प्रदूषण

किस सीफूड में कितना है माइक्रोप्लास्टिक, वैज्ञानिकों ने लगाया पता

Lalit Maurya

समुद्री जीव का मांस (सी-फूड) के मामले में सीप, घोंघों और कौड़ियों में सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है। शोध के अनुसार घोंघों (मोलस्क) में सबसे ज्यादा मात्रा में माइक्रोप्लास्टिक मिला है। जिसमें प्रतिग्राम माइक्रोप्लास्टिक्स के 10.5 टुकड़े मिले है। वहीं क्रसटेशियन जीव (जैसे केकड़ों और झींगा) में प्रति ग्राम माइक्रोप्लास्टिक्स के 0.1 से 8.6 कण मिले हैं जबकि मछलियों में प्रतिग्राम 2.9 कण तक मिले हैं। यह जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ यॉर्क और हल यूनिवर्सिटी द्वारा किए शोध में सामने आई है।

यदि सी-फूड की खपत की बात करें तो हालिया आंकड़ों से पता चला है कि चीन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान और अमेरिका घोंघो और सीप (मोलस्क) के सबसे बड़े उपभोक्ताओं हैं, इनके बाद यूरोप और यूके का नंबर आता है।

शोधकर्ताओं की मानें तो एशिया के तटों से इकठ्ठा किए सीप, घोंघों और कौड़ियों में सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक मिले हैं। जो दिखाता है कि इस क्षेत्र में प्लास्टिक प्रदूषण अन्य क्षेत्रों की तुलना में कहीं ज्यादा है।

जर्नल एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव में छपा यह शोध 2014 से 2020 के बीच छपे 50 से अधिक अध्ययनों के विश्लेषण पर आधारित है। जिनमें वैश्विक स्तर पर मछली और शेलफिश में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण की जांच की गई है। हालांकि सी-फूड में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक स्वास्थ्य पर किस तरह असर डालते हैं यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। वैज्ञानिक अभी भी इसे समझने का प्रयास कर रहे हैं।

इस शोध  शोधकर्ता एवेंजेलोस दानोपोलोस ने बताया कि यह माइक्रोप्लास्टिक्स किस तरह से हमारे शरीर पर असर डालते हैं यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, पर अन्य शोधों से इतना जरूर पता चला है कि यह शरीर के लिए नुकसानदेह हैं। 

क्या होता है माइक्रोप्लास्टिक

जब प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूटकर छोटे कणों में बदल जाते हैं, तो उसे माइक्रोप्लास्टिक कहते हैं। इसके साथ ही कपड़ों और अन्य वस्तुओं के माइक्रोफाइबर के टूटने पर भी माइक्रोप्लास्टिक्स बनते हैं।  गौरतलब है कि प्लास्टिक के 1 माइक्रोमीटर से 5 मिलीमीटर के टुकड़ों को माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है।

हाल के दशकों में प्लास्टिक का उत्पादन तेजी से बढ़ा है, एक अन्य शोध से पता चला है कि हम 1950 से लेकर अब तक 830 करोड़ टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन कर चुके हैं। जिसके 2025 तक दोगुना हो जाने का अनुमान है।

अनुमान है कि आज हम जितना प्लास्टिक उत्पादन कर रहे हैं वो 2060 तक बढ़कर तीन गुना हो जाएगा। तब इसका प्रतिवर्ष उत्पादन बढ़कर 26.5 करोड़ मीट्रिक टन तक पहुंच जाएगा। एक बार जब प्लास्टिक झीलों, नदियों और महासागरों में अपना रास्ता खोज लेता है, तो यह आसानी से माइक्रोप्लास्टिक के रूप में  शेलफिश, मछली और समुद्री स्तनधारियों के अंदर पहुंच जाता है। जब इंसान इन सी-फूड का सेवन करता है तो यह कण उनके शरीर में भी पहुंच जाते हैं।