नदी

सरदार सरोवर बांध पर पीएम मोदी ने की नर्मदा की पूजा, लेकिन...

लबालब भरे सरदार सरोवर बांध के गेट पिछले कई दिनों से नहीं खोले जा रहे हैं, जिससे गुजरात सहित तीन राज्यों के दर्जनों गांव पानी में डूब चुके हैं

Anil Ashwani Sharma

आज यानी मंगलवार 17 सितंबर, 2019 को गुजरात सरकार का सपना साकार हुआ है और उसने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई 138.68 मीटर तक बांध को लबालब भर दिया है। यह दिन उसके लिए ऐतिहासिक है। चूंकि बांध का काम तो 2017 में ही पूरा हो गया था। तब से इसी बात के लिए गुजरात सरकार कोशिश में लगी हुई थी कि उसे बांध की पूरी ऊंचाई के बराबर पानी भरा जाना है। अब जब वह इस लक्ष्य को प्राप्त कर ही चुकी है तो यह देखना जरूरी है कि वह अपने इस कोशिश में कितनी कामयाब हुई है। आज ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 69वां जन्म दिन भी है और इस मौके पर वे बांध पर आकर नर्मदा माई की पूजा-अर्चना करेंगे। लेकिन इस खुशहाली के पीछे एक स्याह पक्ष भी छिपा हुआ है। जिस पर सरकारों ने मुंह मोड़ लिया है।

गुजरात सरकार इस बात के लिए इतरा रही है कि उसने आखिरकार बांध की पूरी ऊंचाई के बराबर तक जल स्तर भर ही दिया। उसी गुजरात के बांध से लगे हुए तीन जिलों में 135 गांव इस बांध में भरे पानी के कारण डूब चुके हैं और जिला प्रशासन ने अब तक 5,000 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है। यह काम जारी है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या गुजरात सरकार ने बांध में पानी भरने के लालच में अपनों को ही डुबोने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। जिन गांवों में भर चुका है, वे भरुच, नर्मदा और बड़ौदा जिले के हैं। जबकि मध्य प्रदेश के 178 गांव भी डूब गए हैं और 32 हजार परिवारों के सामने जीवन मरण का प्रश्न खड़ा हो गया है। 

गुजरात या  मध्य प्रदेश के ही नहीं, महाराष्ट्र के दर्जनों आदिवासी गांव भी सरदार सरोवर बांध की वजह से डूब चुके हैं। मणिबेली एक ऐसा गांव, जिसने दुनियाभर के बांधों पर सवाल खड़ा किया था। आज की तारीख में यहां भयावह स्थिति बनी हुई है। इस गांव के आदिवासी पहाड़ियों पर रहने पर मजबूर हैं। चूंकि इन्हें सही पुनर्वास नहीं मिला तो वे फिर अपने मूल गांव की ही पहाड़ियों पर आकर रहने लगे हैं। हालांकि इनके घर, जमीन और मवेशी सब कुछ डूब चुके हैं।

इस साल सरदार सरोवर बांध को संपूर्ण जलसंचय स्तर तक भरने का निर्णय के परिणामस्वरुप महाराष्ट्र के सैंकड़ों परिवारों के मकान और खेती डूब गए हैं। महाराष्ट्र के सैकड़ों परिवारों का पुनर्वास आज भी बाकी है, अनेक को जमीन देना, भूसंपादन, अघोषितों को घोषित करना, जमीन खरीदना, घर प्लाट देना, सीमांकन, जमीन नापना, सातबारा देना, घर का प्लीथ बनाना, बसाहटों मे अनेक मूलभूत सुविधाए की विविध समस्याए इत्यादि पुनर्वास के अनेक सवाल बाकी हैं। आज तक मणिबेली के नारायण भाई, नटवर भाई, मणिलाल काका, अर्जुनभाई...कई सारे इसीलिए तो मूल गांव में ही हैं। देव्याभाई जैसे कई हैं, जिनके पुत्र पुनर्वास के पात्र नहीं हैं तो बाल बच्चों के साथ टापू क्षेत्र में ही रहते हैं। मच्छिमारी सहकारी सोसाइटी से व दूसरों के खेतों में काम करके रोजी रोटी पाते हैं। 

मणिबेली बांध से प्रभावित होने वाला महाराष्ट्र का पहला गांव है, जिसमें मणिलाल गोवाल तडवी और अरविंद सोमा वसावे के घर पानी में है और अन्य 24 परिवारों के घर टापू बन गए हैं। इसके अलावा 1 स्कूल नर्मदा जीवनशाला, जिसमें 141 आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं, यह स्कूल तीन ओर से पानी घिर गए हैं। सैकड़ों हेक्टेयर फसल डूब चुकी है। ऐसी स्थिति में मणिबेली, धनखेडी, चिमलखेडी, बामणी, डनेल, मांडवा, मुखडी, सिंदूरी आदि डूब आ गई है। ऐसी गंभीर स्थिति में शासन का प्लान सिर्फ कागज पर है। इन सभी गांवों में अस्थाई रूप से रहने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है। महाराष्ट्र में 14 पुनर्वास स्थल बनाए  गए हैं लेकिन वहां भी मूलभूत सुविधाएं नहीं होने के कारण लोग अपने मूल गांव लौट आए हैं।