दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन महाकुंभ उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में 13 फरवरी से शुरू हो जाएगा। सरकार का मानना है कि इस बार मेले में श्रद्धालुओं की संख्या करीब 45 करोड़ की होगी। श्रद्धा के कारण होने वाली इतनी बड़ी मानवीय जुटान का प्रबंधन एक हैरानी का विषय है लेकिन उससे भी बड़ी हैरानी यह होगी कि एक नदी को इतनी बड़ी आबादी के लिए पहले साफ किया जाएगा।
गंगा नदी में जैविक और रासायनिक प्रदूषण को कम करने के लिए यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। हालांकि, श्रद्धालुओं के मन में यह आशंका भी है कि क्या इस महाआयोजन में गंगा में डुबकी स्वच्छ जल में लगेगी?
नेशनल क्लीन गंगा मिशन के पूर्व महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा के मुताबिक एक नदी जिसमें जल प्रवाह बेहतर हो, वह खुद ही बहुत हद तक साफ हो जाती है। हालांकि, नदी को साफ और स्वस्थ्य होने के लिए उसमें रासायनिक प्रदूषण के अलावा जैव विविधता का बचाव और डिस्चार्ज होने वाले प्रवाह को साफ करने वाले मशीनरी की बेहतर कार्यप्रणाली बहुत जरूरी है।
फिलहाल कुंभ आयोजन को सफल बनाने के लिए गंगा नदी की निर्मलता के लिए क्या किया जा रहा है?
इसके लिए एक आकलन जरूरी है।
सरकार के एक हलफनामे के आधार पर इस बार मेला क्षेत्र में करीब 50 लाख कल्पवासी या तीर्थयात्री स्थायी तौर पर रहेंगे। इस एक महीने के महाआयोजन में चार प्रमुख स्नान होंगे। इनमें हर प्रमुख स्नान वाले दिन 5 करोड़ लोगों के जमघट की संभावना है।
इसका मतलब होगा कि जिस दिन 5 करोड़ लोग मेला क्षेत्र में होंगे उस दिन 16.44 मिलियन लीटर प्रति दिन (एमएलडी) मल कीचड़ पैदा होगा। यानी हर दिन शहर में पैदा होने वाले सीवेज में मेला के दौरान यह अतिरिक्त सीवेज होगा।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दिए गए एक हलफनामे के मुताबिक प्रयागराज में हर दिन 471.93 एमएलडी सीवेज पैदा होता है।
इतने सीवेज का प्रबंध सही से नहीं किया जा रहा था और नवंबर तक करीब 128 एमएलडी सीवेज सीधा गंगा में गिर रहा था। जब महाकुंभ नजदीक आया तो एनजीटी की सख्ती के बाद अब सीवेज प्रदूषण के बड़े हिस्से के उपचार की बात हलफनामे में कही गई है।
दिसंबर में एनजीटी में दिए गए यूपी सरकार के ताजा हलफनामे के मुताबिक कुल 471.92 एमएलडी में बड़ा हिस्सा यानी 293 एमएलडी गंगा यमुना से जुड़े कुल 81 नालों में पहुंचता है और अतिरिक्त 178.31 एमएलडी सीवरेज नेटवर्क में जाता है जो कि 390 एमएलडी अधिकतम क्षमता वाले 10 एसटीपी से जुड़े हुए हैं।
81 नालों में 37 नालों को एसटीपी से जोड़ा जा चुका है, इन 37 नालों में जाने वाले 216.17 एमएलडी सीवरेज का उपचार किया जा रहा है। वहीं, 44 नाले ऐसे हैं जिनमें 77.42 एमएलडी सीवेज जा रहा है, जिसके उपचार का वादा किया गया है, हालांकि असल स्थिति अभी तक साफ नहीं है।
अब यहां ध्यान देने लायक बात यह है कि सरकार ने कहा है कि महाकुंभ के दौरान जो अतिरिक्त सीवेज पैदा होगा वह 10 फीसदी अधिक होगा। यानी कुल 81 नालों में जाना वाला 216.17 एमएलडी सीवेज बढ़कर 237 एमएलडी हो जाएगा। इसे भी एसटीपी की तरफ ही डायवर्ट किया जाएगा।
एसटीपी में पहले से जा रहे 178.31 एमएलडी में भी कुंभ के दौरान 9 फीसदी की बढोत्तरी होगी।
एसटीपी की अधिकतम क्षमता 390 एमएलडी है। ऐसे में वह सीवरेज नेटवर्क से आने वाले और नालों से आने वाले कुल मल कीचड़ एसटीपी की क्षमता से 43 एमएलडी अधिक होगा। अब यह अभी तक अनुत्तरित है कि इस 43 एमएलडी को कैसे उपचारित किया जाएगा। हालांकि, सीवेज का एक बड़ा हिस्सा उपचारित होगा।
अब उन 44 नालों के बारे में गौर करिए जिन्हें एसटीपी से जोड़ा नहीं जा सका है। इन 44 नालों में प्रयागराज का कुल 77.42 एमएलडी सीवेज जाता है। फिलहाल सरकार ने दावा किया है कि वह 22 नालों से आने वाले 60.80 एमएलडी सीवेज को ऑनसाइट उपचारित कर लेगी। जबकि अन्य 22 नालों में 17 नालों से आने वाले 15.23 एमएलडी को भी जल्द ही एसटीपी से जोड़ देगी। अब इन 44 अनटैप्ड नालों में महाकुंभ के दौरान 10 फीसदी सीवेज की बढोत्तरी होगी जो कि कुल 85.16 एमएलडी होगा। ऐसे में करीब 9 एमएलडी सीवेज कैसे उपचारित होगा, वह यहां स्पष्ट नहीं है।
सरकार का दावा है कि मौजूदा एसटीपी पर 87 प्रतिशत का उपचार किया जाएगा और ऑनसाइट इलाज के जरिए- 13 फीसदी सीवेज का उपचार किया जाएगा।
बहरहाल सीवेज प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है, आंकड़े यह बताते हैं कि सरकार यदि दावों को हकीकत में नहीं बदलती है तो प्रतिदिन 50 एमएलडी से अधिक सीवेज बिना उपचार के गंगा में जाएगा और श्रद्धालुओं को एक अस्वच्छ जल में डुबकी लगाने के लिए मजबूर होना होगा।
दूसरा पहलू है कि नदी में प्रवाह (ई-फ्लो) जब तक बेहतर नहीं होगा तब तक वह खुद से प्रदूषण को साफ नहीं कर पाएगी। खासतौर से बॉयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और डिजॉल्व ऑक्सीजन (डीओ) व फीकल कोलिफॉर्म के मानकों का वांछित परिणाम नहीं हासिल होगा।
महाकुंभ के दौरान नदी में जलस्तर बढाने के लिए विभिन्न बैराज से अधिक पानी डिस्चार्ज किया जाता है। यहां तक कि कृषि के लिए रिजर्व पानी को भी डायवर्ट कर दिया गया है। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 15 दिसंबर से नदी के जल स्तर को बढ़ाने के लिए टिहरी बांध ने गंगा में प्रतिदिन 2,000 क्यूसेक पानी छोड़ना शुरू कर दिया है।
अधिकारियों के अनुसार इस बीच नरोरा बैराज से डाउनस्ट्रीम में 24 दिसंबर से प्रतिदिन 5,000 क्यूसेक पानी प्रयागराज की ओर छोड़ा जा रहा है। यह बढ़ी हुई जलापूर्ति 26 फरवरी तक जारी रहेगी।
वहीं, कानपुर बैराज गंगा में काफी मात्रा में पानी छोड़ रहा है। 19 दिसंबर को बैराज से 4,124 क्यूसेक पानी छोड़ा गया, जबकि 18 दिसंबर को 5,105 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। 1 दिसंबर को सबसे अधिक 13,865 क्यूसेक पानी छोड़ा गया था।
पानी के डिस्चार्ज से जल प्रवाह बेहतर होता है और पानी में प्रदूषण का स्तर भी कम होता है। इस पूरी प्रक्रिया को महीनों पहले शुरू किया जाता है तब जाकर नदी पर आधारित इस तरह का मेगाइवेंट सफल होता है। हालांकि, नदियों के प्रदूषण की हमारी चिंता का यह बस अल्प समाधान है।