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55 सालों में पौंग बांध विस्थापितों का नहीं हुआ पुनर्वास, नई पॉलिसी ने बढ़ाई चिंता

पौंग बांध एरिया के वाइल्ड लाइफ सेंचुरी बनने के बाद इसे इको सेंसिटिव जोन बनाने को लेकर केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने एक पॉलिसी ड्राफ्ट तैयार की है

Rohit Prashar

पांच दशक पहले से विस्थापन की मार झेल रहे पौंग बांध विस्थापित इन दिनों एक बार फिर से आंदोलन की तैयारी में हैं। पौंग बांध वर्ष 1974 में बनकर तैयार हो गया था, लेकिन निर्माण के इतने वर्ष गुजरने के बाद भी विस्थापितों का पुनर्वास नहीं हो पाया है। जो लोग पुनर्वास के इंतजार में थे और बांध एरिया के आसपास रहकर जैसे-तैसे अपना गुजर बसर कर रहे थे, उन्हें पौंग बांध एरिया को इको सेंसिटिव जोन बनाए जाने से अपनी आजीविका का संकट खड़ा हो गया है।

पौंग बांध एरिया के वाइल्ड लाइफ सेंचुरी बनने के बाद इसे इको सेंसिटिव जोन बनाने को लेकर केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने एक पॉलिसी ड्राफ्ट तैयार की है। 

स्थानीय पंचायत प्रतिनिधियों और विधायकों का आरोप है कि सरकार की ओर से तैयार की गई इस पॉलिसी को बिना पंचायत प्रतिनिधियों और लोगों के सुझाव के तैयार किया गया है। लोगों का मानना है कि यदि यह क्षेत्र इको सेंसिटिव क्षेत्र घोषित होता है तो इससे लाखों लोगों की आजीविका के उपर तो असर पड़ेगा, साथ ही विकास के कार्याें के लिए उन्हें एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। इससे विकास के कार्याें में भारी देरी होगी।
 
इको सेंसिटिव जोन की ड्राफ्ट पॉलिसी को निरस्त करने को लेकर दिसंबर 26 को पौंग बांध प्रभावित पंचायतों के प्रतिनिधियों और आम जनता समेत देहरा विधानसभा के विधायक ने नगरोटा सुरियां में एक बड़ी बैठक भी की है। इस बैठक में सभी लोगों ने एक प्रस्ताव पास किया है कि जब तक पुनर्वास के सभी मामले निपटा नहीं दिए जाते, तब तक वे इस क्षेत्र में किसी तरह तरह की नई पॉलिसी को नहीं मानेंगे।
 
पौंग बांध एरिया के साथ लगती पंचायत सुखनारा के पंचायत प्रधान कर्ण सिंह पठानिया ने डाउन टू अर्थ को बताया कि बांध के बनने के कई दशकों बाद भी सेटलमेंट के मामले निपटाए नहीं गए हैं। ऐसे में बिना पंचायत प्रतिनिधियों और जनता की राय जाने नई पालिसी बनाना बिल्कुल मंजूर नहीं है। उन्होंने कहा कि बांध के बनने के बाद हजारों लोगों को आज भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में नई पॉलिसी से लोगों पर और अधिक पाबंदियां लगेंगे जिससे उन्हें और परेशानियां झेलनी पड़ेंगी।
 
हर साल लाखों विदेशी पक्षियों की आरामगाह माने जाने वाले पौंग बांध क्षेत्र को 1983 में वन्यजीव अभ्यारण, वर्ष 2002 में रामसर वेटलेंड साइट और वर्ष 2013 में वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का दर्जा दिया गया है। इसमें हर साल एक लाख से अधिक पक्षी सेंट्रल एसिया, मंगोलिया, साइबेरिया और चाइना से आते हैं। विदेश से आने वाले पक्षियों में ज्यादातर रेड हेडेड गीज़ और ग्रे लाइट गूज़, कॉमन टील, फार्मोरेंट प्रजाती के पक्षी होते हैं।
 
स्थानीय लोगों का कहना है कि बांध में केवल चार माह के लिए पानी भरता है और पानी हटने के बाद लोग अपनी रोजी रोटी के लिए इसमें खेबी-बाड़ी करते हैं, जिससे उनकी रोजी रोटी चलती है, लेकिन इसके लिए भी वाइल्ड लाइफ वाले उन्हें बहुत तंग करते हैं। लेकिन अब जब एक पॉलिसी बनाई जाएगी तो इससे बांध एरिया के एक से डेढ़ किलोमिटर के दायरे में और अधिक पाबंदियां लग जाएंगी।
 
देहरा विधानसभा क्षेत्र के विधायक होशियार सिंह ने पौंग बांध क्षेत्र में इको सेंसिटिव जोन बनाए जाने का पुरजोर विरोध किया है। होशियार सिंह  ह ने इस ड्राफ्ट पॉलिसी को निरस्त करने के लिए विधानसभा में भी मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप करने की मांग की थी। होशियार सिंह का कहना है कि पौंग बांध के आस पास बसे लोग पहले से ही विस्थापन की मार झेल रहे हैं।
 
उन्होंने कहा कि बांध के बनने से 25 हजार से अधिक परिवारों का विस्थापन हुआ था और अभी तक पुनर्वास के सात हजार से अधिक मामले लंबित पड़े हैं। उन्होंने कहा इको सेंसिटिव जोन से बांध एरिया के 116 किलोमिटर के दायरे में बसे लोगों को दिक्कतों का सामना पड़ेगा।