7 मई की सुबह एलजी पोलिमर्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के प्लांट में स्टाइरीन के रिसाव को लेकर दिल्ली की थिंकटैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने एक समीक्षा रिपोर्ट तैयार की है। सीएसई ने 7 मई को दोपहर बाद 3.30 बजे जारी की गई पहली समीक्षा रिपोर्ट में इस दुर्घटना के लिए कंपनी की लापरवाही को जिम्मेवार माना है क्योंकि कंपनी ने सुरक्षा नियमों का पालन नहीं किया।
कितना जहरीला है स्टाइरीन?
स्टाइरीन एक जैविक यौगिक है, जिसका इस्तेमाल पोलिमर/प्लास्टिक/रेजिन बनाने में किया जाता है। पेट्रोकेमिकल रिफाइरीज में इसका उत्पादन होता है। इसमें ऐसे तत्व होते हैं, जो कैंसर का कारण बन सकते हैं। वायुमंडल में अगर ये रसायन फैल जाए, तो ऑक्सीजन के साथ मिलकर स्टाइरीन डाईऑक्साइड बन जाता है, जो बेहद खतरनाक होता है।
मैन्युफैक्चर, स्टोरेज एंड इम्पोर्ट ऑफ हैजार्डस केमिकल्स रूल्स 1989 में इस रसायन को जहरीला और खतरनाक की श्रेणी में रखा गया है।
लोग अगर बहुत थोड़े समय के लिए इस रसायन के संपर्क में आते हैं, तो वे श्लेष्मा झिल्ली, आंखों में जलन और पेट व आंत से संबंधित समस्याओं की चपेट में आ सकते हैं। अगर लंबे समय तक इसके संपर्क में आए, तो ये केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर असर डाल सकता है, जिससे सिर दर्द, कमजोरी, थकावट, डिप्रेशन, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में निष्क्रियता, सुनने की शिकायत, परिधीय न्यूरोपैथी जैसे शिकायतें हो सकती है। अगर मानव शरीर में स्टाइरीन की मात्रा 800 पीपीएम पहुंच जाए, तो आदमी कोमा में जा सकता है।
एक व्यक्ति पर इस रसायन का कितना प्रभाव पड़ता है, ये इस बात पर निर्भर करेगा कि वह कितने वक्त तक इसके संपर्क में रहता है। अब तक हमारे पास जो जानकारी आई है, उसके मुताबिक स्टाइरीन भंडारण टैंक और फीडिंग लाइन से करीब 3 टन गैस लीक हुआ है। ऐसे में अब ये जानने की जरूरत है कि कितनी आबादी तक इसका फैलाव हुआ है। ऑस्ट्रेलिया के न्यूकैसल यूनिवर्सिटी के ग्लोबल सेंटर फॉर एनवायरमेंट रेमेडिएशन (जीसीईआर) व सीआरसी फॉर कॉन्टैमिनेशन असेसमेंट एंड रेमेडिएशन ऑफ द एनवायरमेंट के प्रोफेसर थावा पलानीसामी कहते हैं, "स्टाइरीन रसायन हफ्तों तक हवा में मौजूद रह सकता है। यह काफी प्रतिक्रियाशील (रिएक्टिव) होता है और ऑक्सीजन के साथ मिलकर स्टाइरीन डाईऑक्साइड बन जाता है, जो ज्यादा खतरनाक है। वायुमंडल में अन्य प्रदूषक तत्वों की मौजूदगी से प्रतिक्रियाशीलता प्रभावित हो सकती है। रिसाव की वजह पर तात्कालिक प्रतिक्रिया ये है कि पूरी तरह से भरे हुए रिएक्टर का संचालन इस तरह की आपदा का कारण बन सकता है।”
कैसे हुआ ये हादसा?
प्लांट में एक्सपेंडेबल प्लास्टिक के उत्पादन में स्टाइरीन मोनोमर का इस्तेमाल हो रहा था। 17 डिग्री सेंटीग्रेट से कम तापमान वाली जगह पर इस रसायन का भंडारण किया जाना चाहिए। कोविड महामारी के चलते प्लांट आंशिक तौर पर बंद था, हालांकि पूर्व निर्धारित शिड्यूल के अनुसार रखरखाव चल रहा था। जिस तापमान में रसायन को रखना चाहिए था, उस तापमान में नहीं रखे जाने के कारण समस्या शुरू हुई। इसकी वजह से भंडारण चेंबर पर दबाव बनने लगा और वॉल्व टूट गया, जिससे गैस लीक हो गई। स्टाइरीन को जिस कंटेनर में स्टोर किया गया था, वो पुराना था और उसका नियमित रखरखाव नहीं होता था। रखरखाव नहीं होने के कारण आसपास के इलाकों में 3 टन रसायन फैल गया।
दूसरी तरफ खतरनाक जैविक यौगिक (वीओसी) डिटेक्शन सिस्टम भी निष्क्रिय था, हालांकि स्टाइरीन के रिसाव की शिनाख्त के लिए जो तकनीक स्थापित की गई थी, उसकी निगरानी का कोई तंत्र नहीं था। प्लांट लगभग 600 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें आवासीय क्षेत्र (कंपनी की तरफ से 2018 में दिए गए टर्म ऑफ रेफरेंस के मुताबिक आवासीय क्षेत्र 231 एकड़ में है) भी शामिल है। इस रिसाव का प्रभाव 2 किलोमीटर से 3 किलोमीटर में फैलने का अनुमान है।
प्लांट रेवेन्यू गांव और आवासीय क्षेत्रों से घिरा हुआ है, जिससे इसके रिसाव से जानमाल के ज्यादा नुकसान का खतरा है। अभी तक मृत्यु का कोई आधिकारिक आंकड़ा सामने नहीं आया है, लेकिन कम से 10 लोगों के मरने की जानकारी मिली हैं। इनमें बच्चे ज्यादा हैं।
अभी इस हादसे से प्रभावित लोगों का सबसे माकूल इलाज ये है कि उन्हें ऑक्सीजन दिया जाए। आसपास के लोगों को तुरंत वहां से निकालकर सुरक्षित जगह पहुंचाने की जरूरत है क्योंकि दीर्घावधि में ये रसायन लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। चूंकि ये रसायन ऑक्सीजन के साथ मिलकर स्टाइरीन डाईऑक्साइड बनाता है, ऐसे में कुछ समय तक हवा प्रदूषित रह सकती है। अलबत्ता, समुद्री क्षेत्र से बहने वाली हवाएं इस गैस को तितर-बितर करने में मददगार हो सकती हैं।
फैक्टरी में मौजूदा समय में रोजाना 415 टन का उत्पादन होता है। कंपनी ने उत्पादन क्षमता में 250 टन (प्रतिदिन) की बढ़ोतरी करने के लिए साल 2018 में पर्यावरण, वन, व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को 168 करोड़ का प्रस्ताव दिया था। हम समझते हैं कि हाल ही में इस प्रस्ताव को मंजूरी मिली है।
प्लांट्स में खतरनाक रसायनों के भंडारण के क्या दिशानिर्देश हैं?
भोपाल गैस त्रासदी ( https://www.downtoearth.org.in/tag/bhopal-gas-disaster) के बाद पर्यावरण (सुरक्षा) एक्ट 1986 से लेकर पब्लिक लायब्लिटी इंश्योरेंस एक्ट 1991 तक कई कानून लाए गए। मैन्युफैक्चर, स्टोरेज एंड इम्पोर्ट ऑफ हैजार्डस केमिकल रूल्स 1989 में स्टाइरीन को खतरनाक और जहरीला रसायन की श्रेणी में रखा गया है।
पर्यावरण (सुरक्षा) एक्ट 1986 |
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यह संग्रहात्मक एक्ट है। ये केंद्र सरकार को पर्यावरण की सुरक्षा के उपाय करने का अधिकार देता है। |
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पर्यावरण (सुरक्षा) रूल्स 1986 |
गुणवत्तापूर्ण जीवन और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए डिस्चार्ज व उत्पाद का मानक – प्रदूषण को रोकने के लिए मानक लाए; उत्पादित सामान के लिए उत्पाद का स्टैंडर्ड व आसपास के परिवेश की हवा व पानी का मानक तय किया जाए। |
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खतरनाक वर्ज्य पदार्थ (मैनेजमेंट हैंडलिंग व ट्रांसबाउंड्री मूवमेंट) रूल्स 1989 |
उद्योग को दुर्घटना के खतरों की शिनाख्त कर बचाव के उपाय अपनाना चाहिए और सक्षम अथॉरिटी को रिपोर्ट देनी चाहिए। |
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मैन्युफैक्चर, स्टोरेज एंड इम्पोर्ट ऑफ हैजार्डस केमिकल्स रूल्स 1989 |
आयातक को चाहिए कि वह उत्पाद की सुरक्षा से जूड़ी तमाम सूचनाएं उचित अथॉरिटी को उपलब्ध कराए और संशोधित कानून के नियमों को मानते हुए आयातित रसायनों का यातायात कराए। |
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रासायनिक हादसा (इमरजेंसी, योजना, तैयारी और कार्रवाई) रूल्स 1996 |
रासायनिक दुर्घटनाओं के प्रबंधन के लिए केंद्र सरकार को केंद्रीय संकट समूह तैयार करना चाहिए; त्वरित कार्रवाई तंत्र की स्थापना करनी चाहिए जिसे संकट अलर्ट सिस्टम कहा जाता है। हर राज्य को संकट समूह तैयार कर अपने काम की जानकारी देनी चाहिए। |
फैक्टरी संशोधन एक्ट 1987 |
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खतरनाक इकाइयों की स्थापना के नियम का प्रावधान; वर्करों व आसपास रहने वाले लोगों की सुरक्षा व मौके पर ही इमरजेंसी प्लान व आपदा को नियंत्रित करने के उपायों को अनिवार्य करना। |
पब्लिक लायब्लिटी इंश्योरेंस एक्ट 1991 |
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खतरनाक पदार्थ के मालिक पर बिना किसी दोष के देयता लागू करता है और किसी भी तरह की लापरवाही या नियमों का उल्लंघन हुआ है या नहीं, इससे परे होकर मालिकों को दुर्घटना के पीड़ितों को क्षतिपूर्ति देनी पड़ती है। इसके लिए, मालिक को किसी दुर्घटना से संभावित देयता को कवर करते हुए एक बीमा पॉलिसी लेने की आवश्यकता होती है। |
क्या कंपनी नियमों का पालन नहीं किया?
खतरनाक रसायन के भंडारण को लेकर पर्यावरण सुरक्षा एक्ट 1986 में स्पष्ट नियम हैं। जिस यूनिट में रिसाव हुआ है, वह आईएसओ प्रमाणित है, जिसका मतलब है कि वह सभी प्रोटोकॉल मानता है। हालांकि, ऐसा लगता है कि प्लांट को तुरंत खोलने की जल्दबाजी में प्लांट प्रबंधन ने दोबारा खोलने से पहले रखरखाव की व्यवस्था की अनदेखी की है। इसके साथ ही गैस के भंडारण की पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी, जितने तापमान पर इस रसायन का भंडारण होना चाहिए, उसका भी खयाल नहीं रखा गया। खराब व्यवस्था के चलते ये हादसा हुआ होगा।
खतरे और भी हैं
विशाखापट्टनम में हुई त्रासदी ने हमें बताया है कि हम बारूद के ढेर पर खड़े हैं क्योंकि जैसे ही लॉकडाउन खत्म होगा, कल-कारखानों में उत्पादन शुरू हो जाएगा। अतः सभी यूनिटों को अविलम्ब ये निर्देश देना चाहिए कि वे उत्पादन गतिविधियां शुरू करने से पहले सभी तरह के सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करें। अगर लॉकडाउन जारी रहता भी है, तो इन सुरक्षा उपायों की अनदेखी नहीं होनी चाहिए।