प्रदूषण

भारत में वायु प्रदूषण की वजह से बढ़ रही है शिशु मृत्यु दर, कन्या शिशु पर ज्यादा असर

गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण के सूक्ष्म कणों के संपर्क में आने से नवजात बच्चों का वजन सामान्य से कम हो सकता है, जो जन्म के तुरंत बाद उनकी मृत्यु का कारण बन सकता है

Lalit Maurya

भारत में वायु प्रदूषण किस तरह शिशु मृत्यु दर को प्रभावित कर रहा है वैज्ञानिकों ने इसका पता लगाया है। उनके अनुसार गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण के इन सूक्ष्म कणों के संपर्क में आने से जन्म के समय नवजातों का वजन सामान्य से कम हो सकता है, जिसकी वजह से जन्म के तुरंत बाद ही उनकी मृत्यु हो सकती है।

इस बारे में अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं का कहना है कि हवा में मौजूद सूक्ष्म कणों ने भारत में शिशु मृत्यु दर के इजाफे में योगदान दिया है। शोध से पता चला है कि गर्भावस्था के अंतिम चरणों के दौरान अजन्मे बच्चे पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) के बढ़े हुए स्तर के संपर्क में थे।

शोधकर्ताओं के अनुसार प्रदूषण के यह सूक्ष्म कण सांस के जरिए गर्भवती महिलाओं के फेफड़ों में प्रवेश करते हैं, जिससे ऑक्सीडेटिव तनाव पैदा होता है। इतना ही नहीं यह हार्मोन के स्तर को भी प्रभावित करता है जिसका असर भ्रूण के विकास पर पड़ता है। इसकी वजह से जन्म के समय नवजातों का वजन सामान्य से कम हो जाता है। 

यह अध्ययन कोलोराडो विश्वविद्यालय के हार्वर्ड सेंटर फॉर पॉपुलेशन एंड डेवलपमेंट स्टडीज और दिल्ली में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा मिलकर किया गया है। जर्नल साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित इस शोध में देश के 640 जिलों के 250,000 से ज्यादा बच्चों का अध्ययन किया गया है, जिनकी उम्र पांच वर्ष से कम थी। इस शोध में शोधकर्ताओं ने प्रत्येक बच्चे के जन्म के समय वायु प्रदूषण के स्तर के स्तर को जानने के लिए उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों का इस्तेमाल किया है। 

लड़कों की तुलना में नवजात बच्चियों पर अधिक देखा गया वायु प्रदूषण का प्रभाव

शोध से पता चला है कि जिन बच्चों का वजन जन्म के समय कम होता है, जीवन के पहले वर्ष में उनकी मृत्यु की संभावना अधिक होती है। शोध में यह भी सामने आया है कि इन महीन कणों की वजह से लड़कों की तुलना में शिशु बच्चियों की मृत्युदर में कहीं ज्यादा वृद्धि देखी गई थी।

हालांकि यह पहली बार नहीं है जब वायु प्रदूषण और शिशु मृत्युदर के बीच के सम्बन्ध को उजागर किया गया है इससे पहले भी शोधों में इस बात की पुष्टि हो चुकी हैं लेकिन इनमें से कोई भी अध्ययन भारत पर केंद्रित नहीं था। भारत में न केवल शिशु मृत्युदर बल्कि साथ ही वायु प्रदूषण का स्तर भी कहीं ज्यादा है।

इस बारे में जर्नल प्लोस मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध से पता चला है कि वायु प्रदूषण के चलते हर साल दुनिया भर में करीब 59 लाख नवजातों का जन्म समय से पहले ही हो जाता है, जबकि इसके चलते करीब 28 लाख शिशुओं का वजन जन्म के समय सामान्य से कम था। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों पर गौर करें तो हर वर्ष जन्म लेने वाले करीब 2 करोड़ नवजातों का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है। वहीं करीब 1.5 करोड़ बच्चों का जन्म समय पूर्व ही हो जाता है, जोकि उनके स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल रहा है।

इसी तरह जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित एक शोध के हवाले से पता चला है कि वायु प्रदूषकों के संपर्क में आने से गर्भवती महिलाओं में गर्भपात का खतरा करीब 50 फीसदी तक बढ़ जाता है। इस शोध के अनुसार हवा में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर सल्फर डाइऑक्साइड से गर्भपात का खतरा 41 फीसदी तक बढ़ गया था।

विश्लेषण से यह भी पता चला है कि जिन शिशुओं की मृत्यु जन्म के पहले वर्ष में हुई थी उन्हें अन्य शिशुओं की तुलना में कम सुविधाएं प्राप्त थी। साथ ही उन्होंने जीवित रहने वाले शिशुओं की तुलना में वायु प्रदूषण के अधिक जोखिम का सामना किया था। हालांकि शोधकर्ताओं के अनुसार चाहे लड़के हो या लड़की सभी बच्चे उच्च मात्रा में सूक्ष्म कणों के संपर्क में थे। इन सूक्ष्म कणों की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से कहीं ज्यादा थी।

भारत में वायु प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं डब्लूएचओ द्वारा जारी मानक के अनुसार भारत की 130 करोड़ की आबादी दूषित हवा में सांस ले रही है, जो उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है। 2019 में पीएम 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) का औसत स्तर 70.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया था, जोकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा पीएम 2.5 के लिए जारी मानक से सात गुना ज्यादा था।

वहीं शिकागो विश्वविद्यालय के इनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि देश में वायु प्रदूषण का जो स्तर है वो एक आम भारतीय से उसके जीवन के औसतन करीब 5.9 वर्ष छीन रहा है। ऐसे में यह बच्चों, मरीजों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य को कितना प्रभावित कर रहा है उसका अंदाजा आप स्वयं ही लगा सकते हैं। ऐसे में शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत में वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने और शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए तत्काल योजनाएं बनाने की जरुरत है।