सत्येंद्र सार्थक
गंगा की सहायक नदी से जुड़ने वाली 102 किलोमीटर लंबी आमी नदी औद्योगिक और सीवेज प्रदूषण के भंवर जाल में फंसी है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेशों के बावजूद आमी नदी में प्रदूषण की रोकथाम नहीं हो पाई है। आमी नदी में प्रदूषण से न सिर्फ भू-जल प्रदूषित हो रहा है बल्कि किसानों की फसलें भी खराब होने लगी है।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में पिपरौली ब्लॉक के खरैला गाव के रहने वाले अभय प्रताप सिंह आमी नदी को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए स्थानीय आंदोलनों का हिस्सा रहे हैं। वह कहते हैं शासन व प्रशासन हमारी शिकायतों के प्रति गंभीर नहीं। कभी वर्तमान मुख्यमंत्री जब सांसद थे तो वह हमारे साथ आमी को प्रदूषण मुक्त करने के लिये धरना देते थे। अब इसे "फालतू मुद्दा" बताया जाने लगा है। आईजीएल कंपनी सहित गीडा का जहरीला कचरा आमी नदी में आ रहा है। प्रदूषित जल से हमारे धान की फसल लगातार खराब हो रही है। आजीविका के अन्य साधन नहीं होने के कारण फसल नुकसान की आशंका के बावजूद हम धान की फसल बोते हैं और बाढ़ के पानी में मिला औद्योगिक कचरा 60-70 फीसदी फसल को बर्बाद कर देता है।
अभय आगे कहते हैं "इन दिनों फैक्ट्रियों की चिमनी धूएं के साथ एक तरह की राख निकल रही है जो स्वास्थ्य के लिये बेहद हानिकारक है" कई बार की शिकायत के बाद भी प्रदूषण विभाग ने कार्रवाई नहीं की। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी पंकज यादव कहते हैं " राख उन फैक्ट्रियों से निकल रही है जो कोयले की जगह पर भूसी का उपयोग करते हैं। शिकायत मिलने पर हम कार्रवाई करते हैं। सीवर की गंदगी सहित गीडा की फैक्ट्रियों से 6-7 एमएलडी प्रदूषित पानी निकलता है। सीईटीपी लगाने की प्रक्रिया चल रही है, निर्माण पूरा होने पर किसानों की समस्याओं का खुद ब खुद समाधान हो जाएगा।"
सिद्धार्थ नगर के डुमरियागंज तहसील में राप्ती नदी से आमी नदी निकलती है और संतकबीर नगर होते हुए गोरखपुर के सोहगौरा के पास वापस राप्ती नदी में मिल जाती है। यह नदी 102 किलोमीटर लंबी है और इसके किनारे पर 200 से अधिक गांव बसे हैं। नदी में प्रदूषण के कारण लाखों लोगों का जीवन प्रभावित होता है।
वर्ष 1989 में शासन ने उत्तर प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र विकास अधिनियम 1976 के तहत गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण ( गीडा ) का गठन किया गया। यहां पर 1992 में पहली फैक्ट्री की स्थापना हुई थी। 266 फैक्ट्रियों में 2,000 करोड़ से अधिक का निवेश हो चुका है। प्रदूषण विभाग ने गीडा की 266 फैक्ट्रियों को प्रदूषण स्तर के आधार पर रेड, ऑरेंज, ग्रीन और व्हाइट जोन में बांटा है। सर्वाधिक प्रदूषित रेड जोन में 54 इकाईयां हैं। फैक्ट्रियों की स्थापना के बाद से ही उनसे निकलने वाली गंदगी के कारण स्थानीय लोगों की परेशानियां बढ़ने लगीं।
वर्ष 2000 आते-आते आमी नदी का पानी इस कदर गंदा हो गया कि नदी जिस भी रास्ते से गुजरती उसकी बदबू 500 मीटर की दूरी से ही आने लगती थी। हैंडपंपों से बदबूदार पानी निकलने लगा और फसलें नष्ट होने लगीं। इसी प्रक्रिया में आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार होने लगी। जबकि 2009 में स्थानीय युवाओं व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने संगठित प्रतिरोध के लिये आमी बचाओ मंच का गठन किया, जिसके अध्यक्ष विश्वविजय सिंह कहते हैं "जनआंदोलन के दबाव में ही शासन ने सीईटीपी लगाने को स्वाकृति दी। सीईटीपी का निर्माण कार्य जल्द शुरू नहीं किया तो 15 फरवरी के बाद हम "आमी संवाद यात्रा" शुरू कर आमी नदी के प्रति सरकार की उदासीनता के बारे में लोगों को बताएंगेे और एक नया जनआंदोलन खड़ा करेंगे।"
गीडा के प्रबंधक सिविल संजय ने बताया "अड़िलापार में सीईटीपी की स्थापना के लिए हमने 11 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया है। 62.5 करोड़ की लागत से 7.5 एमएलडी क्षमता के सीईटीपी का निर्माण किया जाना है। 20 करोड़ उत्तर प्रदेश शासन, 17 करोड़ रुपये गीडा और शेष 25.5 करोड़ नमामि गंगे मिशन से वित्त पोषण के लिये मांगा गया है। हमारे पास उत्तर प्रदेश शासन और गीडा के 37 करोड़ रुपये हैं। शासन की सहमति के अभाव में हम काम नहीं शुरू कर पा रहे हैं।"
कॉमन इंफ्लूएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) लगाने के लिये बनाई गई कार्यदायी संस्था ने अपनी रिपोर्ट में जल निगम को 35 एमएलडी क्षमता का सीईटीपी लगाने का सुझाव दिया था। बाद में इसे घटाकर 15 एमएलडी कर दिया गया और अब 7.5 एमएलडी क्षमता का सीईटीपी लगाने की बात की जा रही है।
प्रदूषण विभाग की दिसंबर 2020 की रिपोर्ट के अनुसार आमी नदी में घुलित ऑक्सीजन 6.4, पीएच लेवल 7.64, कैमिकल ऑक्सीजन डिमांड 38 और बॉयोकैमिकल डिमांड 7 मिली ग्राम प्रति लीटर है। पर्यावरणविद और मदन मोहन मालवीय इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रो. गोविंद पांडेय इस रिपोर्ट पर सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं "यदि आमी नदी के पानी का घुलित ऑक्सीजन 4 से अधिक है तो उसमें जलीय जीव-जंतुओं की मात्रा नगण्य क्यों है?