नदी

दुनिया में 17 फीसदी नदियां बची हैं, जो मुक्त प्रवाह से बह रही हैं: शोध

1970 के बाद से नदियों में रहने वाली प्रजातियों की आबादी में 84 फीसदी की कमी आई है

Dayanidhi

पूरी दुनिया में ऐसी नदियों की संख्या में बड़ी तेजी से गिरावट आई है, जो पूरी तरह मुक्त होकर बह रही हैं। इसका असर इन नदियों में रहने वाली प्रजातियों पर भी पड़ा है। एक नए अध्ययन में कह गया है कि दुनिया में केवल 17 फीसदी नदियां ऐसी बची हैं, जिनमें बह रहा पानी साफ व ताजा है। ये नदियां भी इसलिए बची हैं, क्योंकि ये उन क्षेत्रों में बह रही हैं, जिसे पहले ही संरक्षित घोषित किया जा चुका है। 

चिंताजनक बात है कि मछली, कछुए जैसी सैकड़ों प्रजातियां, जो साफ और ताजे पानी वाली नदियों में रहती हैं, उनकी संख्या में भी बेहद कमी दर्ज की गई है। यह अध्ययन बताता है कि 1970 के बाद से इन जीवों की आबादी में औसतन 84 फीसदी की कमी आई है। क्योंकि इन सालों के दौरान नदियों पर बांध बनाने, प्रदूषण, नदियों की धाराओं को मोड़ देने जैसी घटनाएं बढ़ी हैं। 

अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ प्रोफेसर इयान हैरिसन ने कहा कि इन नदियों में अब बदलाव अथवा संरक्षण की सख्त आवश्यकता है।

दुनिया इस साल के अंत में जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में नए संरक्षण लक्ष्य रखना चाहती है, वैज्ञानिक नीति निर्माताओं से ताजे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र और इसमें रहने वाली प्रजातियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने और भूमि और जल संरक्षण को बेहतर ढंग से जोड़ने की सिफ़ारिश कर रहे हैं।

ताजे पानी (फ्रेस वाटर) के सलाहकार जोनाथन हिगिंस ने कहा कि मुक्त रूप से बहने वाली नदियां और अन्य प्राकृतिक रूप से काम करने वाले ताजे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र जैव विविधता और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला, पेयजल, अर्थव्यवस्था और दुनिया भर के अरबों लोगों की संस्कृतियों को बनाए रखते हैं। इसलिए, इन मूल्यों को बनाए रखने के लिए उनकी सुरक्षा महत्वपूर्ण है।

जल संसाधन विशेषज्ञों का एक नया गठबंधन जिसमें शिक्षाविदों के साथ-साथ विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ), संरक्षण इंटरनेशनल और नेचर कंजर्वेंसी के प्रतिनिधि शामिल हैं।

इनका उद्देश्य मुक्त रूप से बहने वाली नदियों के लिए टिकाऊ सुरक्षा, नीति निर्माताओं के लिए एक खाका पेश करना है ताकि वे सबसे अच्छे और उपलब्ध विज्ञान को पर्यावरणीय कार्य योजनाओं के साथ जोड़ सकें। नदी संरक्षण पर विशेष रूप से केंद्रित कोई वैश्विक ढांचा नहीं है और समुद्री और स्थलीय प्रणालियों की तुलना में ताजे पानी की सुरक्षा पर कम ध्यान दिया गया है।

दुनिया भर के लेखकों ने 15 अध्ययनों का संग्रह, जिसमें वैज्ञानिक अनुसंधान, कानून, नीति और बहाली और प्रबंधन रणनीतियों को जमीनी स्तर पर लागू करने से मुक्त रूप से बहने वाली नदियों की सुरक्षा में चार चांद लग सकते हैं।

पेरी ने कहा कि ये पारिस्थितिकी तंत्र दुनिया में सबसे अधिक समझे तो जाते है लेकिन ये सब से कम संरक्षित हैं और इनमें कई प्रकार के बदलाव और गिरावट होने का खतरा बना रहता है। जिसमें सही तरीके से बांध का निर्माण करना, अत्यधिक जल निकासी और प्रदूषण शामिल हैं।

यह अपने आप में पहला शोध है जो बदलती जलवायु में नदियों की रक्षा की बात करता है और दुनिया भर में पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और आजीविका प्रदान करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है। शोधकर्ता ने कहा हमें अब नदियों की रक्षा के लिए काम करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने में विफल रहने पर आने वाले दशकों के लिए इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं।

स्थानीय केस स्टडी के आधार पर, जिसमें टिकाऊ नदी संरक्षण को परिभाषित करने का तरीका, विभिन्न नीति तंत्रों के माध्यम से मुक्त रूप से बहने वाली नदियों की रक्षा, ऑस्ट्रेलिया में मलकंबा-कोंगी झीलों रामसर साइट का प्रबंधन करना शामिल है। इस तरह की नदियां भारत, मंगोलिया, मैक्सिको, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका में भी हैं।

कई शोध ताजे पानी के पारिस्थितिकी तंत्र पर गहराई से नज़र डालते हैं और इनके बारे में जानकारी प्रदान करते हैं जिसे इन तरीकों को कहीं और भी लागू किया जा सकता है।

उत्तरी एरिजोना विश्वविद्यालय द्वारा किए गए इस शोध में कहा गया है कि नीति निर्माता दुनिया भर में नए संरक्षण लक्ष्यों को विकसित करने की बात करते हैं, विशेष रूप से नदी संरक्षण के लिए बेहतर लक्ष्यों को रखना। मुक्त रूप से बहने वाली नदियों के लिए स्पष्ट वैज्ञानिक प्रमाण हैं, जिनमें प्रवासी मछली को बनाए रखने की क्षमता और नदी के डेल्टा को बनाए रखने के लिए आवश्यक तलछट का पहुंचाना शामिल है।

धरती पर 50 करोड़ लोगों के लिए घर और कृषि उत्पादक भूमि तथा इसमें पानी की प्रमुख भूमिका होती है। इन सभी के कारण, शोधकर्ता नदी-बेसिन प्रबंधन रणनीतियों के हिस्से के रूप में मुक्त रूप से बहने वाली नदियों की सुरक्षा पर जोर देते हैं।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के प्रमुख और ताजे पानी के वैज्ञानिक जेफ ओपरमैन ने कहा हालांकि सभी स्वतंत्र रूप से बहने वाली नदियों का केवल 17 फीसदी हिस्सा ही संरक्षित क्षेत्रों में है, अधिकतर देशों में बड़ी नदियों के लिए सुरक्षा का स्तर बहुत कम है।