नदी

राजस्थान के हिंगोनिया बांध व बांदी नदी के क्षेत्र में नहीं हो कोई निर्माण: एनजीटी

संयुक्त समिति की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा, बिना अनुमति किया जा रहा निर्माण, नदी के प्राकृतिक प्रवाह में बन रहा बाधा। अदालत ने अधिकारियों, बिल्डरों से मांगा जवाब

Susan Chacko, Lalit Maurya

  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने जयपुर के कलेक्टर को हिंगोनिया बांध और बांदी नदी के प्रतिबंधित क्षेत्र में किसी भी निर्माण पर रोक लगाने का आदेश दिया है।

  • एनजीटी ने अवैध निर्माण और पर्यावरण नियमों के उल्लंघन की रिपोर्ट के बाद यह फैसला लिया।

  • मामले की अगली सुनवाई 28 अक्टूबर 2025 को होगी।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 23 सितंबर 2025 को जयपुर के कलेक्टर को सख्त निर्देश दिए हैं कि हिंगोनिया बांध और बांदी नदी के प्रतिबंधित क्षेत्र में किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। एनजीटी ने अधिकारियों और निजी बिल्डरों सहित मामले से जुड़े लोगों से भी जवाब तलब किया है।

गौरतलब है कि एनजीटी का यह आदेश संयुक्त समिति की उस रिपोर्ट के बाद आया है, जिसमें खुलासा किया गया है कि इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण और पर्यावरण नियमों का उल्लंघन हो रहा है।

इस मामले में अगली सुनवाई 28 अक्टूबर 2025 को होगी। याचिकाकर्ता की शिकायत ऐतिहासिक हिंगोनिया की सुरक्षा, अतिक्रमण व पर्यावरण मानदंडों के उल्लंघन से जुड़ी है।

क्या है मामला

याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि लो और हाई लेवल बूकनी नहरों पर भी अतिक्रमण हुआ है, जिससे नहर के किनारे क्षतिग्रस्त हो गए हैं और पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचा है।

इसके चलते हिंगोनिया बांध के जलग्रहण क्षेत्र में जलप्रवाह बाधित हो गया है, लेकिन संबंधित अधिकारियों ने कई नोटिस और स्थानीय ग्रामीणों के विरोध के बावजूद इन अतिक्रमणों को हटाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की है। मौजूदा समय में चल रहे व्यावसायिक अतिक्रमण, कचरा जमा करना और वनों की कटाई जलापूर्ति को रोक रहे हैं, इसका पर्यावरण पर गंभीर नकारात्मक असर पड़ रहा है।

इसी तरह अवैध कॉलोनियां, सड़कें, होटल और मिट्टी भराव से बांध और बांदी नदी का प्राकृतिक प्रवाह रुक रहा है।

अदालत ने इस मामले में जल संसाधन विभाग, शहरी विभाग, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की एक संयुक्त समिति का गठन किया था, जिसे तथ्यात्मक रिपोर्ट और किए गए कार्यों की जानकारी प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। संयुक्त समिति के सदस्यों ने अपनी रिपोर्ट में गंभीर उल्लंघनों को उजागर किया। उन्होंने बांध के स्लूइस गेट का दौरा किया और देखा कि बांध में जलस्तर महज पांच फीट 8 इंच था।

समिति रिपोर्ट में क्या कुछ आया है सामने

संयुक्त समिति ने देखा कि मंगलम बिल्डर्स ने बांध के डूब क्षेत्र में राष्ट्रीय राजमार्ग 48 से बांध तक करीब 2 किलोमीटर लंबी एक सड़क और आवासीय कॉलोनी विकसित की है। इसके अलावा, पंचशील कॉलोनाइजर्स का पंचशील पार्क, विराट सिटी और बृजाशा कंस्ट्रक्शन का बृजाशा ओशन नामक तीन आवासीय परियोजनाएं भी बांध के डूब क्षेत्र में बन रही हैं, जो वर्तमान में निर्माणाधीन हैं।

समिति ने यह भी देखा कि राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर बांदी नदी के ऊपर बने पुल के पास करीब 350 मीटर लंबी एक पुरानी सर्विस सड़क है। यह सड़क राजमार्ग पुल के निर्माण के दौरान अस्थाई यातायात मार्ग के रूप में बनाई गई थी, लेकिन यह सड़क बांदी नदी के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डाल रही है, जो हिंगोनिया बांध तक जाती है। दौरे के दौरान समिति ने यह भी देखा कि डूब क्षेत्र में मिट्टी भरी जा रही है। करीब दो किलोमीटर लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग-48 भी बांध के डूब क्षेत्र से गुजर रहा है।

हिंगोनिया बांध से चार नहरें निकलती हैं, जो कई गांवों जैसे बुकनी, हिंगोनिया, कंस्या और रटखेरा में सिंचाई के लिए बांध के नीचे की ओर जाती हैं। दौरे के दौरान रटखेरा नहर में पानी बह रहा था। समिति ने देखा कि रटखेरा नहर के किनारे एक कम्युनिटी सेंटर भी बनाया गया है।

इसके अलावा, बुकनी नहरों का प्रवाह मंगलम बिल्डर्स की भूमि से गुजरने वाली वीआरबी पाइपलाइन द्वारा बाधित हो रहा है।

बांदी नदी के किनारे, बांध से करीब एक किलोमीटर नीचे की ओर, ग्रासफील्ड रिवेरा रिसॉर्ट नामक एक होटल बनाया गया है। इस होटल ने न तो राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कोई मंजूरी ली है और न ही जल संसाधन विभाग से कोई एनओसी प्राप्त की है।

इसके अलावा, होटल ने बिना किसी अनुमति के बांदी नदी पर 350 मीटर लंबी और 20 मीटर चौड़ी सड़क बना दी है। यह सड़क बांदी नदी के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा डाल रही है।

बांदी नदी के किनारे मंगला बिल्डर्स टाउनशिप प्रोजेक्ट के पास एक रेत की दीवार भी बनाई गई है, जो नदी के प्राकृतिक प्रवाह को प्रभावित कर रही है। संयुक्त समिति ने सिफारिश की है कि सभी अतिक्रमण और बाधाओं को हटाया जाना चाहिए।

निरीक्षण के दौरान जल संसाधन विभाग ने समिति को बताया कि डूब क्षेत्र, प्रवाह क्षेत्र और जलग्रहण क्षेत्रों में जमीन का रूपांतरण स्थानीय राजस्व विभाग या जयपुर विकास प्राधिकरण (जेडीए) द्वारा किया जा रहा है। इसके लिए जल संसाधन विभाग की अनुमति या एनओसी नहीं ली गई है।