नदी

ओंकारेश्वर बांध प्रभावितों का जल सत्याग्रह शुरू

नर्मदा बचाओ आंदोलन की अपील पर डूब प्रभावितों का पुनर्वास किए बगैर ओंकारेश्वर बांध में भरे जा रहे पानी के विरोध में प्रदर्शन शुरू किया गया है

Anil Ashwani Sharma

नर्मदा बचाओ आंदोलन की अपील पर डूब प्रभावितों का पुनर्वास किए बगैर ओंकारेश्वर बांध में भरे जा रहे पानी के विरोध में आज शुक्रवार से सैकड़ों की संख्या में डूब प्रभावितों ने कामनखेड़ा गांव (खंडवा जिला, मध्य प्रदेश) में जल सत्याग्रह शुरु किया। यह सत्याग्रह सुबह 11 बजे शुरू हुआ। यह जानकारी नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता आलोक अग्रवाल ने डाउन टू अर्थ को दी। उन्होंने बताया कि जल सत्याग्रह डूब प्रभावित ग्राम कामनखेड़ा में सुबह 11 बजे से शुरू हुआ। अग्रवाल ने बताया कि इस जल सत्याग्रह को लेकर हमने ग्राम घोघलगांव, टोकी, एखण्ड, कामनखेड़ा आदि ग्रामों में डूब प्रभावितों के साथ बैठक करके यह निर्णय लिया है।

ध्यान रहे कि गत 21 अक्टूबर से ओंकारेश्वर बांध में जलस्तर बढ़ाते हुए एक मीटर से ज्यादा पानी भरा गया है। इससे कई गांवों के रास्ते बंद हो गए हैं। साथ ही सैकड़ों हेक्टेयर जमीन पानी के बीच टापू बन गई है। अग्रवाल ने बताया कि मध्य प्रदेश शासन ओंकारेश्वर बांध को पूरी क्षमता 196.6 मीटर तक भरने की तैयारी में है। वहीं हम (नर्मदा बचाओ आंदोलन) पुनर्वास होने तक पूर्व निर्धारित 193 मीटर तक पानी भरने की मांग कर रहे हैं। डूब के गांव कामनखेड़ा में नर्मदा बचाओ आंदोलन  के अग्रवाल के साथ 9 बांध प्रभावितों ने जल सत्याग्रह प्रारंभ करते समय सरकार के सामने मांग रखी है कि बांध में बढ़ाया गया जलस्तर वापस 193 मीटर पर लाया जाए और बचे हुए लगभग 2000 परिवारों का संपूर्ण पुनर्वास होने के बाद ही बांध में पानी भरने की कार्रवाई की जाए। वास्तविकता है कि अभी भी लगभग 2000 वाली परिवारों का पुनर्वास होना बाकी है। पुनर्वास पूरा न करते हुए बांध में पानी भरने की अमानवीय कार्रवाई की जा रही है।

जल सत्याग्रह प्रारंभ होने के समय प्रभावितों को संबोधित करते हुए अग्रवाल ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट आदेश है कि बिना पुनर्वास बांध में कोई भी डूब नहीं लाई जा सकती है। आज ओमकारेश्वर बांध के 500 परिवारों को पुनर्वास स्थल पर घर प्लॉट दिया जाना बाकी है, 400 अन्य परिवारों को घर प्लॉट के एवज में पैकेट लिया जाना बाकी है लगभग ढाई सौ परिवारों की 17 सौ एकड़ जमीन या तो डूब रही है या टापू बन रही है उसका अधिग्रहण किया जाना या उसमें रास्ता दिया जाना बाकी है। वन ग्राम देगावां के 200 परिवारों की जमीनों व गांव का अधिग्रहण किया जाना बाकी है एवं सैकड़ों अन्य परिवारों के पुनर्वास के अन्य अधिकार भी दिए जाने बाकी है। पुनर्वास पूरा करने के स्थान पर राज्य सरकार  पानी भरा जा रहा है, घर खेत डूब रहे हैं, ग्राम घोघलगांव की बिजली काट दी गयी है और उसका रास्ता बंद हो गया है। आश्चर्य का विषय है कि जो प्रभावित प्रदेश को रोशन करने के लिए अपनी जमीन और अपना सर्वस्व त्याग कर रहे हैं उन्हीं प्रभावितों के घर में दिवाली जैसे त्यौहार पर अंधेरा कर दिया गया है।

अग्रवाल ने कहा कि ओंकारेश्वर बांध प्रभावित इस अन्याय को सहने के लिए तैयार नहीं है इसलिए आज से यह जल सत्याग्रह प्रारंभ किया जा रहा है। प्रभावितों की मांग है कि बांध का जल स्तर वापस 193 मीटर पर लाया जाए और जब तक डूब प्रभावितों के सभी अधिकार प्राप्त नहीं हो जाते तब तक बांध में आगे पानी नहीं भरा जाये। जल सत्याग्रहियों का संकल्प है कि जब तक यह करवाई पूर्ण नहीं होते जल सत्याग्रह जारी रहेगा चाहे इसके लिए उनको अपना जीवन ही क्यों न देना पड़े। जल सत्याग्रह में आलोक अग्रवाल के साथ गंगाराम श्रवण, आनंदराम धन्नालाल, लोकेश पूरी, महेशपुरी, राजेन्द्र, प्रेमगीर, मोहनभारती, ओमगिरी, कबीरदास, जगदीश लक्ष्मणभाई और पूजन अर्जुन शामिल हैं।

अग्रवाल ने बताया यह विडंबना है कि बिजली परियोजना से होने वाले प्रभावित बगैर पुनर्वास हुए अंधेरे में रहने मजबूर हैं। यह उन लोगों के आदेश पर हो रहा है जो कभी एक घंटे बगैर बिजली के नहीं रहे हैं। ग्राम घोघलगांव में बिजली आपूर्ति बंद की गई है। इससे ग्रामवासी अंधेरे में रात बिता रहे हैं। जबकि आसपास पानी होने से जलीय-जीव का खतरा बना रहता है। इस समय 450 से अधिक लोगों को पुर्नवास पैकेज, घर व प्लाट सहित अन्य पुनर्वास के अधिकार मिलना बाकी है। फिर भी बांध में पानी भरना शुरू कर दिया गया है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों में साफ हैं कि पुर्नवास पूरा होने के बाद ही पानी भरा जा सकता है। ऐसे में ओंकारेश्वर बांध में लाई जा रही डूब गैर कानूनी व असंवैधानिक है।

ओंकारेश्वर बांध के प्रभावित पिछले एक दशक से अधिक समय से अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। उनकी इस लड़ाई की जीत उस समय हुई जब  13 मार्च, 2019 को सर्वोच्च अदालत ने ओंकारेश्वर बांध के बांध प्रभावितों के पक्ष में निर्णय देते हुए राज्य सरकार के पूर्व में घोषित पैकेज पर 15  प्रतिशत वार्षिक ब्याज की बढ़ोतरी की।

साथ ही प्रभावितों द्वारा जमा की गई राशि पर भी 15 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देने का निर्णय लिया गया था। इस आदेश के परिपेक्ष्य में  प्रदेश सरकार ने 31 जुलाई, 2019 को विस्थापितों को पुनर्वास अधिकार देने का आदेश दिया था। लेकिन इसके बावजूद अभी भी वर्तमान में सैकड़ों ऐसे प्रभावित हैं जिनहें अदालती आदेश के अनुसार यह पैकेज दिया जाना अभी बचा हुआ है। यही नहीं इस संबंध में आलोक अग्रवाल ने बताया कि इसके अलावा भी बांध से सैकड़ों प्रभावितों को घर प्लॉट एवं अन्य पुनर्वास की सुविधाएं दिया जाना भी बाकी है। उन्होंने बताया कि कानून में यह स्पष्ट किया गया है कि सभी प्रभावितों का पुनर्वास डूब आने के 6 माह पहले होना जरूरी है, अतः बिना पुनर्वास के पानी भरने की कोई भी कार्रवाई पूर्णतः गैरकानूनी है।