चुनाव का मौसम आ गया है और नेताओं ने अपना चुनाव अभियान शुरू भी कर दिया है। जहां विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपने वादे पूरे न करने का आरोप लगा रहा है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पूरी तरह अपने फौलादी नेता पर भरोसा कर रही है जो पाकिस्तान पर गोलियां बरसा सकता है और आतंकवादियों को बिरयानी नहीं खिलाता।
पिछले पांच वर्षों में पवित्र गंगा नदी की धारा अविरल बहती रही है लेकिन स्वच्छ गंगा परियोजना और नमामी गंगे परियोजना के बावजूद यह नदी अब भी गंदगी से जूझ रही है। उत्तर प्रदेश की अन्य नदियों की हालत भी कुछ बेहतर नहीं है और उनका तो किसी भी राजनीतिक भाषण में उल्लेख तक नहीं होता है।
हालांकि अभी चुनाव अभियान के शुरुआती दिन हैं, लेकिन किसी भी राजनेता ने गंगा के प्रदूषण के बारे में बात नहीं की है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपनी पार्टी तथा पार्टी प्रमुख, अपने भाई राहुल का प्रचार करने के लिए 18 मार्च से प्रयागराज से वाराणसी के बीच नाव पर गंगा की सैर की थी। उन्होंने अन्य मुद्दों के अलावा बेरोजगारी पर बात की और मंदिरों में दर्शन किए लेकिन गंगा नदी की स्थिति के बारे में कुछ नहीं कहा।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (आईआईटी-बीएचयू), वाराणसी से जुड़े तथा संकट मोचन मंदिर के महंत विश्वंभर नाथ मिश्रा कहते हैं, “जब भी वे ऐसा (गंगा के बारे में बात) करेंगे, पकड़े जाएंगे। उनका झूठ सबके सामने आ जाएगा।”
नमामी गंगे परियोजना को अपनी सरकार की मुख्य परियोजना बनाने से पहले वर्ष 2014 में मोदी ने वाराणसी से नामांकन पत्र भरते समय ‘मां गंगा ने बुलाया है’ कहकर लोक सभा चुनावों के लिए अभियान की शुरुआत की थी। प्रयागराज में महाकुंभ का प्रचार भी यह दावा करने के लिए किया गया था कि गंगा इससे पहले इतनी साफ कभी नहीं थी।
गंगा नदी के प्रदूषण के बारे में पूछने पर बीएचयू के प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी हंस पड़ते हैं। वह कहते हैं, “संभवत: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रक बोर्ड की नवीनतम रिपोर्ट सच न हो लेकिन यह सरकारी दस्तावेज है।”
मिश्रा दावा करते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर कानपुर के सभी बूचड़़खाने बंद होने के बावजूद उन्होंने प्रयागराज में गंगा में गंदगी देखी है। इन बूचड़खानों से निकली अनुपचारित गंदगी नदी के प्रदूषण का प्रमुख कारण है। इसके अलावा नालियों से निकला कचरा भी गंगा सहित लगभग सभी नदियों के पानी को प्रदूषित करता है।
संकट मोचन फाउंडेशन की गंगा प्रयोगशाला द्वारा तुलसी घाट से एकत्र किए गए आंकड़ों से चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। यह रिपोर्ट दर्शाती है कि ऊपरी धारा नगवा में दूषित कॉलीफार्म की मात्रा जनवरी 2016 में 4.5 लाख से बढ़कर फरवरी 2019 में 3.8 करोड़ हो गई। इसी अवधि के दौरान निचली धारा में यह मात्रा 5.2 करोड़ से बढ़कर 14.4 करोड़ हो गई। ‘बाहर नहाने के पानी में’ कुल कॉलीफार्म ऑर्गेनिज्म की अधिकतम संभावित संख्या (एमपीएन) प्रति 100 मि.मी. में 500 या उससे कम होनी चाहिए।
मिश्रा सवाल उठाते हैं, “लोग यह सोचकर गंगाजल पीते हैं कि यह पूरी तरह शुद्ध है। सोचिए, इतनी बड़ी मात्रा में दूषित कॉलीफार्म का लोगों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा।”
केवल कॉलीफार्म बैक्टीरिया की मौजूदगी ही चिंता का विषय नहीं है, बल्कि जैव-रासायनिक ऑक्सीजन की बढ़ती मांग भी चिंता का कारण है जो 2016 में 46.8-54 एमजी/लीटर से बढ़कर फरवरी 2019 में 66-78 एमजी/लीटर हो गई है।
एसएमएफ के आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा वर्ष 2016 से 2019 में दौरान 2.4 एमजी/लीटर से गिरकर 1.4 एमजी/लीटर पर आ गई है। सामान्यत: घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर 6 एमजी/लीटर होना चाहिए।
वहीं दूसरी ओर, गंगा की सहायक नदी वरुणा में प्रदूषण की स्थिति को देखते हुए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर भरोसा नहीं किया जा सकता। जनवरी 2019 में पूर्वी उत्तर प्रदेश की नदी और जलाशय निगरानी समिति के औचक निरीक्षण के दौरान वरुणा में अर्दली बाजार से निकला जानवरों का खून पाया गया। न ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों और न ही नगर निगम के अधिकारियों को इस बात की जानकारी थी।
यह हालत तब है जबकि उत्तर प्रदेश देश में सबसे अधिक जनसंख्या वाला तथा राजनैतिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण राज्य है। लोकसभा में इस राज्य से 80 सांसद आते हैं जो निचले सदन की कुल क्षमता का 15 प्रतिशत है। जहां तक सरकार बनाने की बात है, हाल के वर्षों में उत्तर प्रदेश के सांसदों ने गठबंधन सरकार में 20 प्रतिशत सीटों का योगदान दिया है और वर्तमान राष्ट्रीय लोकतांत्रित गठबंधन (एनडीए) सरकार में भाजपा के 71 सांसद इस राज्य से हैं।
अनुपचारित गंदे पानी और औद्योगिक गंदगी मिलने के कारण गोरखपुर के आसपास रामगढ़ झील, अमी नदी, राप्ती नदी और रोहिणी नदी के गंभीर रूप से प्रदूषित होने की जानकारी मिलने के बाद एनजीटी ने दिसंबर 2017 में इस समिति का गठन किया था।
लखनऊ स्थित गोमती नदी की हालत तो और भी खराब है। एनजीटी द्वारा नियुक्त उत्तर प्रदेश ठोस अपशिष्ट निगरानी समिति ने फरवरी 2019 को किए गए निरीक्षण के दौरान यह पाया कि मांस की दुकानों से जानवरों के अवशेष लखनऊ में कुकरेल नाले में बहाए जाते हैं जो गोमती में जाकर मिलते हैं।
समिति ने पाया कि प्रतिदिन 280 मिलियन लीटर (एमएलडी) गंदा पानी नदी में मिलता है। 400 एमएलडी की क्षमता की तुलना में केवल 120 एमएलडी गंदा पानी शोधन हेतु भरवारा शोधन संयंत्र में भेजा जा रहा था।
निगरानी समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डीपी सिंह ने कहा कि स्थिति चिंताजनक है।
यह हालात तब है जबकि वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अधिकारियों को नदी की रक्षा के लिए नालियां बनाने का निदेश दिया था ताकि गंदगी को गंगा में जाने से रोका जा सके। उन्होंने एनजीटी के निर्देशों के बावजूद नालों की गंदगी के गोमती में मिलने पर असंतोष व्यक्त किया।
अब तक नदी के प्रदूषण का किसी भी राजनीतिक भाषण में जिक्र नहीं हुआ है। छोटी नदियों की तो बात ही छोड़िए, वर्ष 2014 के चुनाव घोषणा पत्र में गंगा और यमुना जैसी नदियों का भी उल्लेख नहीं किया गया था।
इस बीच, गंगा को बचाने के लिए अनशन पर बैठे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद और वयोवृद्ध पर्यावरणविद् जीडी अग्रवाल की मृत्यु के बाद एक अन्य साधु ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद का उपवास 154वें दिन में प्रवेश कर गया है।