फोटो कैप्सनः हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र लाहौल में छह पंचायतों के महिला मंडल की सदस्य सत्याग्रह कर रही हैं। फोटो: रोहित पराशर 
नदी

हिमाचल: अस्तित्व बचाने के लिए जनजातीय महिलाओं ने शुरू किया सत्याग्रह

जनजातीय क्षेत्र लाहौल में बाढ़ प्रभावित छह पंचायतों जहालमा, जुंडा, गोहरमा, नालडा, शांशा और जोबरंग के महिला मंडलों की महिलाएं एकजुट होकर संघर्ष कर रही हैं

Rohit Prashar

हिमाचल प्रदेश में इन दिनों मौसम सर्द है और पारा शून्य से नीचे जा रहा है। ऐसे सर्द मौसम में हिमाचल के जनजातीय जिला लाहौल की छह पंचायत की महिलाओं ने अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सत्याग्रह छेड़ रखा है।

वे चाहती हैं कि प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान के बाद राहत कार्याें में देरी और भविष्य में आने वाली आपदाओं से कम नुकसान हो।

दरअसल लाहौल के जहालमा नाले में पिछले चार वर्षाें से लगातार बाढ़ आ रही है, जिसका खामियाजा आसपास की छह पंचायतों जहालमा, जुंडा, गोहरमा, नालडा, शांशा और जोबरंग के हजारों लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

जहालमा नाले की वजह से जोबरंग, लिंडूर, ताड़ंग और अन्य कई गांवों में भू धंसाव हो रहा है और इससे गांव के अस्तित्व खतरे में है। नाले में आने वाली बाढ़ से दर्जनों घरों को नुकसान पहुंचा है और कई लोगों की खेती की जमीनें और सेब के बाग इसकी चपेट में आ चुके हैं।

चार वर्षाें से बनी इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए इन पंचायतों के महिला मंडलों ने पांच दिन पहले जहालमा में एकत्रित होकर एक बैठक की और इस बैठक में इन्होंने इस सत्याग्रह की शुरूआत की है।

अब पिछले चार दिनों से हर रोज महिला मंडल की सदस्य महिलाएं हाथों में तख्तियां लेकर एकत्रित होती हैं और सरकार से नाले व नदी के चैनलाइजेशन की मांग कर रही हैं। जोबरंग पंचायत के महिला मंडल सदस्य रेनू केवा का कहना है कि हमारे ऊपर लगातार खतरा बना हुआ है, इसलिए प्रशासन को चाहिए कि नदी में जो मलबा भरा हुआ है उसे समय पर उठाया जा सके ताकि भविष्य में खतरा कम हो।

उन्होंने कहा कि अभी समय सही है और काम करना भी आसान है यदि यही स्थिति बनी रहती है तो आने वाले गर्मियों के सीजन में हमारे ऊपर खतरा फिर से मंडराने लगेगा और हमारे गांवों का अस्तित्व तक मिट सकता है।

महिला मंडल की अन्य सदस्या प्रोमिला देवी ने कहा कि पिछले चार सालों से हम नुकसान तो झेल ही रहे हैं साथ ही खतरा हर साल बढ़ता जा रहा है। हमारा सरकार से अनुरोध है कि सरकार ने इससे बचाव के लिए जो डीपीआर बनाई है उसके लिए बजट मिले और इसपर जल्द से जल्द कार्य शुरू किया जा सके।

इस सत्याग्रह को राजनीतिक लोगों का भी समर्थन मिलना शुरू हो गया है। लाहौल के विधायक रहे और पूर्व सरकार में मंत्री रहे रामलाल मारकंडा ने भी महिला मंडलों के सत्याग्रह में शामिल होकर उनका समर्थन किया।

मारकंडा ने कहा कि जहालमा नाले व नदी के चैनलाइजेशन की मांग पूरी तरह से जायज है और इसमें सरकार को तुंरत काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस नाले की वजह से लाहौल वासियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है इसलिए मैं महिला मंडलों की महिलाओं के सत्याग्रह का समर्थन करता हूं और इस सत्याग्रह में उनका भरपूर सहयोग करूंगा।

जहालमा नाले में बाढ़ की चपेट में अपनी जमीन खोने वाले और पूर्व में जिला परिषद के अध्यक्ष सुदर्शन जस्पा भी इस सत्याग्रह में महिलाओं के साथ खड़े हैं। सुदर्शन जस्पा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इस नाले में बाढ़ की वजह से उनकी भी 20 बीघा जमीन खत्म हो गई है, इसी तरह यह नाला अभी तक सैकड़ों बीघा भूमि निगल चुका है और हर साल इसमें बाढ़ की तीव्रता बढ़ती जा रही है। इसलिए इसका तुरंत उपाय करना चाहिए।

सत्याग्रह की मुख्य मांगे

छह पंचायतों की महिलाओं की ओर से किए जा रहे इस सत्याग्रह में महिलाओं की मुख्य मांगों में पहली मांग लिंडूर गांव के घंसाव को रोकने व गांव को बचाने की है। इसके अलावा जहालमा नाले का चैनलाइजेशन, चंद्रभागा नदी में बने अस्थायी बांधों को खोलने हेतू नदी को चैनलाईज और तटीकरण करना, जहालमा नाले से ध्वस्त सभी कूहलों की मुरम्म के लिए पर्याप्त बजट का प्रावधान और नाले की बाढ़ से बचाने के लिए जल शक्ति विभाग द्वारा तैयार की गई डीपीआर के लिए शीघ्र बजट का प्रावधान कर काम शुरू करने की मांग की जा रही है।

लाहौल की विधायक अनुराधा राणा का कहना है कि वे इस समस्या की ओर बार-बार सरकार के समक्ष मांग उठा चुकी हैं और इसके लिए पर्याप्त बजट मुहैया करवाने को लेकर मुख्यमंत्री से भी कई बार बात कर चुकी हैं।