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मेधा पाटकर के अनशन खत्म होने के बाद भी खड़े हैं ये सवाल

मेधा पाटकर ने कहा है कि मध्य प्रदेश सरकार ने 9 सितंबर की बैठक में कोई ठोस योजना पेश नहीं की तो वह फिर से अनशन शुरू कर देंगी

Manish Chandra Mishra

नर्मदा बचाओ आंदोलन के तहत बड़वानी में 9वें दिन मेधा पाटकर ने मध्यप्रदेश सरकार के आश्वासन पर अनशन तो समाप्त कर दिया है, लेकिन अब तक केंद्र और गुजरात सरकार की ओर से आंदोलन को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। जबकि गुजरात में सरदार सरोवर बांध अब भी लबालब भरा है। वहीं, अनशन समाप्त होने के बाद अस्पताल में भर्ती मेधा पाटकर ने स्पष्ट किया है कि 9 सितंबर को मध्य प्रदेश सरकार के साथ बैठक में कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला तो वह फिर से अनशन शुरू कर देंगी। 

सोमवार को अनशन खत्म करने आए पूर्व मुख्य सचिव एससी बेहर से तकरीबन ढाई घंटे की चर्चा में मेधा पाटकर ने कहा कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (नघाविप्रा) की अब तक की पुनर्वास प्रक्रिया को प्रभावितों के अधिकारों के खिलाफ रही है। उन्होंने मांग की कि तुरंत निर्णय लेकर ठोस कार्रवाई करते हुए सभी का समयबद्ध तरीके से पुनर्वास किया जाए। पाटकर ने सरकार को चेताया कि नघाविप्रा में दशकों से जमे भ्रष्ट अधिकारी सरकार की अच्छी मंशा पर पानी फेर सकते हैं।

हालांकि अब तक सरकार की तरफ से आंदोलनकारियों को सिर्फ आश्वासन ही मिला है। मेधा पाटकर को आश्वासन देते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि राज्य सरकार का पूरा प्रयास होगा कि बांध के गेट खोले जाएं। मुख्यमंत्री ने पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े प्रभावितों को आश्वस्त किया है कि राज्य सरकार डूब प्रभावितों के पूर्ण पुनर्वास के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार गांवों में शिविर लगाकर पुनर्वास के मामलों की सुनवाई करेगी।

गुजरात और केंद्र पर मध्यप्रदेश सरकार का कितना जोर?

मध्यप्रदेश सरकार नर्मदा के विस्थापितों के पुनर्वास पर अपनी आवाज उठा सकती है, लेकिन मेधा पाटकर का आरोप रहाा है कि मध्य प्रदेश सरकार वह काम भी ठीक से नहीं कर रही है। उन्होंने बताया कि अनशन तुड़वाने के दौरान हो रही चर्चा में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के कमिश्नर ने प्रभावित गांवों की संख्या 178 बताई, लेकिन नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) को मुख्य सचिव द्वारा लिखे गए पत्र में प्रभावित गांवों की संख्या केवल 66 और प्रभावित परिवारों की संख्या 6000 बताई गई है। उन्होंने कहा कि सरकार को इसे सुधारना चाहिए। 

इधर, कमलनाथ ने भी अपने बयान में माना कि सरदार सरोवर एक अंतर्राज्यीय परियोजना है, जिसमें गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान एवं मध्यप्रदेश सहभागी है। किसी एक राज्य द्वारा कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सकता है। ऐसे में, यह सवाल उठता है कि केवल मध्य प्रदेश सरकार नर्मदा आंदोलनकारियों को कैसे संतुष्ट कर पाएगी?  

मध्यप्रदेश की बात नहीं मान रहा गुजरात

मुख्यमंत्री ने माना कि सरदार सरोवर बांध में जल भराव कार्यक्रम और निर्णय नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण द्वारा तैयार किया जाता है। यह प्राधिकरण वर्तमान में निष्पक्ष रूप से कार्य नहीं कर रहा है। मध्यप्रदेश शासन इस जल भराव का विरोध कर रहा है और इसके लिए मुख्य सचिव ने इसी वर्ष 27 मई को प्राधिकरण से जल भराव कार्यक्रम के पुनरीक्षण की मांग पर चर्चा हेतु प्राधिकरण की बैठक बुलाने का अनुरोध किया था। प्राधिकरण ने इस अनुरोध को गंभीरता से नहीं लिया और 21 अगस्त को नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण की बैठक रखी और फिर उसे 20 अगस्त को स्वयं ही निरस्त कर दी। इसके बाद अपर मुख्य सचिव, नर्मदा घाटी विकास विभाग ने भी अध्यक्ष, नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण से नई दिल्ली जाकर इस संबंध में चर्चा की। इस चर्चा में भी वर्तमान में बांध में जल भराव नहीं किये जाने का अनुरोध किया गया है।