नदी

कैसे साफ हो गंगा : पांच साल में सिर्फ एक बार बैठी गंगा परिषद, पीएम मोदी की अध्यक्षता में हर साल होनी थी बैठक

30 हजार करोड़ रुपए से गंगा का रूप और रंग बदला जाना था लेकिन प्रदूषण का ग्राफ गिरने के बजाए बढ़ता जा रहा है।

Vivek Mishra

गंगा में 60 फीसदी सीवेज की निकासी जारी है वह भी तब जब राष्ट्रीय नदी के बिगड़े रंग-रूप को बदलने के लिए 30 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का बजट बनाया गया था। स्थिति यह है कि पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय गंगा परिषद के गठन को करीब छह वर्ष बीतने वाले हैं और अभी तक सिर्फ एक बार ही बैठक की जा सकी है। केंद्र सरकार की ओर से 7 अक्तूबर, 2016  को गंगा नदी (संरक्षण, सुरक्षा एवं प्रबंधन) प्राधिकरण आदेश जारी किया गया था, जिसके मुताबिक पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय गंगा परिषद को वर्ष में कम से कम एक बार या उससे ज्यादा बार बैठक कर गंगा की सफाई और परियोजनाओं के अमल का जायजा लेना था। 

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के मुताबिक गंगा से जुड़ी परियोजनाओं के बजट और क्रियान्वयन को लेकर कार्यकारी समिति (एग्जीक्यूटिव कमेटी) की बैठकें जारी हैं। 2017 से लेकर जुलाई, 2022 तक कुल 43 बैठकें संपन्न हुई हैं। हालांकि, तय आदेश के मुताबिक गंगा परिषद को इनकी समीक्षा करना चाहिए था।   

2014 में सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने गंगा की स्वच्छता को अपनी उच्च प्राथमिकता वाला काम बताया था और इसके लिए नमामि गंगे नाम योजना की घोषणा की गई थी, जिसका मकसद गंगा के बिगड़े रंग-रूप को बदलना और प्रदूषण पर रोकथाम था। हालांकि, इस पर काम 2016,अक्तूबर के आदेश के बाद से ही शुरु हुआ।

वित्त वर्ष 2014-15 से लेकर 2020-2021 तक इस नमामि गंगे योजना के तहत पहले 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का रोडमैप तैयार किया गया था जो कि बाद में बढाकर 30 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया। हालांकि, अभी इस स्वीकृत बजट में से करीब 50 फीसदी बजट ही आवंटित हो पाया है। 

नमामि गंगे के तहत बड़े बजट की घोषणा दरअसल गंगा एक्शन प्लान की विफलता के बाद लाया गया था जिससे जनता में गंगा की सफाई की उम्मीद जगाई गई थी। विफल रहे गंगा एक्शन प्लान को 14 जनवरी, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शुरु किया था। इसके दो चरण कई वर्षों तक चले और नतीजा कुछ नहीं निकला। इसके बाद 2009 में राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण बनाया गया। गंगा एक्शन प्लान से लेकर 2017 तक इन तीनों कदमों के तहत  6788.78 करोड़ रुपए सरकार की ओर से जारी किए गए। हालांकि, सरकार के मुताबिक 30 जून, 2017 तक 4864.48 करोड़ रुपए खर्च हो पाए। इन खर्चों पर संदेह भी उठा। अदालतों को भी इन खर्चों की सही जानकारी नहीं मिल पाई। 

एसटीपी या सीवेज नेटवर्क में पब्लिक का पैसा बर्बाद करने के लिए गंगा मामले में पहली बार सीबीआई जांच का भी आदेश किया गया। हालांकि, सीबीआई जांच से जुड़ी कोई रिपोर्ट आजतक नहीं आई है। 14 फरवरी, 2017 को गंगा सफाई मामले में ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश जल निगम के अधिकारियों पर हापुड़ जिले में गढ़ स्थित एसटीपी के डिजाईन और कसंट्रक्शन में खराबी को लेकर सीबीआई जांच का आदेश दिया था।  

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एमसी मेहता मामले में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से गंगा एक्शन प्लान के खर्च की जानकारी दी गई थी लेकिन वह संतुष्ट करने लायक नहीं थी। जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले में 13 जुलाई, 2017 में फैसला सुनाते हुए कहा था कि गंगा इस वक्त देश की सर्वाधिक प्रदूषित नदी है.. कई वर्षों के बाद भी सरकार ने कई घरेलू और औदयोगिक सीवेज उपचार के लिए परियोजनाओं को गंगा एक्शन प्लान के तहत शुरु किया। हालांकि, यह गौर करने लायक है कि एक बड़ी राशि एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) और इफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) पर खर्च होने के बाद भी नदी प्रदूषित है। 

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 और 2017 में 1985 से चल रहे गंगा मामले की सुनवाई और निगरानी के लिए पर्यावरण मामलों की अदालत एनजीटी को भेज दिया था। एनजीटी तबसे इस मामले की निगरानी कर रही है। 22 जुलाई, 2022 को एनजीटी ने राष्ट्रीय गंगा परिषद की ताजा रिपोर्ट के आधार पर कहा कि इतनी घोषणाों के होने के बाद भी जुलाई, 2022 तक पांच प्रमुख गंगा राज्यों - उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश,  बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल में गंगा नदी में 60 फीसदी बिना उपचार वाले सीवेज की निकासी जारी है।  

एनजीटी ने 22 जुलाई, 2022 को रिपोर्ट में पाया कि गंगा राज्यों में एसटीपी और सीईटीपी न सिर्फ 60 फीसदी तक कम हैं बल्कि अपनी क्षमताओं से भी कम काम कर रहे हैं। 

केंद्र सरकार की सूचना के मुताबिक 21 मार्च, 2022 तक वित्त वर्ष 2014-15 से लेकर 28 फरवरी, 2022 तक गंगा सफाई और पुनरुद्धार के लिए कुल 15,524 करोड़ रुपए आवंटित किए गए। इनमें से भारत सरकार ने 11567.02 करोड़ रुपए एनएमसीजी को दिया और एनएमसीजी ने यह फंड राज्यों और जिलों में परियोजनाओं के लिए अमल के लिए दिया।  

केंद्र सरकार के मुताबिक गंगा में प्रदूषण की रोकथाम और सौंदर्य की विविध परियोजनाओं के लिए स्वीकृत 30853.53 करोड़ रुपए से कुल 364 परियोजनाओं को आकार देना है, हालांकि 21 मार्च, 2022 तक सिर्फ 183 परियोजनाएं ही पूरी की जा सकीं। घरेलू और औद्योगिक सीवेज रोकने के लिए एसटीपी और सीईटीपी का निर्माण इन परियोजनाओं में शामिल हैं। 

1985 से फंड का प्रवाह जारी है और गंगा का प्रवाह थम गया है। 22 जुलाई, 2022 को एनजीटी ने अपने आदेश में कहा कि गंगा का पर्यावरणीय प्रवाह भी काफी मंद पड़ गया है। केंद्र सरकार ने जिस तरह से बढ़-चढ़ कर गंगा की स्वच्छता को लेकर घोषणाएं की थी, दरअसल वह अभी तक कागजों पर ही उतर पाई हैं।