नदी

फ्लड प्लेन में अवैध बसावट, जारी है गंगा प्रदूषण

एनजीटी ने 2017 में हरिद्वार से उन्नाव, कानपुर तक गंगा के पहले चरण में अपने फैसले में यह स्पष्ट तौर पर कहा था। हालांकि, अभी तक गंगा के फैसले पर अमल नहीं किया जा सका है।

Vivek Mishra

"गंगा के किनारों से 100 मीटर की दूरी तक किसी भी तरह का विकास या निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता है।" नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2017 में हरिद्वार से उन्नाव, कानपुर तक गंगा के पहले चरण में अपने फैसले में यह स्पष्ट तौर पर कहा था। हालांकि, अभी तक गंगा के फैसले पर अमल नहीं किया जा सका है। इसके उलट ट्रिब्यूनल में फ्लड प्लेन को नुकसान पहुंचाने वाली शिकायतें आ रही हैं। 

एनजीटी में एक मामले में आरोप लगाया गया है कि उत्तर प्रदेश के कानपुर में डाउनस्ट्रीम रानीघाट के पास सरजूपुरबा में गंगा के फ्लडप्लेन में न सिर्फ गैरकानूनी बसाहट हो रही है बल्कि इसके कारण गंगा में कूड़ा, पॉलीथीन और सीवेज डिस्चार्ज जैसा प्रदूषण भी हो रहा है। 

एनजीटी के चेयरमैन और जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने इस मामले पर 10 फरवरी, 2024 को सिंचाई विभाग की तरफ से दाखिल की गई रिपोर्ट पर गौर करने के बाद कहा कि संबंधित जगह पर केंद्रीय जल आयोग के जरिए मुहैया कराए गए लैटीट्यूड और लांगीट्यूड की नो डेवलमेंट जोन और रेग्युलेटरी जोन के तौर पर निशानदेही नहीं की गई है। साथ ही 2017 के गंगा फैसले में फ्लड प्लेन की निशानदेही को लेकर दिए गए आदेश पर काम नहीं किया गया है। 

4 दिसंबर, 2023 को इसी मामले पर एनजीटी ने गौर किया था कि गंगा के जिस फ्लड प्लेन पर सवाल उठ रहे हैं उस स्थान को अधिसूचित नहीं किया गया है। साथ ही घाटों की तरफ जाने वाले नालों में सीवेज उपचार को लेकर भी कोई काम नहीं हुआ है। एनजीटी ने कानपुर नगर निगम से इस मामले पर विस्तृत जवाब मांगा है। 

पीठ ने कहा कि रेग्युलेटरी जोन में कुछ निश्चित निर्माण की अनुमतियां दी गई हैं, जिसमें प्लिंथ लेवल को फ्लड प्लेन से ऊपर रखने और छत व पहली पंजिल 100 साल के बाढ़ स्तर को ध्यान में रखकर बनाने की अनुमति दी गई है। ऐसी अनुमति प्रथम दृष्टि से रिवर गंगा (रेजुवेनेशन, प्रोटेक्शन एंड मैनेजमेंट) अथॉरिटी ऑर्डर, 2016 और रिवर गंगा (रेजुवेनेशन, प्रोटेक्शन एंड मैनेजमेंट) अथॉरिटी (एमेंडमेंट) ऑर्डर, 2024 के हिसाब से ठीक नहीं है। 

पीठ ने कहा कि 2016 ऑर्डर के अनुरूप ही नो डेवलपमेंट जोन, या नो कंस्ट्रक्शन अथवा रेग्युलेटरी जोन का डिमार्केशन होना चाहिए।  फिलहाल उत्तर प्रदेश के काउंसिल ने इस मामले में जवाब दाखिल करने के लिए तीन  हफ्ते का समय मांगा है। 

मामले की अगली सुनवाई अब 5 अगस्त, 2024 को होगी।