नदी

कुंभ का गंगाजल जांच में निकला गंदाजल  

संगम घाट से लिए गये नमूने में प्रति 100 मिलीलीटर में फीकल कोलीफॉर्म 12,500 मिलियन पाया गया। जबकि तय मात्रा 100 मिलीलीटर में सिर्फ 2500 मिलियन होना चाहिए, अन्यथा पानी नहाने लायक नहीं माना जाएगा।

Banjot Kaur, Vivek Mishra

4 जनवरी से 14 मार्च तक कुंभ के दौरान 24 करोड़ लोगों ने प्रयागराज जाकर गंगा नदी में आस्था की डुबकी लगाई। इसे स्वच्छ कुंभ का नाम दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे आधुनिक भारत में अब तक का सबसे स्वच्छ कुंभ करार दिया था। केंद्र और यूपी ने श्रद्धालुओं के इस महाजुटान के लिए सरकार ने 4,200 करोड़ रुपये खर्च किए। लेकिन एनजीटी की गठित कमेटी की जांच रिपोर्ट और जमीन पर की गई पड़ताल के बाद  गंदगी की जो तस्वीर सामने आ रही है वह स्वच्छता के दावे का हर भ्रम दूर कर देती है। 22 अप्रैल को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भी कुंभ के बाद की स्थिति पर कहा था कि प्रयागराज महामारी के मुहाने खड़ा है और इस समस्या का समाधान आपात स्तर पर होना चाहिए।

ठोस कचरे के निपटारे को लेकर सिर्फ बसवार प्लांट ही प्रदूषण के मानकों का उल्लंघन कर रहा है बल्कि प्रयागराज में ज्यादातर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से गंदा पानी भी गंगा में ही गिराया जा रहा था। एनजीटी की गठित समिति ने सलोरी, नैनी, कोडरा में मौजूद एसटीपी को भी संतोषजनक नहीं पाया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि एसटीपी से ओवरफ्लो होने वाला गंदा पानी सीधे गंगा में गिराया जा रहा था। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस पानी में कुंभ के दौरान श्रद्धालुओं ने पवित्र डुबकी लगाई वह पानी बेहद गंदा था। इतना ही नहीं हाल ही में यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने भी अपने जवाब में कहा है कि यूपी में कहीं भी गंगा का पानी सीधे पीने लायक नहीं है।

सीपीसीबी की गाइडलाइन के मुताबिक मानव मल से पानी में पहुंचने वाले फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा प्रति 100 मिलीलीटर में 2500 मिलियन होना चाहिए। यदि इससे अधिक है तो पानी नहाने लायक नहीं है। संगम घाट पर प्रति 100 मिलीलीटर में फीकल कोलीफॉर्म 12,500 मिलियन पाया गया। इसी तरह से आंकड़ा शास्त्री घाट पर भी मिला। ऐसी दुर्दशा पर एनजीटी ने भी हाल ही में फिर से राज्यों को कड़ी फटकार लगाई है और यूपी समेत अन्य गंगा राज्यों से जवाब दाखिल करने को कहा है।

कुंभ मेले के दौरान दो हजार टन बिना छंटाई का ठोस कचरा निकला। यह सारा कचरा शहर के एकमात्र बसवार गांव स्थित ठोस कचरा प्लांट में डाल दिया गया था। यह भी जानना दिलचस्प है कि प्लांट तक कचरा पहुंचाने वाले यह जानते थे कि प्लांट सितंबर, 2018 से बंद है। पूरा कचरा बिना छंटाई के खुले में ही पड़ा है। एनजीटी का आदेश सेवानिवृत्त जज अरुण टंडन की रिपोर्ट पर आधारित था।

जब डाउन टू अर्थ ने इसकी पड़ताल करने के लिए प्रयागराज के संबंधित बसवार प्लांट पर पहुंचा तो कचरे के उपचार की कलई खुल गई। शहर से दस किलोमीटर दूर एक दीवार के सहारे खड़े कचरे का अंबार लगा हुआ था। नगर निगम के जरिए नियुक्त इस कचरे को प्रबंधित करने की जिम्मेदारी लेने वाली प्राइवेट संस्था हरी-भरी के प्रतिनिधि अनिल कुमार श्रीवास्तव ने डाउन टू अर्थ के प्रतिनिधि को कचरा प्लांट में जाने से रोक दिया। बहरहाल प्लांट के पीछे बड़ी मात्रा में कचरा डाला गया था। यह पूरा कचरा बिना छंटाई और उपचार के एकत्र किया गया था। वहीं, कचरा सीधा यमुना नदी तक पहुंच रहा था। वहां मौजूद एक कर्मचारी ने यह स्वीकार किया कि प्लांट कई  महीनों से काम नहीं कर रहा है। यह सिर्फ तब चलता है जब अधिकारी जांच के लिए आते हैं।

नगर निगम के कमिश्नर उज्जवल कुमार इस बात को सिरे से खारिज करते हैं कि यह प्लांट कभी बंद भी हुआ। बहरहाल अधिकारियों के पत्र इस दावे की पोल खोल देते हैं। एनजीटी की गठित सुपरवाइजरी कमेटी की रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव के एक पत्र का जिक्र है जिसमें प्राइवेट फर्म हरी-भरी से यह पूछा गया है कि आखिर प्लांट ने काम करना क्यों बंद कर दिया? हरी-भरी की तरफ से जवाब में कहा गया है कि जब करार हुआ था तब सिर्फ 400 टन प्रति दिन उपचार की बात हुई थी लेकिन यहां प्रतिदिन 600 टन कचरा लाया जा रहा है। ऐसे में पूरे कचरे का उपचार करना बेहद कठिन है। जबकि एनजीटी ने कहा था कि एक बंद प्लांट पर कचरा गिराना आदेशों का जबरदस्त उल्लंघन है। 

मेला शुरु होने से पहले प्लांट के पास 60 हजार टन कचरा उपचार करने के लिए था। कुंभ के जिलाधिकारी विजय किरण ने कहा कि कचरा निस्तारण न किए जाने के लिए काम काज में लगाई गई निजी संस्था हरी-भरी जिम्मेदार है। उसे इस काम के लिए पैसे दिए गए थे। उन्होंने खारिज किया कि प्लांट पर क्षमता से अधिक कचरा लाया जा रहा था।

इस आरोप-प्रत्यारोप के खेल के बीच बसवार प्लांट और ठकुरीपुरवा, मोहब्बतगंज, बोंगी और सिमता गांव में रहने वाली आबादी के लिए मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। भिनभिनाती मक्खी और मच्छर ने वहां की आबादी को परेशान कर रखा है। ठाकुरीपुरवा की 40 वर्षीय चांदकली ने शिकायत करते हुए कहा कि हम लोग घरों में खाना तक नहीं खा सकते हैं।

बसवार के निवासी विजय कुमार ने कहा कि उनके शरीर में कई जगह चकत्ते पड़े हैं औ्रर पेट में दर्द भी है। उन्होंने बताया कि गंदगी की वजह से कई तरह की बीमारियों को झेल रहे हैं। हमें मानसून के समय का डर है जब बरसात होगी और प्लांट से पूरा कचरा सीधे बहकर घर में घुसेगा। स्वास्थ्य की वजह से स्कूल और कॉलेज पहले से ही बंद हैं।

सिर्फ बसवार प्लांट ही नहीं प्रदूषण के मानकों का उल्लंघन कर रहा है बल्कि प्रयागराज में ज्यादातर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) गंगा में ही गिराए जा रहे हैं। इसके चलते गंगा में नहाने लायक भी स्थिति नहीं है। एनजीटी की गठित समिति ने सलोरी और नैनी, कोडरा में मौजूद एसटीपी को भी संतोषजनक नहीं पाया गया था। एसटीपी से ओवरफ्लो होने वाला गंदा पानी सीधे गंगा में गिर रहा था। इससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिस पानी में कुंभ के दौरान श्रद्धालुओं ने पवित्र डुबकी लगाई वह पानी बेहद गंदा था।