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नदी

महाकुंभ के दौरान नहाने लायक था गंगा-यमुना का पानी : सीपीसीबी की नई रिपोर्ट

सीपीसीबी ने अब अपने नए विश्लेषण में डेटासेट को बदल दिया है। नए डेटासेट में 7 के बजाए 10 लोकेशन और वाटर क्वालिटी के लिए मीडियन वैल्यू को आधार बनाया गया है

Vivek Mishra

महाकुंभ के दौरान गंगा-यमुना प्रदूषण के मामले में अदालत में रोज नया मोड़ जारी है। 28 फरवरी, 2025 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने अदालत में एक ताजा रिपोर्ट दाखिल करते हुए कहा है "महाकुंभ के दौरान गंगा-यमुना का पानी नहाने लायक तय मानकों पर ठीक था।"

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत भारत सरकार के जरिए पारित पर्यावरण संरक्षण (संशोधन) नियम, 2000 में नहाने लायक पानी की स्वीकार्य सीमा तय की गई है। इसके तहत पानी के नमूने में पीएच का मान 6.5 से 8.5 और घुलित ऑक्सीजन की मात्रा 5 मिलीग्राम (एमजी) प्रति लीटर से ज्यादा, जैव रासायनिक मांग (बीओडी) की मात्रा 3 एमजी प्रति लीटर से कम, फीकल कोलिफॉर्म की मात्रा 2500 मोस्ट प्रोबेबल नंबर (एमपीएन) प्रति 100 एमएल से कम होनी चाहिए।

सीपीसीबी की ओर से दाखिल इस डेटा रिपोर्ट में अब कहा गया है " एक ही स्थानों से अलग-अलग तारीखों पर लिए गए नमूनों में पाया गया कि पीएच, डीओ, बीओडी, फीकल कोलिफॉर्म जैसे पैरामीटर्स में महत्वपूर्ण अंतर है। यहां तक कि एक ही तारीख पर अलग-अलग स्थानों पर एकत्र किए गए नमूनों में इन पैरामीटर्स के बीच बड़ा अंतर मौजूद है।"

सीपीसीबी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया है कि उनकी एक समिति ने जल गुणवत्ता के विभिन्न पैरामीटर्स के बीच मौजूद महत्वपूर्ण अंतर को जांचा है। समिति के मुताबिक," एक विशिष्ट समय और तारीख पर जल गुणवत्ता को तत्कालिक तौर पर प्रदर्शित करने वाले डेटा में कई कारणों से महत्वपूर्ण अंतर आ सकता है।"

सीपीसीबी की समिति ने कहा कि जल गुणवत्ता के आंकड़ों में यह अंतर अपस्ट्रीम यानी ऊपरी हिस्से में मानवीय गतिविधियों, बहाव की दर, नमूना लेने की गहराई, नमूना लेने का समय, नदी का करंट और अन्य करंट का मिलना, नमूना लेने का स्थान आदि कारणों से आ सकते हैं। इसलिए किसी खास स्थान और समय पर लिए गए नमूनों के आंकड़ों से पूरी नदी के चरित्र के बारे में पूरी तरह नहीं बताया जा सकता। न ही किसी धारा के जरिए नदी की पूरी जल गुणवत्ता के बारे में बताया जा सकता है।

सीपीसीबी ने अपनी रिपोर्ट में अब आंकड़ों का विश्लेषण नए सिरे से किया है। पहले सिर्फ सात लोकेशन से लिए गए आंकड़ों के जरिए जल गुणवत्ता के विभिन्न पैरामीटर्स की व्याख्या की गई थी, जिसके तहत कई स्थानों पर विभिन्न तारीखों में फीकल कोलिफॉर्म और बीओडी की मात्रा अपने तय मानकों से अधिक पाई गई थी। हालांकि, सीपीसीबी ने अब 12 जनवरी से 22 फरवरी तक 22 राउंड निगरानी के बाद एक मध्य मान निकालकर जल गुणवत्ता का फिर से विश्लेषण किया है। साथ ही सात लोकेशन के बजाए अब 10 लोकेशन के जल नमूने के आंकड़ों का विश्लेषण किया है।

सीपीसीबी का कहना है कि "10 लोकेशन के आधार पर पीएच, डीओ, बीओडी और फीकल कोलिफॉर्म की मीडियन वैल्यू नहाने लायक तय मानकों पर स्वीकार्य हैं।"

सीपीसीबी की रिपोर्ट में मीडियन वैल्यू के आधार पर वाटर पैरामीटर्स का नया विश्लेषण, स्रोत : एनजीटी में दाखिल रिपोर्ट

सीपीसीबी ने एनजीटी को यह बताया है कि उन्होंने इस रिपोर्ट के साथ यूपीपीसीबी को पहले लिए गए सभी नमूनों की प्रयोगशाला जांच रिपोर्ट भी भेजी है।

दरअसल यूपीपीसीबी का कहना था कि सीपीसीबी की पहले वाली रिपोर्ट गलत है। इसके बाद कोर्ट ने यूपीपीसीबी से टिप्पणी में कहा था कि क्या वह सीपीसीबी की रिपोर्ट को चुनौती दे रहे हैं?

बहरहाल अब सीपीसीबी ने एक नई रिपोर्ट नए विश्लेषण के आधार पर दाखिल करते हुए यह साबित करने की कोशिश की है कि नमूनों के आंकड़ों में अंतर था।

सीपीसीबी ने इससे पहले 3 फरवरी, 2025 को जो रिपोर्ट एनजीटी में दाखिल की थी, उसके मुताबिक अलग-अलग तारीखों पर गंगा-यमुना से लिए गए नमूनों में अत्यधिक बीओडी और फीकल कोलिफॉर्म की मात्रा पाई गई थी।

रिपोर्ट के मुताबिक 12 जनवरी, 2025 को गंगा के दीहा घाट और संगम से पहले यमुना में फीकल कोलिफॉर्म तय मानकों से करीब दोगुना अधिक 4500 एमपीएन प्रति एमएल था।

इसके अलावा 13 जनवरी को गंगा के श्रृंग्वेरपुर घाट पर फीकल कोलिफॉर्म 23000 एमपीएन प्रति एमएल, दीहा घाट पर 33000 एमपीएन प्रति एमएल और यमुना के एक स्थान पर 11 हजार एमपीएन था। ध्यान रखने योग्य है कि फीकल कोलिफॉर्म की मात्रा 2500 एमएपीएन प्रति 100 एमल से कम होनी चाहिए।

फीकल कोलीफॉर्म दरअसल कुल कोलीफॉर्म का एक उपसमूह है, जो विशेष रूप से मल से संबंधित बैक्टीरिया को दर्शाता है। ये मुख्य रूप से मानव और पशुओं के मल से आते हैं। इनकी उपस्थिति दर्शाती है कि पानी मल से दूषित है, जिससे जलजनित रोग (टाइफाइड, डायरिया, हैजा आदि) फैल सकते हैं और ये मुख्य रूप से गर्म रक्त वाले जीवों की आंतों में पाए जाते हैं।

इसी तरह 14 जनवरी, 15 जनवरी और 19 व 20 जनवरी को गंगा और यमुना के कई स्थानों पर फीकल कोलिफॉर्म अत्यधिक मात्रा में पाया गया था। इनमें विशेष स्नान वाले दिन भी शामिल थे, जब करोड़ों लोगों ने स्नान किया।

20 जनवरी, 2025 को गंगा में फीकल कोलिफॉर्म की मात्रा 49 हजार एमपीएन प्रति 100 एमएल और यमुना में 33000 एमपीएन प्रति 100 एमएल तक पाई गई।

हालांकि, जिन 21 नालों को जियोट्यूब तकनीक से जोड़ा गया था, वहां उपचार के बाद फीकल कोलिफॉर्म 96 लाख एमपीएन प्रति 100 एमएल तक पाया गया। सीपीसीबी के ताजा रिपोर्ट में इसका कोई नया विश्लेषण नहीं किया गया है।

एनजीटी में दाखिल इस रिपोर्ट पर अप्रैल, 2025 में सुनवाई होनी है।