प्रदूषण

विद्युत वाहन: लक्ष्य से कोसों दूर है योजना

जीवाश्म ईंधन से होने वाले प्रदूषण को देखते हुए विद्युत वाहनों को विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। विद्युत वाहनों और इसे बढ़ावा देने वाली योजना पर नजर

Bhagirath

देश भर में प्रदूषण के मद्देनजर जीवाश्व ईंधनों के बदले बिजली अथवा बैटरी चालित वाहनों को बढ़ावा देने की मांग जोर पकड़ रही है। इसी मकसद से 2015 में भारी उद्योग मंत्रालय ने नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान 2020 के तहत फास्टर एडोप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (फेम) योजना की शुरुआत की थी।

इस मिशन के तहत 2020 तक 60-70 लाख विद्युत अथवा हाइब्रिड वाहन चलाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया। फेम योजना का मकसद बिजली चालित वाहनों के विकास और बाजार को वित्तीय मदद के जरिए प्रोत्साहित करना है। साथ ही साथ विद्युत वाहनों की मांग का सृजन, पायलट प्रोजेक्ट और बड़े पैमाने पर विद्युत चार्जिंग स्टेशन बनाए जाने हैं। योजना का पहला चरण 2 साल के लिए था। 31 मार्च 2017 को पहला चरण पूरा हो गया। सरकार ने दूसरा चरण शुरू करने की बजाय पहले चरण को ही कई बार आगे बढ़ा दिया गया। अब योजना का पहला चरण 31 मार्च 2019 तक कर दिया गया है।

31 जुलाई 2018 को भारी उद्योग विभाग ने लोकसभा में पूछे गए प्रश्न के जवाब में बताया कि 2015-16 में योजना के लिए 75 करोड़ रुपए, 2016-17 में 144 करोड़ रुपए, 2017-18 में 165 करोड़ रुपए और 2018-19 में 30 जून तक के लिए 260 करोड़ रुपए आवंटित हुए। प्रश्न के जवाब में विभाग ने यह भी बताया कि योजना के दूसरे चरण के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया गया है।

सरकार ने 2020 तक विद्युत वाहनों को चलाने का जो लक्ष्य निर्धारित किया गया है, वह अभी बहुत दूर है। आधे से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी अब तक करीब 2 लाख 58 हजार विद्युत वाहन ही बेचे गए हैं। शेष समय में 60 से 70 हजार विद्युत वाहनों का लक्ष्य असंभव दिखाई देता है। फेम योजना के प्रति सरकार की स्थिति भी असमंजस में जान पड़ती है, शायद इसीलिए योजना का दूसरा चरण अब तक लागू नहीं किया गया है।