नदी

नर्मदा घाटी के विस्थापितों ने मनाया धिक्कार दिवस, विस्थापितों के 1858 करोड़ रुपए लंबित

अब उन 6000 परिवारों का भी सर्वे किया जा रहा है जिन्हें वंचित कर दिया गया था। नर्मदा बचाओ आंदोलन के मुताबिक यह संख्या 6000 नहीं बल्कि अब बढ़कर 32 हजार से भी अधिक हो गई है।

Vivek Mishra

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने 69वें जन्मदिन पर सरदार सरोवर बांध पहुंचे। इस दौरे से पहले ही बांध अपनी पूरी ऊंचाई 138.68 मीटर तक लबालब भर गया। दरअसल, 17 सितंबर, 2017 को प्रधानमंत्री ने पर्यावरण और पुनर्वास उपदल की बिना मंजूरी के ही सरदार सरोवर बांध को पूरा भरने के लिए बांध के सभी दरवाजे बंद करने का आदेश दे दिया था। बांध का जलाशय भरते ही वह सारी खामियां उजागर हो गईं जो बांध निर्माण के दौरान ही आशंका के तौर पर जाहिर की जा रही थीं। कई ऐसे गांव डूब गए जो सर्वेे में निकाल दिए गए थे या फिर उनकी गिनती ही नहीं की गई थी। जलाशय भरते ही कई परिवारों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा है। न ही पुनर्वास हो सका और न ही किसी तरह का मुआवजा उनके हाथ है।

लिहाजा प्रधानमंत्री के दौरा स्थल से ही कुछ फासले पर जलमग्न हुए गांवों के पीड़ित लोग और बांध के विस्थापितों ने मेधा पाटकर की अगुवाई में 17 सितंबर, 2019 को धिक्कार दिवस मनाया। विरोध में लोगों ने मुंडन कराए, पीएम नरेंद्र मोदी का पुतले को भी नर्मदा में जलसमाधि दी गई।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की अगुवा मेधा पाटकर ने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि नर्मदा घाटी की संस्कृति और प्रकृति विनाश के कगार पर है। प्रधानमंत्री ने मात्र अपना जन्मदिवस मनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट और नर्मदा घाटी प्राधिकरण के आदेश और फैसलों के विरुद्ध बांध भरने के लिए मंजूरी दी है। आदेश का उल्लंघन कर बांध में पूरा पानी भर दिया गया। इसका हम धिक्कार करते हैं। मध्य प्रदेश के कई गांव जलमग्न हैं तो गुजरात के कच्छ में पीने के लिए पानी नहीं है। यह सभी का विकास नहीं है।

बिहार से आंदोलन में शामिल होने पहुंचे कोशी नव निर्माण मंच के महेंद्र यादव ने डाउन टू अर्थ से बताया कि विस्थापितों के पुनर्वास का काम अभी तक नहीं किया गया है। वहीं, बांध के पानी के चलते कई गांव जलमग्न हो गए हैं। इससे पता चलता है कि बांध के सर्वेक्षण में धांधली की गई। वहीं, पानी के बांध की पूर्ण ऊंचाई तक पहुंचते ही वे गांव भी डूब गए जिन्हें डूब क्षेत्र से बाहर बताया गया था।

28,000 से अधिक परिवारों के घरों में पानी घुसने के बाद उन्हें मजबूरी में बाहर निकलना पड़ा है। न मुआवजा है और न ही कोई राहत। पूर्ण पुनर्वास की घोषणा के तहत नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने जिन 6000 परिवारों को को डूब में बताया अब उनका भी सर्वे किया जा रहा है। इन्हें पहले डूब क्षेत्र के लाभ से वंचित कर दिया गया था। जिनके पास मवेशी हैं उनकी हालत और भी ज्यादा खराब है।  9 सितंबर को मध्य प्रदेश शासन ने इन परिवारों के पुनर्वास का पूरा आश्वासन दिया था। हालांकि, पुनर्वास के आंकड़े पर भी सवाल है और नर्मदा बचाओ आंदोलन के मुताबिक पुनर्वास होने वाले परिवारों की संख्या 6000 नहीं बल्कि अब बढ़कर 32 हजार से भी अधिक हो चुकी है।

2005 में धार जिले के कटनेरा गांव में 2000 परिवारों को सर्वे से बाहर कर दिया गया था। अब इन परिवारों का सर्वे किया जा रहा है। इसी तरह बड़वानी में राजघाट गांव भी जलमग्न है जहां किसी तरह से लोग बाहर निकल रहे हैं। धार जिले में ही कडमाल  गांव में भी पुनर्वास से जुड़े आवेदन दिए जा रहे हैं। धार जिले का ही चिखल्दा और एकलवारा भी डूब चुका है। जबकि बड़वानी में सेगांवा गांव की स्थिति बेहद खराब है। इन इलाकों में सरदार सरोवर बांध बनाते वक्त सर्वे ठीक से नहीं किया गया था अब इन्हें अचानक बाहर निकलने के लिए कहा जा रहा है।

30 जुलाई, 2019 का एक सरकारी पत्र  है जिसमें मध्य प्रदेश में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की उप सचिव ने गुजरात के नर्मदा विकास प्राधिकरण को भूमि अधिग्रहण, विस्थापितों के लिए लिखित भुगतान की मांग की है। इस पत्र के मुताबिक मध्य प्रदेश में विस्थापितों के 1858 करोड़ रुपये लंबित है। इससे पता चलता है कि मुआवजा और पुनर्वास का वादा सिर्फ छलावा थी। अभी तक न ही मुआवजा दिया गया है और न ही विस्थापितों का पुनर्वास किया गया है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के लोगों ने कहा कि वे अपने मुद्दों पर अंत तक लड़ेंगे। मेधा पाटकर ने कहा कि 34 वर्षों से यह संघर्ष जारी है और न्याय तक जारी रहेगा।