नदी

क्या टिहरी बांध की झील के ऊपरी क्षेत्र में पहाड़ी धंस रही है?

ग्रामीणों का कहना है कि पहले आर-पार के जो गांव कभी दिखते नहीं थे, अब दिखने लगे हैं। विशेषज्ञों ने गहन अध्ययन की अपील की

DTE Staff

महिपाल सिंह नेगी

‘ऊंची डांड्यों तुम निस्सी ह्वे जावा
घंड़ीं कुळयों तुम छांटी ह्वे जावा
मैं खुद लगींच मैत की भारी
बाबा जी को देश देखण द्यावा ...’’

उत्तराखंड की गढ़वाली बोली के इस गीत में -  एक महिला के मायके और ससुराल के बीच कुछ ऊंची पहाड़ियां हैं। वह ससुराल से बीच की पहाड़ियों से निवेदन करती है कि वह नीचे हो जाएं और उस पर खड़े चीड़ के वृक्ष भी छितरा जाएं, क्योंकि उसे मायके की भारी याद आ रही है, वह पिता का देश देखना चाहती है ...।

उत्तराखंड के सबसे चर्चित टिहरी बांध की झील के ऊपरी क्षेत्र में बसे पड़िया गांव की सरिता की शादी बंगद्वारा गांव के बचन सिंह पंवार से  25 साल पहले हुई थी। तब उसके ससुराल के गांव बंगद्वारा से उसका मायका पड़िया गांव नहीं दिखता था, लेकिन अब दिखने लगा है। उनके पति बचन सिंह पवार भी इसकी पुष्टि करते हैं।

इसी तरह की बात दूसरी ओर के पड़िया गांव की चंपा और अनीता भी बताती हैं कि पहले उनके घरों से बंगद्वारा गांव नहीं दिखता था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में दिखने लगा है। दोनों ही तरफ के गांव वालों को लगता है कि बीच की जो पहाड़ी है, जिसे पथियाणा गांव की धार कहते हैं, वह कुछ नीचे-नीचे धंसती जा रही है।

अनीता देवी बताती हैं कि वह 24 साल पहले शादी कर ससुराल पड़िया गांव आई थी। तब बंगद्वारा गांव नहीं दिखता था लेकिन अब दिखाई देने लगा है। इन 2 गांव के बीच हवाई दूरी करीब 3 किलोमीटर होगी। सड़क से दूरी करीब 6 किमी है। और बीच की पहाड़ी बंगद्वारा गांव के कुछ निकट है। बीच की पहाड़ी पर 5 गांव बसे हुए हैं।

बंगद्वारा और पड़िया गांव समुद्र तल से करीब 1500 मीटर की ऊंचाई पर हैं। इससे नीचे 830 मीटर की ऊंचाई तक टिहरी बांध की झील का पानी है। तीन अलग-अलग पहाड़ियों पर बसे 4 गांव के दर्जनों लोगों से बातचीत करने से यह तो साफ है कि बंगद्वारा से पड़िया गांव का ऊपरी हिस्सा और पड़िया से बंगद्वारा का ऊपरी हिस्सा पिछले 10 -15 सालों में साफ दिखाई दे रहा है।

यह भी जानने की कोशिश की गई कि गांव और ऊपर की तरफ बसने से तो कहीं यह भ्रम नहीं हुआ होगा। लेकिन पड़िया गांव में ऊपरी क्षेत्र में 50 साल से भी अधिक पुराने मकान बने हैं। बंगद्वारा गांव में ऊपर नए मकान सड़क पर बने हैं लेकिन नीचे के पुराने मकानों से भी पड़िया गांव दिख जा रहा है।

पहले यह स्पष्ट कर दें कि यह टिहरी बांध वाला क्षेत्र मुख्य सीमावर्ती भ्रंश ( थ्रष्ट) और मुख्य मध्यवर्ती भ्रंश के बीच का हिस्सा है। यह भूकम्प जोन 4 के अन्तर्गत है। जिन गांव की यह हलचल बताई जा रही है, वहां से श्रीनगर भ्रंश  नाम का एक सक्रिय भ्रंश गुजरता है जो भूविज्ञान के कई मानचित्र पर दर्शाया गया है।  टिहरी बांध से इसकी दूरी मात्र 4 किलोमीटर है। यह  भागीरथी और भिलंगना नदियों को 2 स्थानों पर क्रॉस करता है। अब वहां पानी भर चुका है।

टिहरी बांध बनने के दौरान इस पूरे क्षेत्र का भूगर्भीय अध्ययन हुआ है। सबसे पहले रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज उसके बाद भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग (जीएसआई) ने विस्तृत अध्ययन किया। रुड़की कॉलेज की रिपोर्ट में वाडिया  इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी और टिहरी बांध पर बनी भुंबला कमेटी ने कमियां बताई थी। जीएसआई ने भी सवाल उठाए थे। हिमालय के बड़े भू वैज्ञानिक प्रोफेसर के एस वादिल्या की स्टडी भी उपलब्ध हैं।

रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज ने 1990 में जिन क्षेत्रों को स्थिर बताया था, उनमें बांध बनने के बाद कई भूस्खलन हुए और भूस्खलन को देखते हुए 2 आंशिक प्रभावित गांवों को पूर्ण विस्थापित करना पड़ रहा है। और डूब क्षेत्र से भी ऊपर के  करीब 400 और परिवारों को विस्थापित करने के लिए चिन्हित किया गया है।

डॉक्टर पीसी नवानी, हरीश बहुगुणा, डीपी डंगवाल आदि भूगर्भ विज्ञानियों की रिपोर्ट में बंगद्वारा गांव से लेकर पड़िया गांव के नीचे वाली पहाड़ियां अनेक स्थानों पर बेहद संवेदनशील बताया गया है। बीच वाली पहाड़ी जिस पर लोग अंगुली उठा रहे हैं, वह  बरोला और कापड़ा गाड  के बीच की पहाड़ी है। गाड़ वाले क्षेत्रों की तरफ तीखे ढाल और भूस्खलन दर्शाए गए हैं, बांध निर्माण के दौरान जिन पर दरारें उभरी हैं। नई दरारें भी उभरी हैं। इनमें एक बड़ा क्षेत्र बांध में पानी भरने पर अब पानी के नीचे है। हर साल पानी के 90 मीटर तक उतार-चढ़ाव के दौरान इस क्षेत्र में हलचल होती है।

वर्ष 2001 - 2002 में तैयार भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग की एक रिपोर्ट में कहा गया कि - ‘‘ टिहरी शहर और जलकुर  गधेरे के बीच कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जो नाजुक स्थिति में टिके रह गए हैं। यानी पर्याप्त बल पड़ने पर खिसक सकते हैं...’’ इसी क्षेत्र का ऊपरी हिस्सा बंगद्वारा और पड़िया गांव तक जाता है और बीच की पहाड़ी भी उसी हिस्से में है।

 इन पहाड़ियों पर 1500 मीटर की ऊंचाई तक बड़ी मात्रा में ओवरबर्डन अर्थात भू हलचलों के मलवे के ढेर लगे हैं, जो कहीं 3 मीटर कहीं 5 मीटर तो कहीं 20 मीटर अन्दर तक हैं। निचले क्षेत्र में भूस्खलन होने से ‘‘टो’अर्थात आधार के कमजोर पड़ने से ओवरबर्डन नीचे की ओर खिसक सकता है।

तो क्या यह सही है कि पथियाणा गांव की धार नीचे धंस रही है और बांध बनने के बाद यहां खतरा बढ़ गया है? इस बारे में भूगर्भ विज्ञानी और वानिकी विश्वविद्यालय, भरसार के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ एसपी सती कहते हैं,‘यह सक्रिय भूस्खलन क्षेत्र तो है ही। मात्र ऊपर की सतह ही नहीं बल्कि अंदर की बनावट भी सक्रिय है। श्रीनगर एक सक्रिय भ्रंश है। यह संवेदनशील क्षेत्र तो है ही और यदि जैसा गांव वाले कह रहे हैं कि कुछ वर्ष पहले तक न दिखने वाली पहाड़ियां दिखने लगी हैं तो यह एक अलार्मिंग सिस्टम की स्थिति हो सकती है...’’ 

वह कहते हैं कि - ‘‘जरूरी नहीं कि बीच की पहाड़ी धंस रही हो। यह भी संभव है कि जिन पहाड़ी पर पड़िया और बंगद्वारा गांव हैं, वह ऊपर उठ रही हो। हालांकि यह गति बहुत धीमी होती है और साल में कुछ ही मिली मीटर संभव है।”

वह कहते हैं, “जब झील में पानी का उतार-चढ़ाव होता है तो पहाड़ियों में भी फैलाव और संकुचन होता है। पानी भरने पर पहाड़ियां फैलती हैं और पानी उतरने पर सिकुड़ती हैं। जैसे कि पहाड़ियां सांस ले रही हों। सक्रिय श्रीनगर भ्रंश के कारण स्वाभाविक ही यह संवेदनशील क्षेत्र है और यदि तत्काल कोई खतरा ना भी हो तो किसी भूकंप के समय स्थिति खतरनाक बन सकती है ...’’

डॉक्टर हनुमंतराव कमेटी जिसका गठन टिहरी बांध के पुनर्वास के अलावा पर्यावरण पहलू के अध्ययन के लिए भी किया गया था ने भी झील के ऊपरी क्षेत्र में गहन अध्ययन की आवश्यकता बताई थी।

हालांकि अभी एक और महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि गांव वालों के जो अनुभव हैं वह किसी भी रिपोर्ट्स में क्यों नहीं आए? जबकि इस क्षेत्र का अध्ययन 1990 में शुरू हो गया था। दरअसल बांध की झील के ऊपरी क्षेत्र का अध्ययन मुख्यतः 1350 मीटर की ऊंचाई तक ही किया गया और शायद सक्रिय श्रीनगर भ्रंश की सक्रियता को नजरअंदाज किया गया है।