वैज्ञानिकों ने पाया है कि पृथ्वी पर रहने वाले अब तक के सबसे बड़े जानवर प्लास्टिक के सबसे छोटे कणों को भारी मात्रा में निगलते हैं। यह अध्ययन स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की अगुवाई में किया गया है।
अध्ययन ब्लू, फिन और हंपबैक व्हेल के प्लास्टिक के टुकड़े निगलने पर आधारित है। प्लास्टिक के टुकड़े जो रेत के कुछ कणों के बराबर है जिसे आमतौर पर माइक्रोप्लास्टिक्स कहा जाता है। अध्ययनकर्ताओं ने 2010 से 2019 के बीच समुद्र तट पर पानी के ऊपर और नीचे माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा का पता लगाया और उसे सैकड़ों व्हेल भोजन समझ कर निगल रही थी उनको ट्रैक किया।
उन्होंने पाया कि व्हेल मुख्य रूप से सतह से 50 से 250 मीटर नीचे भोजन करती हैं, एक गहराई जहां खुले समुद्र में माइक्रोप्लास्टिक की अधिकतम मात्रा पाई जाती है। ग्रह का सबसे बड़ा प्राणी - ब्लू व्हेल प्रति दिन लगभग 1 करोड़ प्लास्टिक के टुकड़े निगल लेती है। यह विशेष रूप से क्रिल नामक झींगा जैसे जीवों का शिकार करती है।
सह-अध्ययनकर्ता मैथ्यू सावोका ने कहा वे खाद्य श्रृंखला में जितना समझे जाते हैं उससे कम हैं, जो उन्हें पानी में प्लास्टिक के करीब रखता है। केवल एक कड़ी यह है कि क्रिल प्लास्टिक खाती है और फिर व्हेल क्रिल को खाती है। सावोका, मॉन्टेरी प्रायद्वीप पर स्टैनफोर्ड की समुद्री प्रयोगशाला हॉपकिंस मरीन स्टेशन में शोधकर्ता हैं।
हंपबैक व्हेल मुख्य रूप से मछली जैसे हेरिंग और एंकोवीज- एक तरह की छोटी मछली पर भोजन के लिए निर्भर रहती है। यह हर दिन लगभग 2,00,000 माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े निगलती हैं, जबकि ज्यादातर क्रिल खाने वाले कम से कम 1 करोड़ टुकड़ों को निगलते हैं।
फिन व्हेल, जो क्रिल और मछली दोनों का शिकार करती है, प्रति दिन अनुमानित 30 लाख से 1 करोड़ माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़ों को निगलती है। सावोका ने कहा कि भूमध्य सागर जैसे अधिक प्रदूषित क्षेत्रों में व्हेल के लिए खपत दर और भी अधिक होने के आसार हैं।
अध्ययनकर्ताओं ने लगभग सभी तरह के माइक्रोप्लास्टिक को पाया जिसे व्हेल अपने शिकार के साथ निगलती हैं, न कि समुद्री जल की भारी मात्रा से, जब ये व्हेल क्रिल और छोटी मछलियों के झुंडों को पकड़ने के लिए फुफकारती हैं।
प्रमुख अध्ययनकर्ता शिरेल कहाने ने कहा कि यह एक चिंताजनक खोज है क्योंकि इससे पता चलता है कि व्हेल को पनपने के लिए आवश्यक पोषण नहीं मिल रहा है। कहाने, स्टैनफोर्ड में गोल्डबोजेन लैब में पीएचडी के छात्र हैं।
कहाने ने कहा हमें यह समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है कि क्या माइक्रोप्लास्टिक का उपभोग करने वाले क्रिल कम वसा वाले होते हैं, क्या मछली कम मांसल, कम वसायुक्त हो सकती है, यह सब माइक्रोप्लास्टिक खाने के कारण होता है जिस पर विचार करना जरूरी है। अगर यह सच है, तो इसका मतलब यह होगा कि व्हेल के शिकार करने के लिए उपयोग की गई ऊर्जा, शिकार में उपलब्ध ऊर्जा या कैलोरी से कम हो सकती है। इस सबसे एक विशाल आकार का जानवर बीमार हो सकता है।
कहाने ने कहा यदि अधिकतर हिस्सों में शिकार अधिक है, लेकिन वह पौष्टिक नहीं हैं, तो यह उनके समय की बर्बादी है, क्योंकि उन्होंने कुछ ऐसा खाया है जो एक कचरे के सामान है। यह मैराथन के लिए प्रशिक्षण और केवल जेली बीन्स खाने जैसा है।
शोध आंकड़ों के संग्रह और विश्लेषण के एक दशक से अधिक समय पर होता है जिसके माध्यम से गोल्डबोजेन और उनके सहयोगियों ने सरल लेकिन मूल सवालों के जवाब दिए हैं जैसे कि व्हेल कितना खाती हैं, कैसे खाती हैं, वे इतनी बड़ी क्यों होती हैं और कैसे धीरे-धीरे उनका दिल धड़कता है।
वे कई प्रकार की तकनीकों का उपयोग करते हैं, जिनमें ड्रोन और सेंसर लगे उपकरण शामिल हैं जिन्हें बायोलॉगिंग टैग के रूप में जाना जाता है, जो गोल्डबोजेन की टीम द्वारा जीवों की गतिविधि और शारीरिक आंकड़े एकत्र करने के लिए व्हेल पर लगा दी जाती है।
शोध नौकाओं से, वे इकोसाउंडर्स (गहरे पानी में ध्वनि का पता लगाने वाला उपकरण) भी लगाते हैं, जो ध्वनि तरंगों का उपयोग करके मछली की गहराई और घनत्व का नक्शा बनाते हैं और क्रिल के रहने वाले हिस्सों जहां व्हेल शिकार करती हैं, यह उसके करीब रहते हैं।
अध्ययनकर्ता कहते है कि यह पहली बार है जब समूह में रहने वाली व्हेल के जीवन और जीव विज्ञान के बारे में विस्तृत जानकारी प्लास्टिक प्रदूषण से जुड़ी हुई है। जिसमें एक तेजी से बढ़ती समस्या जो शोर, रासायनिक और जैविक प्रदूषण से खतरों को जोड़ती है। अन्य मानवजनित दबावों के साथ ऐतिहासिक व्हेलिंग से उबरने तथा संघर्ष करने वाली प्रजातियों के लिए, हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि कई तनावों के प्रभावों पर और ध्यान देने की आवश्यकता है।
सावोका ने कहा प्लास्टिक की खपत में व्हेल शायद ही अकेली हैं, जो कि 50 साल पहले समुद्री खाद्य जाल में पहली बार दर्ज की गई थी और अब कम से कम 1,000 प्रजातियों में पाई गई है। व्हेल के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि वे अधिक उपभोग कर सकते हैं।
कहाने ने कहा कि वैज्ञानिक इस बात की जांच करना जारी रखते हैं कि व्हेल द्वारा निगले गए माइक्रोप्लास्टिक का क्या होता है। यह उनके पेट के अस्तर को खरोंच सकता है। इसे रक्त प्रवाह में अवशोषित किया जा सकता है, हम अभी तक नहीं जानते हैं।
गोल्डबोजेन ने कहा कि नए परिणाम व्हेल और अन्य बड़े छान कर खाने वाले जानवरों पर माइक्रोप्लास्टिक्स के संभावित रासायनिक और शारीरिक प्रभावों को समझने की दिशा में एक पहला महत्वपूर्ण कदम हैं।
अगले कदमों में यह जांच करना शामिल है कि कैसे महासागरीय बल माइक्रोप्लास्टिक और शिकार दोनों के अधिकतर हिस्सों को बनाते हैं,और माइक्रोप्लास्टिक न केवल बेलन व्हेल बल्कि आर्थिक और पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण समुद्री प्रजातियों की एक श्रृंखला के लिए प्रमुख शिकार प्रजातियों के पोषण के महत्व को कैसे प्रभावित करते हैं।
गोल्डबोजेन ने कहा ड्रोन, बायोलॉगिंग टैग और इकोसाउंडर्स जैसी नई तकनीकों के उपयोग के माध्यम से बेलन व्हेल और व्हेल पारिस्थितिक तंत्र के बुनियादी जीव विज्ञान के बारे में अधिक समझना हमें स्थिरता और उससे आगे के महत्वपूर्ण चीजों पर शोध करने में सक्षम बनाता है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ है।