नदी

मैक्सिको के किसानों ने बांध कब्जाया, अमेरिका को पानी देने से किया इंकार

Anil Ashwani Sharma

अब तक बांधों का विरोध, रैली या उस बांध के खिलाफ आंदोलन की बात आमतौर पर सुनने और पढ़ते को मिलती रही है। लेकिन जब अन्नदाता (किसानों) का सब्र का बांध टूट जाता है तो मानव निर्मित बांध पर कब्जाने में वह पीछे नहीं रहता। आखिरकार उसके अस्तित्व का संकट है। और इस संकट से उबरने के लिए वह कुछ भी कर गुजरने का माद्दा रखता है। ऐसा ही कुछ वाक्या मैक्सिको में घटा। और वहां के किसानों ने बकायदा देशी हथियारों से लैस होकर बांध ही कब्जा लिया। इस घटना के संबंध में मैक्सिको के किसानों का कहना है कि हमारी सरकार अमेरिकी दबाव में हमारा पानी टैक्सास (अमेरिकी राज्य) को दे रही है जबकि उनकी फसलों के लिए एक बूंद पानी बांध से अब तक नहीं छोड़ा गया है। इसलिए किसानों ने अगले एक माह तक बांध पर कब्जा कर अमेरिका को पानी देने से इंकार कर दिया है। इस मामले में किसानों को सबसे अधिक इस बात का दुख है कि जिस सरकार को उन्हें चुना है, वही उनका साथ न दे कर अमेरिका का साथ खड़ी दिख रही है  

मेक्सिको और अमेरिका की अंतराष्ट्रीय सीमा पर स्थित बोक्विला बांध की सुरक्षा करने के लिए सैंकड़ों सैनिकों की तैनाती होने के बावजूद किसानों ने खुद को लाठी और अन्य देशी हथियारों से अपने को लैस हो कर सीमाक्षेत्र स्थित बांध पर कब्जा कर लिया। किसानों का कहना है की मेक्सिकन सरकार उनके हिस्से का पानी टेक्सास को भेज रही है जबकि उनकी फसलों के लिए कुछ भी पानी अब तक नहीं छोड़ा गया है। इसलिए उन्होने बांध पर एक महीने से भी ज्यादा समय के लिए कब्जा कर लिया है और अमेरिका को पानी देने से इंकार कर दिया है। किसानों की ओर इस काम में मदद करने वाले विक्टर वेलडर्रेन का कहना है कि यह किसानों के अस्तित्व की लड़ाई है, किसानों को जीवित रहने के लिए और अपनी फसल को तैयार कर अपने परिवार का पालनपोषण करने के लिए यह कदम उठाना जरूरी हो गया था।

ध्यान रहे कि अमेरिका और मेक्सिको पानी को लेकर लंबे समय से चल रहे तनाव ने अब हिंसा का रूप ले लिया है और मैक्सिकन किसानों को अपने ही राष्ट्रपति और वैश्विक महाशक्ति के खिलाफ खड़ा कर दिया है।
दोनों देशों के बीच पानी के आदान-प्रदान पर बातचीत काफी लंबे समय से चल रही है, लेकिन बढ़ते तापमान और सूखे ने सीमा पर साझा नदियों को पहले से कहीं ज्यादा मूल्यवान बना दिया है, जिससे दोनों देशों का नदियों के पानी को लेकर अपने दांवपेच तेज हो गए हैं। किसानों द्वारा बांध पर अधिग्रहण इस बात का उदाहरण है कि लोग जलवायु परिवर्तन से अपनी आजीविका की रक्षा करने के लिए कितना भी बड़ा भी कदम उठा सकते हैं। इस तरह के संघर्ष बढ़ते चरम मौसम के कारण और अधिक बढ़ सकते हैं।

पानी के अधिकार को लेकर अमेरिका और मेक्सिको के बीच एक दशक पुरानी संधि की गई थी। जिसमें कोलोराडो और रियो ग्रांडे नदियों के प्रवाह को साझा करने की बात कही गई है। अब तक दोनों देश एक-दूसरे को पानी भेजते रहे हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से अमेरिका को दिए जाने वाले पानी के मामले में मेक्सिको ने अपने दायित्वों का निर्वाह ठीक से नहीं किया। यह संघर्ष इसी का नतीजा है। लेकिन मेक्सिको के चिहुआहुआ राज्य के लिए पिछले तीन दशकों में 2020 का वर्ष सबसे अधिक सूखे वर्षों में से एक है। इस सीमावर्ती राज्य से ही पानी भेजा जाता है, लेकिन सूखे के कारण वह नहीं भेज पा रहा है। ऐसे में जब मेक्सिको सरकार ने दबाव बनाया तो उसके खिलाफ किसानों ने विद्रोह कर दिया। क्योंकि उन्हें लगा कि यदि पानी ही नहीं रहेगा तो अपनी खेती कैसे करेंगे। इस संबंध में एरिजोना विश्वविद्यालय में जल संसाधन नीति पढ़ाने वाले क्रिस्टोफ़र स्कॉट ने कहा, यह तनाव और इस प्रकार की प्रवृत्तियां पहले से ही हैं लेकिन वास्तव में यह सब जलवायु परिवर्तन के कारण और बढ़ गईं हैं। उन्होंने किसानों की इस लड़ाई को उनके जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई करार दी क्योंकि जब पानी ही नहीं रहेगा तो जीवन, खेती और न ही कोई ग्रामीण समुदाय ही बचेगा।

ध्यान रहे कि फरवरी, 2020 से अमेरिका में जल वितरण सुनिश्चित करने के लिए मेक्सिको सरकार ने संघीय बलों को बांध पर तैनात कर दिया था। तब इसके प्रतिक्रिया स्वरूप चिहुआहुआ में कार्यकर्ताओं ने सरकारी इमारतों को जला दिया, कारों को नष्ट कर दिया और कुछ समय के लिए नेताओं के एक समूह तक को बंधक बना लिया था। यही नहीं हफ्तों प्रदर्शनकारियों ने मेक्सिको और अमेरिका के बीच औद्योगिक वस्तुओं को लाने- लेजाने वाले एक प्रमुख रेलमार्ग तक को ब्लॉक कर दिया था। इसके बाद मेक्सिको के राष्ट्रपति एन्ड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर (ये बार-बार राष्ट्रपति ट्रंप के इमीग्रेशन की मांगों के आगे झुकते रहे हैं ) ने अमेरिका से वायदा किया कि उनका देश अमेरिका को हर हाल में पानी भेजेगा, इसके लिए भले ही उनके अपने चिहुआहुआ राज्य के लोगों को यह पसंद हो या न हो। यही कारण है कि उन्होंने चिहुआहुआ के बांधों की रक्षा के लिए नेशनल गार्ड के सैकड़ों सदस्यों को भेजा है और उनकी सरकार ने अस्थायी रूप से शहर से उन बैंक खातों को फ्रीज कर दिया है, जहां कई प्रदर्शनकारी रहते हैं। किसानों के लिए सरकार का यह रूख बहुत ही विश्वासघाती है।
किसानों की मदद करने वाले वेल्ड्रेन ने कहा, बोक्विला बांध पर जो हुआ, वह प्रभावशाली था, क्योंकि हमने अपने किसानों वाले कपड़े उतार दिए और गुरिल्ला लड़ाकों की वर्दी पहन ली थी।

वहीं दूसरी ओर मेक्सिको की संघीय सरकार का कहना है कि प्रदर्शनकारी किसान पानी को रोककर दूसरे मेक्सिकोवासियों को भी चोट पहुंचा रहे हैं। मेक्सिको के राष्ट्रीय जल आयोग के प्रमुख ब्लैंका जिमनेज ने कहा, किसी भी दूसरे पेशे की तरह कृषि में भी जोखिम है। जोखिमों में कुछ ऐसे वर्ष होते हैं जब चरम मौसम के कारण एक ही समय में अधिक बारिश हो जाती है या इसके चलते कम बारिश भी होती है। इस साल चिहुआहुआ सूखे के कारण वह अमेरिका के लिए पानी देने में पीछे रह गया। अब मेक्सिको को कुछ हफ्तों में ही अपने औसत वार्षिक जल भुगतान का 50 प्रतिशत से अधिक जल भेजना होगा। टैकसास ने यह भी तर्क दिया कि दोनों देशों के बीच 1944 में हस्ताक्षर किए गए जल-साझाकरण समझौते से मेक्सिको को ज्यादा लाभ होता आया है। राज्य के गवर्नर एबॉट ने बताया है कि अमेरिका अपने पड़ोसी से जितना पानी प्राप्त करता है, उससे लगभग चार गुना ज्यादा मेक्सिको को भेजता है। इस समस्या पर विशेषज्ञों का कहना है कि 1990 के दशक में उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद से मेक्सिको के लिए पानी की जरूरत बढ़ गई है।

अपने पिता के साथ खेतों का प्रबंधन करने वाला मेक्सिकोवासी 23 वर्षीय फ्रांसिस्को मार्ता को संदेह है कि पानी के विवाद में उनके साथी किसानों के प्रति मैक्सिकन राष्ट्रपति की सहानुभूति होगी क्योंकि हम गरीब और श्रमिक वर्ग उनके राजनीतिक आधार के सदस्य नहीं हैं। किसान उत्तर में रहते हैं जो की परंपरागत रूप से लोपेज ओबराडोर के खिलाफ एक गढ़ माना जाता है। मार्ता ने कहा, उनका मानना है कि वे अमीर हैं और उनके साथ कुछ भी नहीं होगा लेकिन यह सच नहीं है। वहीं दूसरी ओर लोपेज ओब्रेडोर ने राजनेताओं और और बड़े कृषकों पर चिहुआहुआ में भयंकर संघर्ष के लिए जिम्मेदार ठहराया है।