पर्यावरण कार्यकर्ता प्रियांक भारती ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में एक अर्जी दाखिल कर उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में बूढ़ी गंगा नदी के किनारे हो रहे अवैध निर्माणों पर प्रकाश डाला है।
उन्होंने आरोप लगाया है कि नदी तल और बाढ़ क्षेत्र में लगातार अवैध निर्माण हो रहे हैं, जबकि इस बारे में कई बार शिकायत करने के बावजूद जिला प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
गौरतलब है कि एनजीटी ने 17 मार्च, 2025 को दिए आदेश में मेरठ के जिला मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करने के स्पष्ट निर्देश दिया थे कि बूढ़ी गंगा नदी के तल में कोई भी अवैध निर्माण नहीं होना चाहिए। आवेदक का कहना है कि एनजीटी के निर्देशों को पूरी तरह से अनदेखी करते हुए क्षेत्र में अवैध निर्माण आज भी खुलेआम जारी है, और ऐसा लगता है कि जिला प्रशासन को इसकी पूरी जानकारी होने के बावजूद उसने आंखें मूंदी हुई हैं।
अर्जी में यह भी कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन नदी की रक्षा करने में पूरी तरह विफल रहे हैं। खासकर हस्तिनापुर क्षेत्र में यह विफलता और भी स्पष्ट रूप से नजर आ रही है, जो एक 'गंभीर स्तर पर सार्वजनिक विश्वास और कानूनी जिम्मेदारियों की अनदेखी' है।
यमुना घाटों की सफाई पर एमसीडी-डीडीए में तालमेल की कमी
दिल्ली में वजीराबाद से जगतपुर गांव तक, खासकर श्याम घाट और राम घाट के बीच यमुना किनारे दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) हर हफ्ते सफाई का काम कर रहा है। इसके साथ-साथ आसपास के इलाकों से निकलने वाले कचरे को नियंत्रित करने के लिए पुश्ता रोड पर बड़े-बड़े कूड़ेदान भी लगाए गए हैं।
9 जुलाई 2025 को एमसीडी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यमुना किनारे की जमीन दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के अधीन है, इसलिए सफाई की जिम्मेवारी भी डीडीए की बनती है। एमसीडी ने कहा कि वह डीडीए के अनुरोध पर सफाई कर्मचारियों की मदद देने को तैयार है, लेकिन अब तक डीडीए की ओर से कोई अनुरोध नहीं मिला है।
7 जुलाई 2025 को एमसीडी ने डीडीए को एक पत्र लिखकर यमुना नदी और घाटों की संयुक्त सफाई के लिए कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
चिकलठाणा सुविधा से बिना ट्रीटमेंट के बह रहा गंदा पानी, समिति ने ठोका करोड़ों का जुर्माना
महाराष्ट्र के औरंगाबाद स्थित चिकलठाणा ठोस अपशिष्ट प्रबंधन केंद्र पर खुलेआम ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का उल्लंघन हो रहा है। यह खुलासा 2 जुलाई 2025 को संयुक्त समिति ने अपनी रिपोर्ट में किया है। इस समिति में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिला मजिस्ट्रेट और महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रतिनिधि शामिल थे।
संयुक्त समिति ने 5 सितंबर, 2024 को इस साइट का दौरा किया था।
जांच रिपोर्ट में सामने आया कि यहां उत्पन्न होने वाले लीचेट (कचरे से रिसने वाले गंदे तरल) के उपचार के लिए कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है। शुरू से ही इस दूषित जल को बिना किसी ट्रीटमेंट के एक लाइनिंग वाले टैंक में जमा कर धूप में सुखाया जा रहा है। साथ ही, बिना साफ किए लीचेट को आरसीसी पाइपलाइन के जरिए तीन किलोमीटर दूर औरंगाबाद नगर निगम की सीवरेज लाइन में बहाया जा रहा है, जो आगे चलकर जाल्टा के एसटीपी (एसटीपी) में पहुंचता है।
संयुक्त समिति ने पाया कि यह सुविधा साफ किए बिना लीचेट का सीधे सीवरेज नेटवर्क में बहा रही है, जोकि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 का उल्लंघन है।
महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एमपीसीबी) के औरंगाबाद क्षेत्रीय कार्यालय ने इस मामले में एएमसी को कई उल्लंघनों को लेकर नोटिस जारी किया है। इनमें लीचेट ट्रीटमेंट सिस्टम न होना, प्राकृतिक नाले के जरिए सुखना नदी में लीचेट बहाना, लम्बे समय से जमा कचरे का निपटान न करना, सैनीटरी लैंडफिल साइट शुरू न करना और मौजूदा स्वीकृति का नवीनीकरण न कराना शामिल हैं।
समिति ने नियमों के उल्लंघन और अप्रैल 2020 से अब तक पुराने कचरे के निपटान की प्रक्रिया शुरू न करने के चलते पर्यावरणीय को हुए नुकसान का आकलन किया है। इसके आधार पर औरंगाबाद नगर निगम पर 7.42 करोड़ रुपए का पर्यावरणीय हर्जाना तय किया गया है।