हैदराबाद की स्थापना मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने मूसी नदी के तट पर 1591 में की थी। शहर में शासकों द्वारा शानदार तालाब बनवाने की पुरानी परंपरा रही है। हैदराबाद के लिए पानी का पहला स्रोत हुसैनसागर झील थी। हुसैन शाह वली के नाम पर यह झील 1562 में मूसी नदी की एक सहायक नदी पर बनाई गई थी। यह 8 वर्ग किमी. में फैली थी। 1891 में नारायणगुडा में रेत छानने की व्यवस्था की गई और झील का उपयोग पीने का पानी मुहैया कराने के लिए किया जाने लगा। हुसैनसागर का पानी तब हैदराबाद की आबादी के लिए पर्याप्त था।
हैदराबाद में अधिकतर तालाब कुतुब शाह (1564-1724) और उनके उतराधिकारी आसफ जाही (1724-1948) ने बनवाए। आबादी बढ़ी तो 1927 में हिमायतसागर और 1913 में उस्मानसागर झीलें बनाई गईं। इनसे हैदराबाद-सिकंदराबाद शहरों को पानी दिया जाने लगा। ये झीलें 1908 की बाढ़ में शहर के डूबने के बाद बाढ़ रोकने के लिए बनाई गईं। बाद के कुछ वर्षों में और तालाब बने। शहर के बाहरी इलाके में मीर आलम तालाब नवाब मीर आलम ने 1806 में बनवाया था, जो नवाब सिकंदर जाह बहादुर निजाम तृतीय के वजीर थे। इसे दुनिया का पहला कई मेहराबों वाला बांध कहा जाता है। आज इस तालाब से हैदराबाद प्राणी उद्यान को प्रतिदिन 10 लाख गैलन पानी मिलता है।
जल परियोजनाएं
जब 1956 में आंध्र प्रदेश राज्य बना तो दोनों शहरों की बढ़ी मांग पूरी करने के लिए जल आपूर्ति बढ़ाने के लिए परियोजनाएं शुरू की गईं। लेकिन उस्मानसागर और हिमायतसागर साढ़े चार करोड़ गैलन प्रतिदिन की संचय क्षमता 1961 में भी यहां की 2 लाख की आबादी के लिए पर्याप्त थी। आबादी में वृद्धि के मद्देनजर 1965 में गोदावरी की सहायक मंजीरा नदी पर बांध बनाया गया। मंजीरा फेज-1 के नाम से मशहूर परियोजना से दोनों शहरों को 1.5 करोड़ गैलन पानी प्रतिदिन दिया जाने लगा। परियोजना का दूसरा फेज 1972 में पूरा किया गया, जिससे अतिरिक्त 3 करोड़ गैलन पानी मिलने लगा।
1991 तक मंजीरा फेज 1-2 तथा हिमायतसागर और उस्मानसागर की संयुक्त क्षमता 10 करोड़ गैलन प्रतिदिन थी, जबकि दोनों शहरों के लिए 16 करोड़ गैलन प्रतिदिन की मांग थी। मंजीरा बांध से ऊपर सिंगुर के पास मंजीरा पर एक और जलाशय बनाया गया। इससे भारी तबाही हुई।
जलाशय में हर बार पूरा पानी भरने पर 68 गांव डूब जाते हैं। सिंगुर में मंजीरा फेज-3, 1991 में पूरा किया गया। विश्व बैंक के पैसे से फेज-4, 1993 में पूरा किया गया। दोनों को मिलाकर 6 करोड़ गैलन पानी प्रतिदिन मिलता है। सिंगुर से पानी 26 किमी. तक नीचे बहता है, फिर उसे एक पहाड़ी पर पंप से ऊपर चढ़ाकर 18 किमी तक लाया जाता है और फिर यह 25-28 किमी. नीचे बहता है।
हैदराबाद में पानी की आपूर्ति 1993 से ही हर दूसरे दिन की जाती है। 1994 में शहर की आबादी 50 लाख हो गई और पानी की मांग 1961 के साढ़े चार करोड़ गैलन से बढ़कर 1993 में 17 करोड़¸ गैलन प्रतिदिन हो गई। 1961 में तो साढ़े चार करोड़ गैलन पानी उपलब्ध था, मगर आज यह 8.3 करोड़ गैलन प्रतिदिन ही मिल पा रहा है। इसमें से 7.7 करोड़ गैलन पानी मंजीरा के तीन चरणों से मिलता है। जल आपूर्ति विभाग हैदराबाद तक पंप से पानी पहुंचाने पर हर महीने 2 करोड़ रुपए का बिजली बिल भरता है। यद्यपि 1993 में फेज-4 शुरू किया गया है, शहर को जरूरत का आधा पानी प्रतिदिन 8.7 करोड़ गैलन कम ही मिल पाता है।
कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के बीच कृष्णा नदी के जल के बंटवारे के लिए अंतरराज्यीय कृष्णा जल आपूर्ति परियोजना 1989 के बाद से मुश्किल में पड़ गई है। इसके अलावा सरकार की आमदनी प्रशासनिक खर्चों में खत्म हो रही है। सरकार के पास कृष्णा नदी से पानी लाने के लिए पैसा नहीं है, इसलिए वह विश्व बैंक का मुंह ताक रही है। विश्व बैंक जोर दे रहा है कि परियोजना को सक्षम बनाने के लिए पानी की दरें बढ़ाई जाएं। इससे गरीब तबके को भारी मुसीबत होगी। फिर भी सरकार तालाबों और झीलों को सुधारने जैसे विकल्पों के बारे में नहीं सोच रही है। सोसायटी फॉर प्रिजरवेशन ऑफ एनवायरमेंट एंड क्वालिटी ऑफ लाइफ (एसपीईक्यूएल) के केएल व्यास बताते हैं कि राजस्व रिकॉर्डों के मुताबिक शहर के 60 किमी. व्यास के दायरे में 679 जल स्रोत हैं। उनमें 111 झीलें 10 हेक्टेयर से ज्यादा बड़ी हैं। इनकी औसत गहराई 2 मीटर है और कुछ तो 12 मीटर गहरी भी हैं। इसके अनुसार, इनकी कुल क्षमता 1,64,756,000 घन मीटर होती है। यह कृष्णा परियोजना से मिलने वाले पानी से ज्यादा ही होगी। व्यास कहते हैं, “अगर इन सभी जल स्रोतों की पुनर्जीवित किया जाए और उनका उचित नेटवर्क बनाया जाए तो हैदराबाद को अगले 30 वर्षों तक पानी मुहैया करा सकते हैं।” प्रदेश भूजल विभाग के निदेशक टी. नरसिंह राव का कहना है कि हैदराबाद में भूजल का स्तर नीचे जा रहा है, क्योंकि यहां पथरीली जमीन पर है और हर दूसरे घर में नलकूप हैं।
आंध्र प्रदेश अपने भूजल का केवल 30 प्रतिशत ही दोहन करता है, लेकिन कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में उसका अति दोहन हो रहा है। सिंचाई के लिए करीब 30 लाख हेक्टेयर मीटर और घरेलू उपयोग के लिए 6 लाख हेक्टेयर मीटर तय किया गया। दोनों शहरों में करीब 35,000 नलकूप हैं। रेड्डी कहते हैं, “हम इन झीलों को बचाना चाहते हैं, लेकिन हमारे हाथ में अधिकार नहीं है।”
प्रदूषण और अतिक्रमण
तालाबों में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। हैदराबाद शहरी प्राधिकरण ने हुसैनसागर को हाल में पर्यटक स्थल बना दिया है, मगर यहां गंधक की गंध आदि रहती है और काफी गंदगी है। अशोधित घरेलू कचरा और औद्योगिक कचरे के कारण हुसैनसागर का पानी पिछले 20-30 वर्षों में खराब हो रहा है।
सिटिजंस एगेंस्ट पॉल्यूशन (सीएपी) नामक स्वयंसेवी संगठन के संस्थापक पुरुषोत्तम रेड्डी कहते हैं कि हुसैनसागर के जलग्रहण क्षेत्र में 1,000 से ज्यादा उद्योग हैं, जो प्रदूषण फैलाते हैं। इसमें ज्यादातर कचरा दवा उद्योग का जाता है। झील के पुनर्जीवित होने के आसार कम हैं, क्योंकि पानी साल में केवल एक बार बरसात में बहता है और प्रदूषण सालभर होता रहता है। मछलियों के मरने से 200 मछुआरों का जीवनयापन संकट में पड़ गया है क्योंकि वे इस झील पर निर्भर रहे हैं। मछुआरों के संगठन के जी प्रभाकर रेड्डी कहते हैं, “कभी हम रोज 500 किलो मछली पकड़ते थे, मगर आज 50 किलो ही मुश्किल से पकड़ पाते हैं।”
विश्व बैंक परियोजना
कचरे को झील में न गिरने देने और प्रतिदिन तीन करोड़ लीटर घरेलू गंदे पानी की सफाई के लिए संयंत्र लगाने हेतु विश्व बैंक की एक परियोजना लगाई जा रही है। आंध्र प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के योजना प्रमुख जीवी राघव राव कहते हैं, “घरेलू गंदे पानी से झील का स्तर बना हुआ है, इसलिए सारे गंदे पानी को नहीं रोका जा सकत्ता।” व्यास के मुताबिक, झील में बरसाती पानी लाने वाले बड़े नालों से कचरा बहकर आता है।
नेता और जमीन कब्जाने वाले भी इन तालाबों के लिए खतरा बन गए हैं। मसाब तालाब के तल पर कॉलोनी बस गई हैं, तो मीर जुमला पर झुग्गी बस्ती। रामनाथपुर तालाब तल पर रासायनिक कारखाने घातक कचरे का ढेर लगा रहे हैं। और तो और, एक पूर्व मुख्यमंत्री ने तो अपनी पार्टी का मुख्यालय उस्मानसागर झील के तल पर ही बना डाला है।
(“बूंदों की संस्कृति” पुस्तक से साभार)