नदी

33 साल से कोसी को दिन बहुरने की चाह, मंत्रिमंडल ने उत्थान कार्यक्रम बनाया लेकिन लागू करना भूल गई  

कोसी तटबंध पीड़ित किसानों ने कहा है कि वह 23 फरवरी को महापंचायत कर सरकार को इसकी याद दिलाएंगे

Vivek Mishra

“कोशी (कोसी) नदी पर तटबंध बन जाने के पश्चात तटबंधों के भीतर के लाखों लोगों का जीवन बड़ा ही कष्टमय रहा है। शायद ही देश में कोई ऐसा स्थान मिले जहां इतनी बड़ी आबादी नदी की धाराओं के बीच पड़ी हो। मुसीबत के मारे ये लोग जीवन से निराश हो बैठे थे। ….सरकार इन पीड़ितों के सर्वागींण विकास के लिए कृतसंकल्प है। एक प्राधिकार का भी गठन कर दिया गया है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि …लोगों के जीवन में एक बार फिर खुशहाली आ सके…”

यह 33 बरस पुराने कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार के प्रस्तावित कार्यक्रम में तत्कालीन मुख्यमंत्री विन्देश्वरी दूबे के एक संदेश का कुछ जरूरी अंश है। 28 अप्रैल 1987 की तारीख को कोशी पीड़ितों के उत्थान को लेकर विकास प्राधिकार का गठन कर दिया गया था। उसी दस्तावेज में यह अंश है। प्रस्तावित कार्यक्रम में खूब जोर लगाकर कहा गया था कि अधिकारी जी-जान से कोशी की सेवा करेंगे और कोशी के दिन बहुरेंगे।  

कोशी का कुछ नहीं हुआ। तीन दशक से लगातार अधिकारों की मांग करते तटबंध के बीच फंसे पीड़ित किसानों ने अब महापंचायत का ऐलान किया है। यह महापंचायत बिहार के सुपौल में फरवरी में होगी। इसके जरिए कोशी के किसानों की मांग उठायी जाएगी।  

1987 के कोशी विकास प्राधिकार की प्रस्तावित कार्ययोजना में कहा गया कि कोशी को बांधने के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरु ने बीड़ा उठाया था। उसी वक्त तटबंधों के बीच रहने वाले लोगों ने इसका विरोध भी किया था। लेकिन तटबंध के भीतर रहने वाले लोगों का पुनर्वास कार्यक्रम विफल हुआ, जो अभी तक लंबित है।

कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार के तत्कालीन अध्यक्ष और कृषि मंत्री लहटन चौधरी ने भी अपनी कृतज्ञता जाहिर कर कोशी तटबंध के बीच फंसे लोगों को राहत की शुभकामनाएं दी थीं। लेकिन यह सब राजनीतिक जुमले ही साबित हुए।

महापंचायत की अगुवाई करने वाले कोशी नव निर्माण मंच के महेंद्र यादव ने कहा कि 30 जनवरी 1987 को बिहार मंत्रिमंडल की बैठक में तटबंध के बीच फंस जाने वाले पीड़ित किसानों के लिए चिकित्सा, शिक्षा, कृषि विकास कार्यों, सिंचाई व्यवस्था और उद्योग-धंधे की सुविधा को लेकर रुपरेखा तैयार की गई थी। इसमें अभी तक एक भी कार्यक्रम जमी पर नहीं उतरा। कोशी को सिर्फ राजनीतिक वादे और उपेक्षा ही मिली है।

कोशी तटबंध के बीच रहने वाले तबसे आजतक बाढ़ से त्रस्त हैं। इनकी दिखावटी सहायता जारी है। गांवों का न तो पुर्नवास हुआ और न ही कोई रोजगार व शिक्षा की व्यवस्था यहां बन पाई। कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार का मुख्यालय बिहार के सहरसा जिले में बनाया गया था। इनमें कुल 19 सदस्य थे। जो प्रस्तावित कार्यक्रम थे वे जस के तस रह गए।

कोशी नव निर्माण मंच ने कहा कि सुपौल में 23 फरवरी को होने वाली महापंचायत में यह मुद्दे फिर से उठाए जाएंगे। इस महापंचायत में कई गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता और किसान नेता भी शामिल होंगे।