नदी

481 कंपनियों को दिया जाएगा सरदार सरोवर बांध का पानी: मेधा पाटकर  

Anil Ashwani Sharma

सरदार सरोवर बांध अपने जन्म से ही विवादों में रहा है। आज भी जब यह पूरा बन चुका है। तब इसमें तेजी से भरते पानी के कारण मध्य प्रदेश के 32 हजार ऐसे परिवार एक बार फिर से डुब की कगार पर खड़े हैं जो कि पूर्व में बांध के कारण अपना घर-गांव सब कुछ गंवा चुके हैं। अब उनके नए स्थानों पर किए गए पुनर्वास स्थल भी डूब रहा है। केंद्र और गुजरात सरकार बांध में तेजी से भरते पानी में किसी भी प्रकार से कम करने को तैयार नहीं है। ऐसे में बांध से होने वाले विस्थापितों के लिए  पिछले तीन दशकों से संघर्ष कर कर रहे नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने एक बार फिर से अहिंसा के सबसे बड़े हथियार यानी उपवास 25 अगस्त से शुरू किया है। आज उनका उपवास का पांचवा दिन है। डाउन टू अर्थ ने धरना स्थाल छोटा बड़दा गांव (जिला बड़वानी, मध्य प्रदेश) में उपवास पर बैठी मेधा पाटकर से इस मुद्दे पर विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत है उस बातचीत के अंश-

प्रश्न: गुजरात सरकार सरदार सरोवर बांध का जल स्तर 133 मीटर से अधिक क्यों करना चाहती है? 

मेधा: पानी क्यों न भरे, आखिर इस पानी के लिए गुजरात ने कंपनियों के साथ 481 समझौते किए हैं। हालांकि सरकार ने राज्य के किसानों और कच्छ-सौराष्ट को भी पानी देने का आश्वासन दिया है, लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर जो दिख रहा है, उसमें स्पष्ट है कि गुजरात सरकार की प्राथमिकता किसानों और कच्छ-सौराष्ट्र के प्रति नहीं है। अब जब राज्य सरकार ने 481 कंपनियों के साथ समझौते पत्र पर हस्ताक्षर कर ही दिए हैं, तब कंपनियां को पानी के बंटवारे में हिस्सा तो देना ही होगा। इसीलिए बांध में पानी लगातार भरा जा रहा है, भले ही मध्य प्रदेश के हजारों परिवार एक बार डूबने के बाद दुबारा ही क्यों न डूब जाएं?

प्रश्न: गुजरात सरकार इसके अलावा और क्या करेगी इस अतिरिक्त पानी का?

मेधा: अभी ये लोग उस पानी पर पर्यटन भी करना चाहते हैं। गुजरात सरकार कच्छ-सौराष्ट्र  के लिए वे यह पानी एकत्रित नहीं कर रही है, बल्कि वे इस पानी में पर्यटन के लिए जल क्रिया शुरू करना चाहते हैं।

प्रश्न: पिछले कई सालों से गुजरात सरकार बांध में पानी अधिक मात्रा में एकत्रित करती आई है, इसके पीछे उसकी क्या मंशा होती है?

मेधा: पिछले कई सालों से राज्य सरकार बांध में अधिक से अधिक पानी एकत्रित करती है और फिर उसे साबरमती में डालकर समुद्र में बहा देती है। इसके पीछे भी एक बड़ी वजह है, साबरमती नदी में सैकड़ों कल-कारखानों का प्रदूषित पानी डाला जाता है। यह अतिरिक्त पानी जब नदी में डाला जाता है तो यह प्रदूषण भी उसी के साथ बह जाता है।

प्रश्न: सरदार सरोवर बांध को केंद्र व गुजरात सरकार विकास का प्रतीक बताती आई है, क्या सचमुच में इसे ऐसी संज्ञा दी जा सकती है?

मेधा: विकास के प्रतीक सरदार सरोवर बांध को तब तक सही नहीं ठहराया जा सकता है, जब तक कि इससे विस्थापित हर एक का यानी सौ फीसदी विस्थापितों का पुनर्वास नहीं हो जाता है।

प्रश्न: गुजरात व केंद्र सरकार का कहना है कि हमने सभी का पुनर्वास कर दिया है?

मेधा: मध्य प्रदेश शासन ने भी जब तक भाजपा की सरकार राज्य में थी, तब तक गुजरात और केंद्र के सामने झूठे शपथ पत्र तक दिए, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में भी दिए गए। इसमें कहा गया था कि सभी का पुनर्वास हो चुका है और ये सभी लोग उसी को लेकर बैठे हैं। जबकि इसके ठीक उलट वास्तविकता ये है कि हजारों परिवारों का कुछ न कुछ अब भी बकाया है।

प्रश्न: क्या गुजरात को अतिरिक्त पानी एकत्रित करने की जरूरत है?

मेधा: आज की तारीख में तो गुजरात के सभी जलाशय लबालब भरे हुए हैं और उन्हें इतने अधिक पानी की जरूरत भी नहीं है। इसेक चलते वे इस साल वो रूक ही सकते हैं लेकिन नहीं। बड़े बांधों का खेल ऐसे ही चलता है। अब आप देखिए इस बाध से शहरों को पानी पहले दिया गया, जैसे अहमदाबाद, गांधीनगर, बड़ौदा आदि। राज्य सरकार की प्राथमिकताएं इसी प्रकार से बदलती हैं, शुरूआत में कुछ और होती है बाद असलियत सामने आती है।

प्रश्न: क्या जानबूझ कर गुजरात सरकार मध्य प्रदेश के आदिवासियों को डुबाना चाहती है?  

मेधा: चूंकि ये पूरा इलाका आदिवासी क्षेत्र है तो ऐसे में सरकार को कुछ लगता नहीं है कि ये कुछ करेंगे तो वे आराम से इन्हें डुबो रहे हैं। चूंकि यहां पर अकेले आदिवासी ही नहीं हैं, बल्कि छोटे-बड़े किसान, केवट, कहार, उद्योग-धंधे, बाजार-हाट आदि सब कुछ डूब रहा है। इन सबका शुरूआत में ख्याल रखा गया है, विश्व बैंक को लगातार आश्वस्त करते रहे। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने एक्शन प्लान दिए लेकिन अमल में तो पूरा यानी केवल नगद राशि का ही सिलसिला चलता रहा। ये पूरी तरह से गलत हुआ है। अब सरकार पीछे हटना नहीं चाहती है चूंकि यह अब प्रतिष्ठा मामला बन चुका है। लेकिन गुजरात भी भुगतगा, वहां समुदर अस्सी किलोमीटर अंदर तक आ चुका है। इससे गुजरात की हालत खराब है। मछुआरों की रोजी-रोटी चली गई।