गंगा का पावन जल न केवल शरीर बल्कि मन को भी स्वच्छ कर देता है; फोटो: आईस्टॉक 
नदी

स्नान योग्य जल गुणवत्ता मानदंडों पर खरा है उत्तर प्रदेश में गंगा का अधिकांश हिस्सा: सीपीसीबी

हालांकि, कुछ क्षेत्र इन मानकों को पूरा नहीं करते, इनमें फर्रुखाबाद से पुराना राजापुर और कन्नौज से कानपुर में गंगा पुराना राजापुर तक का हिस्सा शामिल है

Susan Chacko, Lalit Maurya

2024 के जल गुणवत्ता आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में गंगा का अधिकांश हिस्सा स्नान योग्य पानी के लिए निर्धारित बुनियादी जल गुणवत्ता मानकों को पूरा करता है।

इसमें पीएच, घुलित ऑक्सीजन (डीओ), बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी), फीकल कॉलीफॉर्म (एफसी) और फीकल स्ट्रेप्टोकोकी (एफएस) शामिल हैं। हालांकि, कुछ क्षेत्र इन मानकों को पूरा नहीं करते, इनमें फर्रुखाबाद से पुराना राजापुर तक और कन्नौज से कानपुर में गंगा पुराना राजापुर तक का हिस्सा शामिल है।

यह जानकारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 22 अक्टूबर, 2024 को अपनी रिपोर्ट में साझा की है। बता दें कि यह रिपोर्ट एनजीटी द्वारा 13 सितंबर, 2024 को दिए आदेश पर कोर्ट में सबमिट की गई है। मामला गंगा नदी से प्रदूषण को दूर करने से जुड़ा है।

गौरतलब है कि एनजीटी द्वारा दिए आदेश पर सीपीसीबी ने उत्तर प्रदेश में नालों, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों और गंगा की जल गुणवत्ता की स्थिति के बारे में जिलेवार जानकारी साझा की है। 2023 में मानसून के बाद से सीपीसीबी ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ मिलकर 326 नालों की निगरानी है जो सीधे गंगा और उसकी सहायक नदियों में गिरते हैं। इन नालों में सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट और सतह पर बहने वाले पानी का अपवाह मिलता है।

इन निगरानी किए गए 326 नालों में से 101 विभिन्न सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से जुड़े थे। बरेली, बुलंदशहर, कानपुर, मेरठ और मुरादाबाद जैसे शहरों के नालों में उच्च प्रवाह के साथ बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) का स्तर अधिक पाया गया।

बरेली में तीन नाले रामगंगा में गिरते हैं, जिनका कुल प्रवाह 31.14 करोड़ लीटर प्रतिदिन और बीओडी लोड 18.8 टन प्रतिदिन (टीपीडी) है। वहीं बुलंदशहर में बारह नाले काली नदी में गिरते हैं, जिनका कुल प्रवाह 12.9 करोड़ लीटर प्रतिदिन और बीओडी लोड 20.7 टन प्रतिदिन है।

रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में गंगा के किनारे 16 शहरों में 41 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) हैं। अप्रैल से जुलाई 2024 तक की गई सीपीसीबी की निगरानी के अनुसार, इनमें से 35 एसटीपी काम कर रहे हैं, जबकि छह चालू नहीं थे।

इससे पहले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने सात अगस्त, 2024 को एनजीटी के समक्ष दायर अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी थी कि गंगा नदी बेसिन के अधिकांश हिस्सों में जल गुणवत्ता नहाने योग्य पानी के लिए तय गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं है।

इस रिपोर्ट में गंगा, ब्रह्मपुत्र के साथ उनकी सहायक नदियों की जल गुणवत्ता की जांच की गई और यह जानने का प्रयास किया गया था कि इनका पानी नहाने के लिए निर्धारित मानकों के मुताबिक सुरक्षित है या नहीं। रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में 114 में से 97 स्थान पर जल गुणवत्ता मानकों पर पूरी तरह खरी नहीं है।

इसी तरह बिहार में सभी 96 स्थान जल गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं करते हैं।

बता दें कि इस बार कुंभ मेला प्रयागराज में जनवरी, 2025 के में होगा। ऐसे में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी कहा था कि कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालु न सिर्फ गंगा-यमुना में डुबकी लगाते हैं बल्कि वह इसके जल का इस्तेमाल पीने के लिए भी करते हैं। ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार को सीवेज की रोकथाम को लेकर समयबद्ध तरीके से प्रयास तेज करने चाहिए।

डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुल 81 नालों के जरिए 289.97 मिलियन लीटर प्रतिदिन (एमएलडी) सीवेज निकलता है, जिसमें से महज 178.31 एमएलडी सीवेज ही मौजूदा दस सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में सीवेज नेटवर्क के जरिए पहुंचता है, जिसका सीधा अर्थ है कि 128.28 एमएलडी सीवेज का उपचार नहीं किया जा रहा है।

वहीं बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दस अक्टूबर 2024 को एनजीटी में सौंपी अपनी जल गुणवत्ता विश्लेषण रिपोर्ट में जानकारी दी है कि गंगा की जल गुणवत्ता पीएच, घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ), और बीओडी के मानकों को तो पूरा करती है। हालांकि, वो स्नान के लिए सुरक्षित आवश्यक बैक्टीरियोलॉजिकल मानकों जैसे टोटल कोलीफॉर्म और फीकल कोलीफॉर्म पर खरी नहीं है।

इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने एक मई, 2024 को दिए अपने आदेश में राज्य और जिला अधिकारियों को पानी की गुणवत्ता का विश्लेषण करने के बाद रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया था। उन्हें उन जगहों से नमूने एकत्र करने का निर्देश दिया गया जहां सहायक नदियां गंगा में मिलती हैं और राज्य में नदी के प्रवेश और निकास बिंदुओं से उसके नमूने लेने के लिए कहा गया था।