नदी

पैसे की बर्बादी और गंगा में बढ़ते प्रदूषण को रोकने में विफल रहने पर एनजीटी ने अधिकारियों को लगाई फटकार

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और सुधीर अग्रवाल की पीठ ने उत्तर प्रदेश प्रशासन की नाकामी पर असंतोष व्यक्त करते हुए अधिकारियों को फटकार लगाई है। मामला उत्तर प्रदेश में गंगा प्रदूषण से जुड़ा है।

कोर्ट ने विशेष रूप से जनता के पैसे की बर्बादी और गंगा को होते नुकसान को रोकने में अधिकारियों की विफलता और उनकी जवाबदेही तय करने में उत्तर प्रदेश प्रशासन की नाकामी पर असंतोष जताया है। अदालत ने 12 अप्रैल 2023 को दिए अपने आदेश में कहा कि बलिया में वर्षों से जमा 3.37 लाख मीट्रिक टन कचरे को निपटाना अभी बाकी है।

न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को राज्य के अन्य संबंधित अधिकारियों के साथ मिलकर जरूरी कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया है। कोर्ट ने कहा है कि इसके लिए संबंधित अधिकारियों की एक माह के भीतर विशेष बैठक बुलाई जाए। इस बैठक में दोषी अधिकारियों की जिम्मेवारी तय करने के साथ जरूरी उपायों को करने पर चर्चा की जाएगी। साथ ही कोर्ट ने चार माह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया है।

एनजीटी ने 12 अप्रैल को कहा कि एसीएस अर्बन डेवलपमेंट, द्वारा दायर रिपोर्ट में राज्य अधिकारियों की लगभग पूरी तरह निष्क्रियता दिखाई गई है। अधिकारियों ने जिम्मेवारी से बचने के लिए पैसे की मांग को छोड़कर कोई भी काम नहीं किया। न ही उन्होंने पहले दिए गए धन का सही तरह से उपयोग किया और न ही स्थानीय तौर पर धन एकत्र करने के प्रयास किए हैं। साथ ही अधिकारियों की जवाबदेही भी तय नहीं की गई है जो गंगा में सीधे छोड़े जा रहे प्रदूषण के लिए जिम्मेवार हैं।

अदालत का कहना है कि गंगा में हर दिन करीब 20 एमएलडी दूषित सीवेज डाला जा रहा है और बलिया में 6 स्थानों पर दावा किए गए इन-सीटू ट्रीटमेंट के प्रदर्शन के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। गौरतलब है कि आवेदन में बलिया में गंगा नदी से जुड़े कटहल नाले में सीवेज और ठोस कचरे को डाले जाने के खिलाफ शिकायत की गई थी।

जब 22 जुलाई, 2022 को एनजीटी के समक्ष यह मामला उठाया गया, तो अदालत ने स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), शहरी सचिव की संयुक्त समिति द्वारा दायर रिपोर्ट पर विचार किया था। इस समिति में उत्तर प्रदेश विकास विभाग, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और बलिया के जिलाधिकारी भी शामिल थे। अदालत के मुताबिक 57 किलोमीटर सीवेज पिछले 13 वर्षों से प्रयोग में नहीं है। न ही वहां कोई टर्मिनल सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट है जो प्लांट है वो बेकार पड़ा है।

जानकारी होने के बावजूद सीकर में अधिकारियों ने अवैध आरा मिलों के खिलाफ नहीं की कार्रवाई

सीकर में अवैध रूप से चल रही आरा मिलों के खिलाफ अधिकारियों द्वारा कोई भी कार्रवाई नहीं की गई है। मामला राजस्थान का है, जहां यह पता होने के बाद भी कि नियमों का उल्लंघन किया गया है, अधिकारियों ने इन अवैध आरा मिलों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की थी। यह बातें एनजीटी ने अपने 12 अप्रैल को दिए आदेश में कहीं हैं।

पता चला है कि सीकर में 18 आरा मिलें सहमति के बिना चल रही हैं। इसके बावजूद न तो उन्हें रोका गया और न ही पिछले उल्लंघनों के लिए उनकी जवाबदेही तय की गई है। ऐसे में कोर्ट ने आदेश दिया है कि इन अवैध आरा मिलों के साथ-साथ इसमें शामिल अधिकारियों की जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए।

अदालत ने अवैध रूप से चल रही इन आरा मिलों को बंद करने और पिछले उल्लंघनों के लिए उनकी जवाबदेही तय करने के साथ-साथ दोषी अधिकारियों की जवाबदेही तय करने और कार्रवाई को अंतिम रूप देने के लिए एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया है।

राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 23 आरा मिलें वन विभाग के पास पंजीकृत हैं। इनमें से पांच बंद हैं और 18 चालू हैं। हालांकि केवल दो के पास चलाने के लिए सहमति है, जबकि शेष 16 आरा मिलों से पर्यावरण मुआवजा वसूलने की प्रक्रिया चल रही है।