गंगा डॉल्फिन फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स CC4.0 
नदी

गंगा किनारे अतिक्रमण और डॉल्फिन पर संकट: सुप्रीम कोर्ट ने तलब की स्थिति रिपोर्ट

कोर्ट में दाखिल रिपोर्ट में बताया गया कि 151 अतिक्रमण मामलों में से 15 मामले अभी तक दर्ज किए गए

Vivek Mishra

सुप्रीम कोर्ट ने गंगा नदी के किनारों पर बढ़ते अतिक्रमण को लेकर चिंता जताई है। कोर्ट ने केंद्र सरकार, बिहार सरकार और अन्य संबंधित प्राधिकरणों को निर्देश दिया है कि वे चार सप्ताह में विस्तृत रिपोर्ट दाखिल कर अतिक्रमण की स्थिति के बारे में बताएं।

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने 2 अप्रैल, 2025 को इस संबंध में स्पष्ट, विस्तृत और समयबद्ध रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है।

कोर्ट ने यह आदेश पटना निवासी अशोक कुमार सिन्हा द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई करते हुए दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा "वह मामले की वर्तमान स्थिति के बारे में पूरी जानकारी चाहता है।"

न्यायालय ने राज्य और केंद्र सरकार दोनों से पूछा है "अब तक किन अतिक्रमणों को हटाया गया है? अभी कितने अतिक्रमण शेष हैं? उन्हें हटाने की कार्य योजना क्या है? यह कार्रवाई कितने समय में पूरी की जाएगी?"

न्यायालय ने यह भी कहा कि वह अंतिम निर्देश जारी करने से पहले इन सभी बिंदुओं पर एक स्पष्ट रिपोर्ट देखना चाहता है।

न्यायालय ने मामले में स्पष्टता के आदेश से पहले पूर्व में 18 सितंबर, 2023 को पेश की गई रिपोर्ट पर भी गौर किया।

इस सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह उल्लेख किया गया है कि महत्मा गांधी सेतु से नौजर घाट तक फैले संबलपुर दियारा क्षेत्र में 151 अवैध निर्माण हैं। जिनमें अस्थायी और स्थायी दोनों प्रकार की संरचनाएं शामिल हैं। इनकी पहचान की गई है। यह कार्य जिला अधिकारी के आदेश से गठित टीम द्वारा किया गया, जिसने 1908-09 के सर्वेक्षण मानचित्र और 1932-33 की नगरपालिका सर्वेक्षण रिपोर्ट की तुलना कर यह विश्लेषण प्रस्तुत किया।

साथ ही बताया गया कि इन निर्माणों को हटाने की प्रक्रिया के लिए बिहार पब्लिक लैंड अतिक्रमण अधिनियम, 1956 के तहत कार्रवाई आरंभ की जा चुकी है। अब तक 15 अतिक्रमण वाद दर्ज किए जा चुके हैं। हालांकि, न्यायालय ने इस मामले में और स्पष्टता की मांग की है।

मामले की सुनवाई के दौरान अपीलकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता श्री आकाश वशिष्ठ ने कोर्ट को बताया कि बिहार में गंगा के बाढ़ क्षेत्र, जो मीठे पानी की डॉल्फिन का अत्यंत समृद्ध आवास क्षेत्र है, वहां बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण हो रहा है।

उन्होंने कहा, “इन संरचनाओं से न केवल गंगा नदी और उसमें रहनेवाली डॉल्फिन को गंभीर खतरा है, बल्कि गंगा जल की शुद्धता और पवित्रता भी प्रभावित हो रही है। पटना का भूजल आर्सेनिक से गंभीर रूप से प्रदूषित है, ऐसे में गंगा जल की शुद्धता पीने के पानी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अनिवार्य है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता अशोक कुमार सिन्हा को भी अतिक्रमण की वर्तमान स्थिति से अवगत कराना होगा। वशिष्ठ ने यह भी दलील दी कि गंगा या उसकी सहायक नदियों के बाढ़ क्षेत्रों की सीमांकन प्रक्रिया गंगा प्राधिकरण आदेश, 2016 के केंद्रीय कानूनी प्रावधानों के अनुरूप नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि गंगा बेसिन के अधिकांश राज्य इन क्षेत्रों की सीमांकन में मनमाना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विहीन रवैया अपना रहे हैं, जिससे पर्यावरणीय नुकसान की आशंका बढ़ जाती है।

यह मामला मूल रूप से राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के 2020 के आदेश से उत्पन्न हुआ, जिसमें पटना निवासी अशोक सिन्हा की याचिका को निपटाते हुए अतिक्रमण की समस्याओं पर कोई ठोस समाधान नहीं दिया गया था। याचिका में उन्होंने बताया था कि पटना में गंगा के बाढ़ क्षेत्रों में बिहार सरकार द्वारा 1.5 किलोमीटर लंबी सड़क समेत कॉलोनियों, ईंट भट्टों और अन्य निर्माण कार्य किए गए हैं, जबकि यह क्षेत्र पूरे उपमहाद्वीप में डॉल्फिन का एक प्रमुख प्राकृतिक आवास है।

याचिका में यह भी उल्लेख किया गया कि पटना के गंगा से सटे क्षेत्रों का भूजल अत्यधिक आर्सेनिक युक्त है, जिससे लगभग 5.5 लाख की आबादी प्रभावित हो सकती है। इसलिए गंगा की पारिस्थितिकीय अखंडता और जल की शुद्धता को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि वह इस मामले का दायरा बढ़ाकर गंगा बेसिन के सभी 11 राज्यों के बाढ़ क्षेत्रों को इसमें शामिल कर सकता है। यदि ऐसा हुआ, तो यह निर्णय पूरे गंगा क्षेत्र में पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल बन सकता है।