प्रतीकात्मक तस्वीर 
नदी

चंबल के लिए खतरा बना खनन व औद्योगिक प्रदूषण, संकट में हैं घड़ियाल-डॉल्फिन जैसे जीव

कोटा में हर दिन 31.2 करोड़ लीटर गंदा पानी पैदा होता है, लेकिन उसमें से केवल पांच करोड़ लीटर ही साफ हो पा रहा है

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (आरएसपीसीबी) से चंबल के किनारे मौजूद उद्योगों पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है।

कोर्ट के निर्देशानुसार रिपोर्ट में इस बात का ब्यौरा शामिल होना चाहिए कि क्या कोई उद्योग पर्यावरण नियमों का उल्लंघन कर रहा है और क्या नदी में दूषित पानी छोड़ा जा रहा है। साथ ही 18 सितंबर, 2024 को दिए इस आदेश में राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी इन मुद्दों को हल करने के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा गया है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को 22 अक्टूबर, 2024 तक ट्रिब्यूनल के समक्ष उनके द्वारा की गई कार्रवाइयों के बारे में अपडेट प्रस्तुत करना होगा।

आवेदक के वकील ने कोर्ट को जानकारी दी है कि संयुक्त समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में चंबल में हो रहे अनियंत्रित रेत खनन और बहुत ज्यादा मात्रा में होते मछलियों के शिकार को लेकर सजग किया था। इसकी वजह से संकट ग्रस्त घड़ियाल और गंगा नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिन जैसी दुर्लभ प्रजातियों के लिए खतरा पैदा हो गया है।

कोटा में हर दिन 31.2 करोड़ लीटर गंदा पानी पैदा हो रहा है, लेकिन उसमें से केवल पांच करोड़ लीटर ही यहां मौजूद दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की मदद से साफ हो पा रहा है। ऐसे में राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जल प्रदूषण अधिनियम के तहत कोटा नगर निगम को नोटिस जारी कर चंबल में दूषित सीवेज छोड़ने से रोकने को कहा है।

हालांकि, अधिकारियों ने इस पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। ऐसे में एनजीटी की सेंट्रल बेंच ने कोटा नगर निगम को इस मुद्दे पर जवाब देने का आदेश दिया है।

क्या सीपीसीबी के दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रही है राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी अधिसूचना

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की सेंट्रल बेंच ने 18 सितंबर, 2024 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से दो सदस्यीय आंतरिक समिति गठित करने को कहा है। यह समिति राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दो जनवरी, 2024 को जारी अधिसूचना की समीक्षा करेगी।

समिति को इस बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है कि क्या यह अधिसूचना सीपीसीबी या पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के किसी प्रावधान का उल्लंघन करती है। साथ ही समिति को इस बात की भी जांच करनी है कि क्या पिछले आदेश, जिसमें पर्यावरण क्षतिपूर्ति की गणना से छूट दी गई है, उसे संशोधित किया जा सकता है।

यह मामला राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दो जनवरी, 2024 को दिए आदेश से जुड़ा है, जिसमें पर्यावरण क्षतिपूर्ति माफ करने के लिए कुछ प्रावधानों में छूट दी गई है। आरोप है कि यह आदेश पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन करता है।

इसमें मुख्य मुद्दा धारा ‘डी’ है, जिसमें कहा गया है, “उस पिछली अवधि के लिए कोई पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति नहीं ली जाएगी, जिसके दौरान परिचालन की सहमति को नियमित किया गया है।”

यह भी आरोप है कि सीपीसीबी ने राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सूचित किया है कि औद्योगिक इकाइयों को सीपीसीबी द्वारा वर्गीकृत श्रेणियों के अनुसार सहमति प्राप्त करनी होगी, और एसपीसीबी ने यह जानकारी संबंधित अधिकारियों और इकाइयों को दे दी है।

न्यायाधिकरण के समक्ष प्रश्न यह था कि क्या  राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी निर्देश सीपीसीबी के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हैं।

यह तर्क दिया गया है कि आरएसपीसीबी द्वारा जारी अधिसूचना, जिसमें पिछले उल्लंघनों को छूट दी गई है, अप्रत्यक्ष रूप से इकाइयों को बिना सहमति के संचालन और पर्यावरण संबंधी मुआवजे के भुगतान से बचने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इसकी वजह से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।

इसके अलावा अधिसूचना "पर्यावरण मुआवजे की गणना के लिए पूरे देश में लागू होने वाले कानून और 'कानून के शासन की समानता' का उल्लंघन करती है।