बांध बनने के बाद सिवनी, जबलपुर और मंडला जिले के लोग बांध के आसपास ऊंची जगहों पर जाकर बस गए थे। अब इन्हें आसपास के गांव तक जाने के लिए जर्जर नाव का सहारा लेना पड़ता है। गांव वाले कई वर्षों से सरकारी स्टीमर सेवा की मांग कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश के मंडला, जबलपुर और सिवनी जिले की सीमा से लगे 162 गांव बरगी बांध के किनारे पर बसे हैं। इन गांव के बीच यातायात का सबसे आसान और सस्ता साधन उनकी नावें हैं। इन गांव वालों के खेत और आपसी रिश्तेदारी होने की वजह से अक्सर यातायात के लिए इन्हें नाव का सहारा लेना पड़ता है। नाव की हालत खराब होने को वजह से आए दिन यहां हादसे होते रहते हैं। एक ऐसा ही हादसा 20 जून को भी हुआ। मंडला के नारायणगंज तहसील के गांव मोहगांव में 14 लोगों को लेकर जा रही नाव बरगी बांध में पलट गई। इसमें सवार दो लोगों की मृत्यु हो गई जबकि 3 लोग अब भी लापता हैं। सभी नाव सवार सिवनी जिले से एक शादी में शामिल होकर वापस आ रहे थे।
इस बांध पर यह कोई पहला हादसा नहीं है। जबलपुर के बरगी नगर निवासी शारदा यादव के मुताबिक 75 किलोमीटर तक बढ़ का बैक वाटर फैला हुआ है। तीनों जिले के लोगों के पास आसपास के गांव में जाने का सबसे अच्छा साधन नाव ही है। इससे समय और पैसों की बचत होती है। सड़क मार्ग से एक से दूसरे गांव की दूरी काफी अधिक है जबकि नाव से वहां मिनटों में पहुंचा जा सकता है। शारदा बताते हैं कि नाव भले ही सुलभ साधन हो पर इससे चलना काफी खतरनाक है। गांव को अधिकतर नाव पुरानी हो चुकी है और हादसे होते ही रहते हैं। हर साल ऐसे हादसों में औसतन 5-6 लोगों की जान चली जाती है। इसी वजह से गांव वाले सभी 162 गांव के लोगों की सुविधा के लिए सरकार की तरफ से स्टीमर सर्विस को मांग कर रहे हैं। मोहगांव के घाट संचालक मुन्ना यादव बताते हैं कि बांध के पानी में हवा की वजह से तरंगे बनती है जिससे छोटी नाव पलटने का डर बना रहता है। गांव वालों के पास बड़े नाव रखने की क्षमता नहीं है।
नहीं पूरी हो रही 25 वर्ष पुरानी मांग
बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ से जुड़े हाकिम पटेल बताते हैं कि गांव के लोग बरगी बांध में आवागमन की सुविधा के लिए फेरी सर्विस , चलित चिकित्सालय एवं मोटर बोट से राशन वितरण आदि योजनाओं को संचालित करने के लिए लगातार 25 वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। साल 1994-95 मे विस्थापितों के पुनर्वास कार्यक्रम की समीक्षा के लिए गठित राज्य ,संभाग, एवं जिला स्तरीय समितियों मे अनेको योजनाएं बनाईं गई लेकिन नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की विस्थापितों के पुनर्वास के प्रति घोर उपेक्षा और अनदेखी पूर्ण रवैया के कारण पुनर्वास कार्यक्रम फाइलों मे अटक कर रह गया है जिसके कारण लगातार नाव से डूबने जैसी घटनाओं को आमंत्रण दिया जा रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार सिन्हा का कहना है कि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण की जिम्मेदारी केवल बांध बनाकर विस्थापितों को सुविधा विहीन कर भूखों मरने के लिए छोड़ देना ही नही है बल्कि आजीविका के संसाधनों के साथ आर्थिक पुनर्वास करने की भी सम्पूर्ण जिम्मेदारी है।