लेबनान की राजधानी बेरूत में हुए धमाके में लगभग 137 लोगों के मारे जाने की खबर है। बताया जा रहा है कि यह धमाका पोर्ट पर एक गोदाम में रखे 2750 टन अमोनियम नाइट्रेट की वजह से हुआ, जिसे 2013 में एक पोत से जब्त किया गया था।
सामान्य तौर पर इसका इस्तेमाल नाइट्रोजन के रूप में खेती में उर्वरक के तौर पर होता है, लेकिन इसके साथ-साथ इस रसायन का उपयोग विस्फोटक बनाने में भी किया जाता है। विभिन्न माध्यम में छपी खबरों के मुताबिक, यह अमोनियम नाइट्रेट असुरक्षित तरीके से रखा हुआ था, जिस कारण इतना बड़ा हादसा हुआ।
दरअसल, रासायनिक कचरा दुनिया भर के लिए एक बड़ा खतरा बना हुआ है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। 2019 के अंत में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि भारत के 22 राज्यों में लगभग 329 औद्योगिक साइट हैं, जिनमें खतरनाक रसायन जमा है। इसमें से 124 साइट हैं, जहां क्रोमियम, लेड, मर्करी, हाइड्रोकार्बन टॉल्यूयीन, नाइट्रेट, आर्सेनिक, फ्लोराइड, हैवी मेटल, साइनाइड इनऑर्गेनिक साल्ट, डीडीटी, इंडोसल्फान जैसा खतरनाक कचरा जमा है।
दिलचस्प बात यह है कि लगभग 35 साल पहले भोपाल गैस हादसे के बाद भी भारत में रासायनिक दुर्घटनाओं पर नजर रखने और उनका रिकॉर्ड दुरुस्त रखने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। हालांकि भोपाल हादसे के बाद तकरीबन 35 अधिनियम, नियम और गाइडलाइन तैयार हो चुकी हैं, लेकिन ये सब कारगर साबित नहीं हो पाए हैं।
डाउन टू अर्थ ने इन हादसों को लेकर एक विशेष पड़ताल करती हुई स्टोरी प्रकाशित की थी।
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