया गया। परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी के लिए जन सुनवाई और पर्यावरण प्रभाव का आकलन करके इसी समय के अंदर केन्द्रीय सरकार के पर्यावरण मंत्रालय में भेजना था, जिसे परियोजना प्रस्तावक एनवीडीए ने आनन फानन में नवम्बर 2015 में इस परियोजना से प्रभावित तीन जिलों में जन सुनवाई कर ली, जिसमें लोगों के कठोर विरोध के बावजूद इसकी रिपोर्ट के साथ पर्यावरणीय प्रभाव आकलन रिपोर्ट जुलाई, 2016 में वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को प्रस्तुत की।
आंदोलनकारियों का आरोप है कि इस परियोजना में हरदा, होशंगाबाद एवं बेतुल जिले के सैकड़ों हेक्टेयर का घना जंगल डुबाया जा रहा है। कानून के अनुसार इतने बड़े पैमाने पर वन भूमि को खत्म करने के लिए फारेस्ट क्लियरेंस लेना अनिवार्य होता है। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने भी मार्च, 2017 में स्पष्ट रूप से कहा था की इस परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी तभी मिलेगी जब एनवीडीए को फारेस्ट क्लियरेंस प्राप्त होगा कानून के अनुसार फारेस्ट क्लियरेंस की प्रक्रिया शुरू किए बिना पर्यावरणीय मंजूरी के लिएआवेदन करना गैर कानूनी है।
गत सितंबर, 20109 में सूचना अधिकार कानून के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार इस परियोजना को ना तो पर्यावरण विभाग की मंजूरी मिली है और ना ही फारेस्ट क्लियरेंस मिला है। वर्ष 2012 में जिस परियोजना की लागत 1434 करोड़ बताया गया था, उसी परियोजना में बिना कोई काम शुरू हुए ही बिना पिछली शिवराज सिंह की भाजपा सरकार ने बिना सोचे समझे यह लागत दोगुना करके 2017 में लगभग 2800 करोड़ का प्रशासनिक स्वीकृति जल्द बाजी में दे दी।