प्रदूषण

चेतावनी : पटाखे बना सकते हैं दिल्ली को गैस चैंबर, खतरनाक पीएम 2.5 बढ़ने से बढ़ सकती हैं अतिरिक्त मौतें

यदि आदेशों का उल्लंघन कर पटाखे जलाए गए तो यह न सिर्फ वायु प्रदूषण को घातक स्तर पर पहुंचा सकता है बल्कि कोविड-19 के समय में अतिरिक्त मौतों का कारण भी बन सकता है।

Vivek Mishra

दिल्ली-एनसीआर समेत खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों में यदि कोविड महामारी के दौर वाली 2020 की दीपावली में भी अदालत व अन्य आदेशों का उल्लंघन करते हुए पटाखे दगाए या जलाए जाते हैं तो यह न सिर्फ शहरों को गैस चैंबर में बदल सकता है बल्कि अतिरिक्त मौतों का कारण भी बन सकता है।  

दीपावली में पटाखे जलाए जाने के दौरान कारण यह पाया गया है कि इससे हवा में खतरनाक पार्टिकुलेट मैटर 2.5 में कम से कम 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर बोझ बढ़ जाता है। जबकि वायु प्रदूषण में बढ़ोत्तरी बच्चे -बुजुर्ग और कमजोर लोगों के लिए भयंकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करने वाला हो सकता है। यही वजह है कि जीबीडी, 2017 के आंकड़ों के विश्लेषण में डाउन टू अर्थ ने बताया था कि हर तीन मिनट में पांच वर्ष से कम उम्र के एक बच्चे की मौत वायु प्रदूषण जनित निचले फेफड़ों के संक्रमण से हो रही है।   

ऐसे में इस वक्त दिल्ली और अन्य शहरों में पटाखों का अतिरिक्त प्रदूषण आम लोगों के लिए एक बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है क्योंकि कई अस्पताल अब भी कोविड-19 को लेकर सीमित दायरे में काम कर रहे हैं और कई जगहों पर आईसीयू जैसे इमरजेंसी बेडों की किल्लत भी है।  

यह सर्वविदित और निर्विवाद है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अक्तूबर से जनवरी के बीच वायु गुणवत्ता में प्रदूषण अक्सर गंभीर और आपात स्तर या उसके आस-पास पहुंच जाती है। वहीं, दीपावली पर्व के दिन पटाखों का जलना वायु गुणवत्ता को बर्बाद करने में उत्प्रेरक का काम करता है।

वहीं, हवा में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 10 का सामान्य मानक 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम 2.5 का सामान्य मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। जबकि 2019 की दीवाली के दिनों में दिल्ली में वायु गुणवत्ता में यह सर्वाधिक छह गुना, फिर बंग्लुरू में 2.2 गुना, कलकत्ता में 1.4 गुना, लखनऊ में 1.1 गुना अधिक बढ़ गया था।  

कई तरह के प्रदूषक हवा में मौजूद होते हैं, मसलन कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ), नाइट्रिक ऑक्साइड (एनओ), नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड (एनओटू), ओजोन (ओथ्री) आदि। इनमें सबसे खतरनाक बेहद महीन विविक्त कण (पार्टिकुलेट मैटर) 2.5 है जो कि हवा में तैरती हुई तरल बूंदकणों और ठोस स्वरूप का मिश्रण है। इसका व्यास (डायामीटर) 2.5 माइक्रोमीटर से भी कम होता है, जो कि बिना यंत्र आंखों से दिखाई नहीं दे सकता।

पीएम 2.5 सभी तरह के कंबस्टन, मोटर वाहन और पावर प्लांट और औद्योगिक गतिविधियों से पैदा होता है। हालांकि कुछ पटाखों से भी यह बहुत अधिक मात्रा में उत्सर्जित होता है। 

पीएम 2.5  प्रदूषक को सेहत के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है जो कि श्वसन तंत्र को गहराई तक प्रभावित कर सकता है। स्वास्थ्य पर इसका दुष्प्रभाव तात्कालिक रूप में भी दिखाई या महसूस हो सकता है मसलन, आंख, नाक, गला और फेफड़ों में असहजता, कफ, नाक बहना और सांसों का फूलना हो सकते हैं। इसके अलावा दीर्घ अवधि तक इसके जद मेंं रहने वालों लोगों को गंभीर श्वसन तंत्र की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं। यह अस्थमा और दिल की बीमारियों का भी कारक बन सकता है। इसे यूनिट के हिसाब से पीएम 2.5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर कहते हैं। 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 09 नवंबर, 2020 को कोविड-19 और पटाखों के कारण और ज्यादा खराब होने वाली वायु गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए दिल्ली-एनसीआर समेत खराब वायु गुणवत्ता वाले शहरों में पटाखों की बिक्री और इस्तेमाल पर रोक लगाने का आदेश भी दिया है। 

हाल ही में इंडियन चेस्ट सोसाइटी, लंग इंडिया ने शोध में बताया है कि छह ऐसे पटाखे हैं जो स्थानीय प्रदूषण तो करते ही हैं बल्कि उनसे पीएम 2.5 का इतना ज्यादा उत्सर्जन होता है कि वो आपके परिवार में बच्चों को मृत्यु तक या उसकी दहलीज पर भी पहुंचा सकते हैं। शोध के मुताबिक :

  1. नाग गोली (स्नेक बार) देखने में जितनी छोटी है उतनी ही घातक है। इससे सबसे कम समय में सबसे ज्यादा पीएम 2.5 का उत्सर्जन होता है।  इससे 3 मिनट में 64,500 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पीएम 2.5 का उत्सर्जन होता है जो कि 464 सिगरेट के बराबर नुकसान देह है।
  2. इसी तरह 1000 बार दगने वाली चटाई (गारलैंड) से  6 मिनट में 38,540 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पीएम 2.5 कणों का उत्सर्जन होता है जो कि 277 सिगरेट के बराबर नुकसान देह है। 
  3. वहीं, फुलझड़ी (पुलपुल) से  3 मिनट में 28,950 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर 2.5 कणों का उत्सर्जन होता है जो कि 208 सिगरेट के बराबर नुकसानदेह है। 
  4. छुरछुरिया (स्पार्कलर्स) के जरिए 2 मिनट में 10,390 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर 2.5 कणों का उत्सर्जन होता है जो कि  74 सिगरेट के बराबर नुकसानदेह है। 
  5. इसके अलावा चकरी (ग्राउंड स्पिनर्स) से 5 मिनट में 9,490 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर 2.5 कणों का उत्सर्जन होता है जो कि 68 सिगरेट के बराबर नुकसानदेह है। 
  6. सबकी पसंदीदा अनार (फ्लॉवर पॉट) से  3 मिनट में 4,860 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर 2.5 कणों का उत्सर्जन होता है जो कि 34 सिगरेट के बराबर नुकसानदेह है। 

पटाखों के इस खतरनाक उत्सर्जन का विज्ञान हमें आगाह करता है लेकिन कोविड-19 में यह और भी ज्यादा सचेत करने वाला है। क्योंकि केंद्रीय पृथ्वी मंत्रालय के अधीन सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फोरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) ने 12 नवंबर, 2020 को जारी विश्लेषण बताता है कि 2016 से लेकर 2020 तक दिल्ली की वायु गुणवत्ता का स्तर दीपावली के पांच दिन पहले से दीवाली के पांच दिन बाद तक बहुत खराब स्तर से गंभीर स्तर वाले प्रदूषण के बीच झूलती रहती है।

वहीं, गौर करने लायक है कि दीवाली के अगले ही दिन वायु गुणवत्ता स्तर बेहद गंभीर या जिसे हम आपात स्तर कहते हैं उसे छूने लगती है। वायु गुणवत्ता सूचकांक 500 से 700 तक के लेवल को भी पार करने लगता है। खासतौर से 2016 और 2018 में दीवाली के अगले दो रोज बेहद दमघोंटू रहे हैं। वहीं, 2017 और 2019 में हवा गंभीर स्तर पर पहुंची जरूर लेकिन वह इन दो वर्षों के मुकाबले काफी कम रही है। इस वर्ष सफर का अनुमान है कि दिल्ली का एक्यूआई दीवाली के दिन बढ़कर 300 से 400 के स्तर के बीच बना रह सकता है। 

हालांकि सफर ने अपनी चेतावनी में स्पष्ट किया है कि यदि स्थानीय स्तर पर थोड़ा भी उत्सर्जन होता है तो वह दीवाली के अगले दो दिन यानी 14 और 15 नवंबर को वायु गुणवत्ता को काफी खराब स्तर पर पहुंचा सकता है। 

यूएसए की यूनिवर्सिटी ऑफ मिनेसोटा के अर्थशास्त्र विभाग के धनंजय घई और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस की रेणुका साने ने वर्ष 2013-2017 के बीच प्रत्येक दीवाली के दिन वायु गुणवत्ता के जुटाए गए आंकड़ों का विश्लेषण किया और अपने शोध में पाया कि दीवाली में पटाखे वायु प्रदूषण के आंकड़ों को बढाने में काफी बड़ी भूमिका निभाते हैं।

दिल्ली के विविध स्थानों पर वायु गुणवत्ता आंकड़ों में पटाखे जलाए जाने की अवधि के दौरान हुए परिवर्तन को रिकॉर्ड कर और उसका विश्लेषण करते हुए इस शोध के निष्कर्ष में बताया गया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ठंड के महीनों में वायु प्रदूषण बेहद घातक स्तर पर देखा गया है। खासतौर से दीवाली के अगले दो दिन बेहद खराब होते हैं। स्थान और महीने के हिसाब से भी वायु प्रदूषण में परिवर्तन होता है। मसलन कुछ दीवाली अक्तूबर में रही तो कुछ नवंबर महीने में रही। इसके अलग-अलग असर रहे। वहीं दीवाली के दौरान पटाखे जलाए जाने के कारण वायु गुणवत्ता को और खराब हुई और हवा में पीएम 2.5 के कणों में करीब 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।

दीपावली के दिन वायु प्रदूषण में पीएम 2.5 का यह अतिरिक्त बोझ काफी चिंताजनक है क्योंकि एक पुराना अनुमान बताता है कि पीएम 2.5 से थोड़ा कम खतरनाक कण पीएम 10 के बढ़ने से ही अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं।

मिसाल के तौर पर वायु प्रदूषण और डेली मोर्टेलिटी को लेकर हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट ने 2010 में पाया था कि चीन में दो दिन के औसत पीएम 10 के स्तर में  10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोत्तरी के कारण 0.26 फीसदी मृत्युदर में बढोत्तरी हुई।

वहीं, 2017 में हावर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ ने  शोध में बताया कि एक गर्मी में यदि पीएम 2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढोत्तरी होती है तो इतने स्तर से ही प्रतिदिन मृत्युदर में एक फीसदी की बढोत्तरी हो जाती है। और इस छोटी अवधि में ही 65 वर्षीय आयु वाले लोगों के ऊपर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।

कोविड-19 और वायु प्रदूषण के गठजोड़ से होने वाली मौत के संबंध में पूरी दुनियाभर में अलग-अलग शोध हो रहे हैं। हाल ही में कोविड-19 और वायु प्रदूषण के मामले में एनजीटी में नियुक्त न्याय मित्र राज पांजवानी ने कहा कि भारत में भी कोविड-19 के इस दौर में वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों की हिस्सेदारी कम से कम 15 फीसदी होगी। यूरोपियन सोसाइटी ऑफ कार्डियोलॉजी के एक शोध का हवाला देते हुए उन्होंने कहा था कि पीएम 2.5 और सार्स कोविड-2 वायरस दोनों ही फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। 

पटाखों के कारण वायु प्रदूषकों के बढ़ने और उसके कारण होने वाले मौतों के बिंदुओं का यह जोड़ धीरे-धीरे साफ हो रहा है।

इसके बावजूद शहरों में छिट-पुट पटाखे दागे जा रहे हैं। खासतौर से दिल्ली और एनसीआर के शहरों की वायु गुणवत्ता जब बहुत खराब और आपात स्तर के बीच झूल रही है, यदि अदालती आदेशों का पालन नहीं होता है और पटाखे दगाए जाते हैं तो न सिर्फ वायु गुणवत्ता और अधिक खराब स्तर पर पहुंच सकती है बल्कि अतिरिक्त मौतें बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकती हैं। और इस खतरे के दायरे में सबसे ज्यादा बच्चे और बुजुर्ग ही नहीं बल्कि कोविड से ग्रसित यानी कमजोर इम्यूनिटी वाले मरीज भी हो सकते हैं। 

अतिरिक्त मौतों से अलग हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जीबीडी, 2017 के आंकड़ों के मुताबिक देश के हर एक घंटे में पांच वर्ष से कम उम्र वाले 21.17 बच्चे निचले फेफड़े के संक्रमण (एलआरआई) के कारण दम तोड़ रहे हैं।  इसमें राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार के बच्चे सबसे बड़े भुक्तभोगी हैं। देश में अब तक के उपलब्ध विस्तृत आंकड़ों के मुताबिक 2017 में 5 वर्ष से कम उम्र वाले 1,035,882.01 बच्चों की मौत विभिन्न रोगों और कारकों से हुई। इनमें 17.9 फीसदी यानी 185,428.53 बच्चे निचले फेफड़ों के संक्रमण के कारण असमय ही मृत्यु की आगोश में चले गए।