प्रदूषण

वैज्ञानिकों ने खोजी नई तकनीक, मानव अंगों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक का लगा सकेंगे पता

वैज्ञानिकों के अनुसार इस तकनीक की मदद से शरीर में मौजूद दर्जनों प्रकार के प्लास्टिक की पहचान की जा सकती है

Lalit Maurya

वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित करने का दावा किया है जिसकी मदद से शरीर के अंगों और ऊतकों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स की पहचान की जा सकती है| गौरतलब है कि माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक के यह कण इतने छोटे होते हैं जिन्हें आंखों से नहीं देखा जा सकता| 

दुनिया भर में शायद ही ऐसी कोई जगह होगी, जहां प्लास्टिक मौजूद न हो| आज जहां इंसान नहीं पहुंचा है, वहां पर भी यह माइक्रोप्लास्टिक पहुंच चुके हैं| आर्कटिक के बर्फीले पहाड़ों से लेकर गहरे समुद्रों तक सब जगह इसकी मौजूदगी के चिन्ह मिले हैं| यह भोजन, पानी और सांस के माध्यम से हमारे शरीर में भी पहुंच रहे हैं| 

इस शोध से जुड़े शोधकर्ता चार्ल्स रोलस्की ने बताया कि कुछ ही वर्षों में प्लास्टिक हमारे लिए वरदान से अभिशाप में बदल चुकी है| इस बात के पुख्ता प्रमाण हैं कि यह हमारे शरीर में भी अपना रास्ता बना चुकी है, इसके बावजूद इस पर बहुत ही कम शोध किये गए हैं| यह हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है या नहीं इस बारे में हमें आज भी ठीक-ठीक नहीं पता|" हालांकि जानवरों पर किये गए शोधों से पता चला है कि यह उनमें बांझपन, सूजन और कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती है| यह शोध 17 अगस्त को अमेरिकन केमिकल सोसाइटी (एसीएस) के फॉल 2020 वर्चुअल मीटिंग एंड एक्सपो में प्रस्तुत किया है|

अध्ययन में क्या कुछ आया सामने 

यह पता लगाने के लिए कि यह माइक्रोप्लास्टिक शरीर के किन अंगो में पहुंच सकता है, शोधकर्ताओं ने फेफड़े, यकृत, प्लीहा और किडनी के 47 नमूने इकट्ठे किये थे| जिनमें प्लास्टिक के पाए जाने की सम्भावना सबसे अधिक थी, क्योंकि यह अंग शरीर के लिए फ़िल्टर का काम करते हैं| वैज्ञानिकों के अनुसार उन्होंने जिन 47 नमूनों का अध्ययन किया था, उन सभी में प्लास्टिक के कण मिले हैं| 

जिन टिश्यू बैंक से यह नमूने लिए गए हैं वहां टिश्यू डोनर्स के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध है जैसे कि उनकी जीवन शैली, भोजन, वो क्या काम करते थे ऐसे में हेल्डन का मानना है कि इसकी मदद से भविष्य में हम यह जान सकते हैं कि किन तरीकों से माइक्रोप्लास्टिक इंसानी शरीर में पहुंचता है|  

शोधकर्ताओं ने नमूनों से प्लास्टिक को निकालने और उसकी जांच के लिए एक अलग प्रक्रिया विकसित की है| जिसमें विश्लेषण के लिए μ-रमन स्पेक्ट्रोमेट्री की मदद ली गई है| साथ ही उन्होंने एक कंप्यूटर प्रोग्राम भी बनाया है, जिसकी मदद से प्लास्टिक कणों के बारे में मिली सूचना का विश्लेषण किया जा सकता है| उनकी योजना इस टूल को सार्वजनिक करने की है जिससे अन्य वैज्ञानिक भी इसकी मदद से माइक्रोप्लास्टिक जांच कर सकें| जिससे एक यूनिवर्सल डेटाबेस तैयार हो सके| इस शोध से जुड़े शोधकर्ता रॉल्फ हेल्डन के अनुसार इस डेटाबेस की मदद से अलग-अलग स्थानों पर मनुष्य के अंगों में मिले माइक्रोप्लास्टिक की तुलना की जा सकेगी| 

वैज्ञानिकों के अनुसार इस तकनीक की मदद से शरीर में मौजूद दर्जनों प्रकार के प्लास्टिक की पहचान की जा सकती है| जिसमें बोतलों के लिए प्रयोग होने वाली पॉलीथीन टेरिफ्थेलैट (पीईटी) से लेकर प्लास्टिक की थैलियों में प्रयुक्त होने वाली पॉलीएथिलीन शामिल है| 

क्या होती है माइक्रो और नैनोप्लास्टिक

जब प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उसे माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। इसके साथ ही कपड़ों और अन्य वस्तुओं के माइक्रोफाइबर के टूटने पर भी माइक्रोप्लास्टिक्स बनते हैं।  प्लास्टिक के 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर के टुकड़े को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है। जबकि नैनोप्लास्टिक, माइक्रोप्लास्टिक से भी छोटे होते हैं जिनका व्यास 0.001 मिमी से भी कम होता है|