नदी

बारिश के मौसम में गंगा में ड्रेजिंग से बढ़ सकती है फरक्का की मुसीबतें?

Pushya Mitra

इन दिनों बिहार के भागलपुर शहर के पास गंगा नदी की तलहटी से गाद हटाने का काम चल रहा है। बारिश के मौसम में हो रही इस ड्रेजिंग ने पर्यावरणविदों के कान खड़े कर दिये हैं। क्योंकि ड्रेजिंग की यह प्रक्रिया मुख्यतः अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के द्वारा समय-समय पर करवाई जाती है, ताकि जहाजों और कारगो के परिचालन में कोई मुसीबत नहीं आये। ऐसी स्थिति अमूमन गर्मी और सर्दी के मौसम में हुआ करती है, जब नदी में पानी कम होता है और नौवहन में दिक्कतें आती हैं। इस मौसम में गंगा में पानी की मात्रा इतनी अधिक होती है कि कहीं शायद ही ऐसी परेशानी हो। फिर अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकार इस समय क्यों ड्रेजिंग करवा रहा है, यह समझ से परे है।

यह सवाल पूछे जाने पर पटना स्थित अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकार के मुख्य अभियंता वीके कुरील कहते हैं कि अंतर्देशीय जलमार्ग के बाधामुक्त परिचालन के लिए नियमित तौर पर अलग-अलग जगहों पर ड्रेजिंग का काम चलता रहता है। यह हमारे नियम में भी शामिल है। मगर इस सवाल पर कि इस मौसम में कहां परिचालन में दिक्कत हो रही है, वे सवाल को टाल जाते हैं। जब उनसे यह पूछा गया कि ड्रेजिंग के दौरान निकले सिल्ट को वे लोग क्या करते हैं, उन्होंने जवाब दिया कि वे इसे गंगा में ही बहा देते हैं।

मगर इस सवाल के जवाब में भागलपुर निवासी पर्यावरणविद अरविंद मिश्रा कहते हैं कि इस मौसम में नौवहन में कहां दिक्कत आ सकती है, इसकी जानकारी तो मुझे नहीं है, मगर यह मैं जरूर कह सकता हूं कि इस समय गंगा नदी में पानी का वेग सर्वाधिक रहता है जो ड्रेजर द्वारा निकाले गये सिल्ट को बहाकर अप स्ट्रीम में दूर तक ले जाता है। अभी ड्रेजिंग के जरिये जो सिल्ट बाहर आयेगा वह भागलपुर या आसपास के इलाके में जमा नहीं होगा, वह बहते हुए सीधे फरक्का बराज के पास जमा होगा, जहां पहले से ही सिल्ट का ढेर लगा हुआ है। ड्रेजिंग की यह प्रक्रिया फरक्का में बह रही गंगा और वहां के आसपास रहने वाले लोगों की समस्या को और बढ़ायेगी।

हालांकि जलमार्ग प्राधिकरण के मुख्य अभियंता ने इस मौसम में ड्रेजिंग करने के उद्देश्य के बारे में कुछ स्पष्ट जानकारी नहीं दी, मगर अरविंद मिश्रा की बातचीत से समझ आता है कि वे संभवतः इस वक्त ड्रेजिंग करके सिल्ट की स्थानीय समस्या का स्थायी निदान करना चाह रहे होंगे। क्योंकि जब गंगा में पानी कम और बहाव मंद होता है तो सिल्ट वहीं का वहीं रह जाता है और दुबारा फिर से जमा हो जाता है। इस वक्त जो सिल्ट निकल रहा है वह भागलपुर तट को छोड़ देगा।

अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के मुताबिक गंगा में हल्दिया पोर्ट से लेकर प्रयागराज तक जो राष्ट्रीय जलमार्ग -1 है, में नौवहन के लिए कम से कम तीन मीटर की प्राकृतिक गहराई की जरूरत है, मगर यह स्थित सालो भर रहती नहीं है। कई जगहों पर यह एक मीटर तक भी पहुंच जाती है। इसलिए प्राधिकरण समय-समय पर ड्रेजिंग करवाता रहता है। मगर इस मौसम में हो रही ड्रेजिंग से एक नुकसान यह भी है कि इससे भले भागलपुर का तट नौवहन के लायक हो जाये, मगर यह फरक्का में मुसीबत की वजह बनेगा।

जानकार बताते हैं कि गंगा जैसी नदी में ड्रेजिंग करके जलमार्ग को नौवहन के लिए उपयोगी बनाना एक अस्थायी समाधान है। खास तौर पर उस स्थिति में जब इस जलमार्ग में नियमित तौर पर बड़े मालवाहक जहाज चलने लगेंगे। बिहार की नदियों के विशेषज्ञ और मिशन नमामी गंगा थिंक टैंक के सदस्य दिनेश कुमार मिश्र कहते हैं, अगर हमें इस जलमार्ग में नौवहन की प्रक्रिया को हमेशा के लिए दुरुस्त बनाना है तो उसके लिए एक ही तरीका है, वह है फरक्का बराज को हटाना। वे कहते हैं, गंगा में बक्सर से लेकर फरक्का तक जो गाद लगातार जमा हो रहा है, वह फरक्का बराज के कारण ही हो रहा है। हर कोई इस बात से अवगत है, मगर यह एक ऐसा समाधान है जिस पर विचार करने के लिए कोई तैयार नहीं है।

हालांकि 2017 में बिहार में आयी भीषण बाढ़ के वक्त मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी फरक्का बराज को हटाये जाने की मांग केंद्र से की थी। तब वे राज्य में राजद के साथ थे। मगर अब जब वे भाजपा के साथ सरकार चला रहे हैं, तब उन्होंने इस मसले पर चुप्पी साध ली है।

दिनेश कुमार मिश्र कहते हैं कि अगर हम फरक्का को छुए बगैर इस जलमार्ग को विकसित करेंगे तो आने वाले दिनों में यही होगा कि हर जहाज के आगे एक ड्रेजर मशीन को चलाना होगा। अभी भी जब जहाजों की संख्या अधिक नहीं है, तब भी कई जगहों पर जहाज फंस जा रहे हैं। बक्सर और भागलपुर के पास जहाजों के फंसने की घटनाएं हो चुकी हैं।

मगर जब गंगा नदी में लगातार ड्रेजिंग मशीन चलने लगेगी तो यह गंगा की बची-खुची पारिस्थितिकी के लिए बड़े खतरे की बात होगी। पर्यावरणविद अरविंद मिश्रा कहते हैं, ये ड्रेजिंग मशीन नदी की तलहटी में रहने वाले जीव जैसे घोघा और सितुआ आदि के लिए जानलेवा साबित होते हैं। इसलिए ये कभी-कभार चलाये जायें, तभी ठीक है। वरना ये गंगा की पूरी पारिस्थितिकी को नष्ट कर देंगे।