प्रदूषण

सांस के साथ अंदर जाने वाले प्लास्टिक कण शरीर में कहां पहुंचते हैं, किस तरह की हो सकती हैं समस्याएं?

प्लास्टिक के कणों से मनुष्य में फेफड़ों की बीमारी होने के अधिक आसार होते हैं, जिसमें क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, फाइब्रोसिस, सांस की तकलीफ समेत कई बीमारियां शामिल हैं

Dayanidhi

हाल में किए गए अध्ययनों में मनुष्य और पक्षी दोनों की श्वसन प्रणाली में नैनो और माइक्रोप्लास्टिक कणों की मौजूदगी की पुष्टि हुई है। अब एक नए अध्ययन में इस बात का पता लगाने की कोशिश की गई है कि जब लोग विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक कणों को सांस के साथ अंदर लेते हैं तो क्या होता है और वे शरीर में कहां पहुंचते हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी सिडनी (यूटीएस) की शोध टीम ने सांस लेने की दर के आधार पर अलग-अलग आकार के नैनो और माइक्रोप्लास्टिक कणों के शरीर में पहुंचने और जमा होने का अध्ययन करने के लिए कम्प्यूटेशनल द्रव-कण गतिकी (सीएफपीडी) नामक तकनीक का उपयोग किया है।

एनवायरनमेंटल एडवांसेज नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध  ने मनुष्य के श्वसन तंत्र में उन जगहों का पता लगाया है जहां प्लास्टिक के कण नाक और श्वसन मार्ग से लेकर फेफड़ों तक में जमा हो सकते हैं।

शोध में कहा गया है कि श्वसन प्रक्रिया पर नैनो और माइक्रोप्लास्टिक के प्रभाव के प्रमाण बढ़ रहे हैं। यूटीएस का यह अध्ययन इन खतरों को कम करने के लिए जरूरी जानकारी प्रदान करता है।

शोधकर्ता ने शोध में कहा है कि प्रयोगों से मिले सबूतों से पता चला है कि प्लास्टिक के कणों से मनुष्य में फेफड़ों की बीमारी होने के अधिक आसार होते हैं। जिसमें क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, फाइब्रोसिस, डिस्पेनिया जिसे सांस की तकलीफ कहते हैं, अस्थमा और फ्रॉस्टेड ग्लास नोड्यूल्स का निर्माण होना शामिल है।

हवा में प्लास्टिक कण प्रदूषण अब आम हो गया है और लोगों के सांस द्वारा इसके संपर्क में आने का दूसरा सबसे बड़ा मार्ग है।

कुछ ऐसे पदार्थ है जिनमें जानबूझकर प्लास्टिक का उपयोग किया जाता हैं, जिसमें सौंदर्य प्रसाधन और टूथपेस्ट जैसे बहुत सारे उत्पाद शामिल है।

द्वितीयक कण बड़े प्लास्टिक उत्पादों, जैसे पानी की बोतलें, खाद्य कंटेनर और कपड़ों के नष्ट होने से निकलते हैं।

शोध में सिंथेटिक वस्त्रों को घरों के अंदर (इनडोर) वायुजनित प्लास्टिक कणों के प्रमुख स्रोत के रूप में पहचाना गया है। जबकि बाहरी वातावरण में समुद्र से दूषित एरोसोल से लेकर अपशिष्ट जल उपचार से उत्पन्न होने वाले कणों तक के कई स्रोत मौजूद हैं।

शोध में पाया गया है कि सांस लेने की दर के साथ-साथ कण का आकार और आकृति यह निर्धारित करती है कि श्वसन प्रणाली में प्लास्टिक के कण कहां जमा होंगे।

शोध में कहा गया है कि, तेज गति से सांस लेने की दर से ऊपरी श्वसन मार्ग में जमाव बढ़ गया, विशेष रूप से बड़े माइक्रोप्लास्टिक कण यहां जमा हो गए, जबकि धीमी सांस लेने से छोटे नैनोप्लास्टिक कणों को गहराई तक पैठ और जमाव में मदद मिली।

कण का आकार एक अन्य कारण था, जिसमें गोलाकार माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक की तुलना में बिना गोलाकार माइक्रोप्लास्टिक के कण फेफड़ों में अधिक गहराई तक प्रवेश करते पाए गए, जिससे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

शोध के ये निष्कर्ष नैनो और माइक्रोप्लास्टिक कणों के सांस से जुड़े स्वास्थ्य को होने वाले खतरों के आकलन में सांस लेने की दर और कण के आकार के संबंधी जानकारी को सामने लाते हैं।