नदी

आगरा में पैदा हो रहे सीवेज और उसके प्रबंधन में है भारी अंतर: एनजीटी

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और सुधीर अग्रवाल की बेंच का कहना है कि आगरा जैसे महत्वपूर्ण शहर में पैदा हो रहे सीवेज और उसके प्रबंधन में भारी अंतराल और कमियां हैं। 11 अप्रैल, 2023 को दिए इस आदेश में कोर्ट ने कहा है कि अभी भी ट्रीटेड सीवेज का उपयोग करने की जगह उसे यमुना में डाला जा रहा है।

कोर्ट ने कहा है कि अधिकारियों द्वारा सबमिट रिपोर्टों से ऐसा लगता है जैसे तत्काल एसटीपी प्रदान करने की कोई आवश्यकता नहीं है। एनजीटी ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि 2014 के बाद से कोई एसटीपी स्थापित नहीं किया गया है।

ऐसे में एनजीटी ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को राज्य में अन्य संबंधित प्राधिकरणों के साथ मिलकर जरूरी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। इसके लिए संबंधित अधिकारियों की विशेष बैठक एक महीने के भीतर बुलाई जानी चाहिए ताकि यह विचार किया जा सके कि आगरा में मौजूदा सभी नौ एसटीपी का पूरी तरह से उपयोग किया जा रहा है और वो मानकों का पालन कर रहे हैं।

इसके अलावा, कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया है कि इस ट्रीटेड पानी का उपयोग अन्य प्रयोजनों के लिए किया जाना चाहिए। साथ ही आंशिक रूप से टैप की गई नालियों को रोका जाना चाहिए और उन्हें एसटीपी की ओर मोड़ा जाना चाहिए।

इस मामले में अदालत ने चार महीनों के भीतर एक कार्रवाई रिपोर्ट दायर करने का भी निर्देश दिया है। साथ ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को आगरा में क्लोरीनीकरण, उर्वरक-सिंचाई, एसटीपी के प्रदर्शन और इन-सीटू परियोजनाओं से संबंधित एक रिपोर्ट दर्ज करनी है।

एनजीटी ने कहा है कि आगरा में 91 में से 21 नालों जिनका प्रवाह 58.25 एमएलडी है उनका दोहन किया जा रहा है, वहीं आठ नालों का आंशिक रूप से दोहन किया जाता है। जबकि 61 नालों जिनकी क्षमता 16.93 एमएलडी है उनका दोहन नहीं हो रहा है और उसे ऐसे ही यमुना में डाला जा रहा है। वहीं 286 एमएलडी सीवेज नालियों में बहाया जाता है, जबकि केवल 58.25 एमएलडी का ही उपयोग किया जाता है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी 24 फरवरी, 2023 को जारी रिपोर्ट में स्वीकार किया था कि यमुना नदी में बिना साफ किया 131 एमएलडी सीवेज छोड़ा जा रहा है। साथ ही सीपीसीबी ने इस मामले में जरूरी कार्रवाई करने में अधिकारियों की विफलता को भी स्वीकार किया था।

एनजीटी ने मथुरा में पर्यावरण नियमों की अनदेखी करने वाले ईंट भट्ठों की दिए जांच के आदेश

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और मथुरा के जिलाधिकारी को निर्देश दिया है कि वे मथुरा में उन ईंट भट्ठों की जांच करें जो पर्यावरणी सम्बन्धी नियमों की अनदेखी कर रहे हैं। कोर्ट ने इस मामले में वास्तविक स्थिति की जांच करने के साथ कानून को ध्यान में रखते हुए जरूरी कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने इसपर अगले दो महीनों में रिपोर्ट भी मांगी है।

गौरतलब है कि इस मामले में महेंद्र सिंह ने एक आवेदन दायर किया था, जिसमें उन्होंने मथुरा में चल रहे दो ईंट भट्ठों ओपीएन ईंट उद्योग और शिव एंट उद्योग के संचालन में पर्यावरण नियमों के लगातार उल्लंघन का आरोप लगाया था।

इस मामले में पहले भी 9 मई, 2022 को आदेश जारी किया गया था, जिसमें एनजीटी ने मथुरा में चल रहे ईंट भट्टों को पर्यावरण नियमों का पालन करने का निर्देश दिया था। कहा गया है कि मथुरा में कई अन्य ईंट भट्ठे भी साइटिंग से जुड़े दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। साथ ही सहमति की शर्तों और वायु गुणवत्ता मानदंडों का भी पालन नहीं किया जा रहा है।

कृषि भूमि पर छोड़ा जा रहा है रघुनाथपुर थर्मल पावर प्लांट से निकलता दूषित पानी

रघुनाथपुर थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाला दूषित जल कृषि भूमि पर छोड़ा जा रहा है। मामला पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले का है, जहां घुटीटोरा, लछियारा, वलदुबी, अस्ता, पथुरीडांगा और खैराबाद गांवों में कृषि भूमि पर यह पानी डाला जा रहा है।

ऐसे में 10 अप्रैल 2023 को एनजीटी ने संयुक्त समिति को निर्देश दिया है कि वो इससे प्रभावित किसानों को क्या उचित मुआवजा दिया जाए उसका निर्धारण करे। इस समिति की अध्यक्षता पश्चिम बंगाल में पर्यावरण के अतिरिक्त मुख्य सचिव करेंगे। साथ ही इस समिति में पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पुरुलिया के जिला मजिस्ट्रेट, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आदि के सदस्य शामिल होंगे।

इस मामले में एनजीटी की पूर्वी खंडपीठ का कहना है कि कृषि भूमि पर छोड़े जा रहे दूषित पानी को रोकने के लिए जो कुछ कदम उठाए गए हैं, उन्हें पर्याप्त नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट को बताया गया है कि फ्लाई ऐश को रोकने के लिए एक सेटलिंग तालाब बनाया गया है, लेकिन अतिरिक्त फ्लाई ऐश अथवा पानी कहां ले जाया जा रहा है, यह स्पष्ट नहीं है।

यह भी स्पष्ट नहीं है कि प्रभावित किसानों को लंबे समय तक खेती न कर पाने से हुए नुकसान की भरपाई कैसे की गई है, जैसा कि एनजीटी के समक्ष दायर संयुक्त समिति की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है। इसके अलावा, फ्लाई ऐश का जल्द से जल्द उपयोग करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है।