गंगा के प्रमुख राज्यों में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल अब भी गंगा में नालों के डिस्चार्ज को रोकने में असमर्थ हैं। न ही प्रदूषण की रोकथाम के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) परियोजनाओं को ही पूरा किया जा सका है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 2019 और 2020 में अलग-अलग तारीखों पर दिए गए आदेशों में कहा था कि यदि गंगा राज्य इन दोनों कामों को समय से पूरा करने में असमर्थ रहते हैं तो 5 से लेकर 10 लाख रुपए तक का पर्यावरणीय जुर्माना हर महीने लगाया जाएगा। बहरहाल राज्यों की स्थिति रिपोर्ट बताती है कि अब भी बताए गए या तय किए लक्ष्यों पर काम नहीं किया जा सका है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसका आकलन किया है और अपनी रिपोर्ट में एनजीटी को बताया है कि इन चारों राज्यों पर आदेशों का पालन न करने के लिए कुल मिलाकर 193 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना लगाने की सिफारिश की है। एनजीटी इस मामले पर 08 फरवरी, 2021 को सुनवाई करेगा। राज्यों ने एसटीपी परियोजनाओं की देरी और नालों के डिस्चार्ज को न रोक पाने में देरी के लिए राहत की मांग भी की है।
उत्तराखंड की स्थिति
उत्तराखंड में गंगा में सीवेज प्रदूषण रोकने के लिए कुल 87 तय सीवेट ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में 17 नविदा की प्रक्रिया में है और 6 अभी निर्माणाधीन हैं। जबकि कुल 64 एसटीपी काम कर रहे हैं। सीपीसीबी ने एसटीपी की देरी के लिए कुल 4.2 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना निर्धारित किया है। 138 नालों में से 4 ऐसी ड्रेन हैं जिनका कचरा अब भी गंगा में सीधा गिर रहा है। इसके लिए 2.4 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना तय किया है।
उत्तर प्रदेश की स्थिति
उत्तर प्रदेश में गंगा में प्रदूषण रोकने के लिए एसटीपी निर्माण की स्थिति असंतोषजनक है। सीपीसीबी ने कुल 169 एसटीपी में से 102 ही काम कर रहे हैं। जबकि 44 एसटीपी ऐसे हैं जिनका काम जारी है साथ ही 21 एसटीपी ऐसे हैं जो निविदा की प्रक्रिया में हैं। वहीं, 2 एसटीपी बंद हैं। सीपीसीबी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर कुल 26.40 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।
इसी तरह यूपी में गंगा में नालों की निकासी और उन्हें ठीक न करने के लिए 1 नवंबर 2019 से लेकर 31 दिसंबर, 2020 की अवधि तक के लिए कुल 150 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना तय किया है।
बिहार की स्थिति
वहीं, सीपीसीबी ने बिहार के लिए गंगा में नालों का गिरना, एसटीपी के काम न पूरा करने के लिए कुल 42.20 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना निर्धारित किया है।
रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में गंगा में सीवेज की निकासी को रोकने के लिए कुल 52 एसटीपी लगाए जाने हैं। इनमें 33 एसटीपी प्रस्तावित हैं जो निविदा और अन्य मामलों मे फंसे हुए हैं। वहीं, 15 एसटीपी ऐसे हैं जिनका काम पूरा हो जाना चाहिए था लेकिन वे पूरे नहीं हो सके। महज 2 एसटीपी का काम पूरा हुआ है और 2 बंद हैं। एसटीपी में हो रही देरी को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने बिहार के लिए 10 लाख रुपए प्रति महीने की दर से 1 जुलाई, 2020 से 31 दिसंबर, 2020 तक की देरी के लिए कुल पर्यावरणीय जुर्माना 900 लाख रुपये जोड़ा है। वहीं, 1 जनवरी, 2021 से यह प्रस्तावित एसटीपी पर भी जोड़ा जाएगा।
इसके अलावा गंगा में डिस्चार्ज हो रहे नालों के लिए सीपीसीबी ने आदेशों का पालन करने में देरी करने के लिए 1 जुलाई, 2020 से 31 दिसंबर, 2020 तक की अवधि के लिए कुल 3000 लाख रुपए और 1 नवंबर, 2019 से 30 जून, 2020 तक के लिए 320 लाख रुपए पर्यावरणीय जुर्माने का आकलन किया है।
पश्चिम बंगाल की स्थिति
पश्चिम बंगाल में 7 एसटीपी पर छह महीने की देरी के लिए 10 लाख रुपए की दर से कुल 4.2 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना निर्धारित किया है। कुल 61 एसटीपी की स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक महज 18 एसटीपी काम कर रहे हैं। 7 एसटीपी के निर्माण का काम चल रहा है। वहीं, 16 निविदा की प्रक्रिया में हैं। 18 ऐसे एसटपी हैं जिनको फिर से ठीक किया जा रहा है। जबकि कुल 56 नालों का प्रदूषण गंगा में रोकने की स्थिति का आकलन के बाद 5.8 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय जुर्माना तय किया है।