प्रदूषण

दिल्ली में इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से वायु गुणवत्ता में होगा सुधार: अध्ययन

दिल्ली शहर के सवारी ढोने वाली कारों के बेड़े को इलेक्ट्रिक कारों में बदलने से इनसे निकलने वाली नाइट्रिक ऑक्साइड का लगभग 180 मीट्रिक टन और कण उत्सर्जन में 0.14 मीट्रिक टन की सालाना कटौती होगी।

Dayanidhi

बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (बीईवी) शहरी वायु गुणवत्ता में सुधार में अहम भूमिका निभा सकते हैं। विशेष रूप से मध्यम आय वाले देश, जिनके शहर सबसे प्रदूषित और सबसे तेजी से बढ़ते शहरों में शुमार हो रहे हैं। इलेक्ट्रिक वाहनों या इलेक्ट्रिक कारों में सवारी करना डीजल और सीएनजी से चलने वाले वाहनों की तुलना में बहुत सस्ते होंगे। पर्यावरण की दृष्टि से भी इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से वायु गुणवत्ता में भारी सुधार होगा।

विकासशील देशों में ईंधन जलाने वाली कारों को इलेक्ट्रिक कारों में किस तरह बदला जाए, क्या-क्या बाधाएं  सामने आ सकती हैं  इनकी पहचानने करने की  जरूरत है। इसी क्रम में इलेक्ट्रिक कारों को लेकर भारत की रजधानी दिल्ली में एक अध्ययन किया गया।

दिल्ली, दुनिया के सबसे प्रदूषित और घनी आबादी वाले शहरों में से एक। यहां रहने वाले 3.1 करोड़ लोगों के लिए ईंधन जलाने वाली कारों के उपयोग को बैटरी से चलने वाली इलेक्ट्रिक कारों में बदलने से हवा की गुणवत्ता में काफी सुधार हो सकता है। यह नया अध्ययन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स (यूसीएलए) के नेतृत्व में किया गया है। इसके अलावा, शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के बदलावों से कम समय में अधिक आर्थिक लाभ होगा।

भारत में जहां केवल 3.5 फीसदी लोग निजी कारों, टैक्सियों के मालिक हैं। वहीं भारत में चलने वाली ओला, उबर जैसी ऐप-आधारित सवारी ले जाने वाली कारें प्रदूषण के प्रमुख स्रोत बन गए हैं। ये वाहन हर साल इनसे निकलने वाले नाइट्रिक ऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों और कणों के एक बड़े हिस्से के लिए जिम्मेदार हैं।

अध्ययन में इन सवारियों को ढोने वाले इन वाहनों को इलेक्ट्रिक कारों में बदलने के लिए एक व्यापक ढांचा प्रस्तुत करता है। सवारी की मांग के आधार पर 23,000 इलेक्ट्रिक वाहन और 3,000 50-किलोवाट कारों को चार्ज करने के नेटवर्क नई दिल्ली की संपूर्ण जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त होंगे।

अध्ययन में कहा गया है कि वाहनों और बुनियादी ढांचे में अग्रिम निवेश की दो साल से भी कम समय में भरपाई हो जाएगी, मुख्य रूप से ईंधन व्यय पर बचत करने आदि से। अध्ययनर्ताओं के मुताबिक बदलाव करने में लगने वाली लागत के बारे में बताते हैं, जिसमें चार्जिंग स्टेशनों के लिए भूमि का मूल्य भी शामिल है। सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद और प्रति किलोमीटर ईंधन की कीमत के लिए दी गई सब्सिडी भी इसमें शामिल है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि सामान्यतया इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग के माध्यम से वायु प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से अधिकांश प्रयासों में निजी घरेलू उपयोग वाली कारों पर ध्यान दिया है। जबकि सवारी वाहनों का विद्युतीकरण या बैटरी वाहनों में बदलना अधिक लागत प्रभावी दृष्टिकोण है। क्योंकि ये वाहन तीन से चार गुना अधिक हैं। भारत में ऐसे वाहनों का उपयोग औसत निजी स्वामित्व वाले वाहन से कहीं अधिक होता है।

यूसीएलए इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी के सहायक प्रोफेसर, प्रमुख अध्ययनकर्ता दीपक राजगोपाल ने कहा कि बचत बहुत तेजी से आती है क्योंकि वे बहुत अधिक गाड़ी चला रहे हैं और बहुत अधिक ईंधन जला रहे हैं।

शोधकर्ताओं ने नई दिल्ली में दो साल की वाहनों के सवारी ढोने या राइड-शेयर ट्रिप के आंकड़ों का विश्लेषण किया। जिसमें पिकअप, ड्रॉप-ऑफ और वेटिंग का समय भी शामिल हैं। इसमें 1.5 करोड़ किलोमीटर की यात्रा के आंकड़े शामिल हैं। आंकड़े ओला और  उबर से लिया गया है, जो शहर में सभी सवारी ढोने या राइड-शेयर सेवा का लगभग आधा हिस्सा हैं।

उन्होंने पाया कि शहर के पूरे राइड-शेयर बेड़े को इलेक्ट्रिक कारों में बदलने से इनसे निकलने वाली (टेलपाइप) नाइट्रिक ऑक्साइड उत्सर्जन का लगभग 180 मीट्रिक टन और 0.14 मीट्रिक टन कण उत्सर्जन में सालाना कटौती करेगा। जिस शहर में वायु प्रदूषण भारी मात्रा में व्याप्त है और वायु गुणवत्ता सूचकांक कभी-कभी 400 से 500 से ऊपर चला जाता है, यह वहां स्वस्थ लोगों के लिए भी खतरा पैदा करता है। ये दो प्रदूषक सबसे बड़े खतरों में से हैं, जो सांस के  संक्रमण का कारण और अस्थमा को जन्म देते हैं। 

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि शहर के प्रदूषण की एक बड़ी मात्रा को कम करने के अलावा, यहां औद्योगिक निर्माण और घरों को गर्म करने के लिए ईंधन जलाने जैसे स्रोत भी शामिल हैं। दिल्ली में कारों को इलेक्ट्रिक कारों में बदलने से बिजली निर्माण में कोयले के अधिक हिस्सेदारी के बावजूद ग्रीनहाउस गैस तीव्रता को काफी कम कर देगा।

राजगोपाल ने जोर देकर कहा कि शोधकर्ताओं द्वारा विकसित सवारी ढोने वाली कारों को इलेक्ट्रिक कारों में बदलने की रूपरेखा दिल्ली से बाहर भी लागू किया जा सकता है। इसका उपयोग अन्य शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक योजनाकारों और बेड़े संचालकों द्वारा किया जा सकता है।

उन्होंने कहा व्यावसायिक वाहनों  के बेड़े के लिए शून्य-उत्सर्जन लक्ष्य न केवल यथार्थवादी हैं, बल्कि दुनिया भर के प्रदूषित शहरों के लिए आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से सही हैं। ये निष्कर्ष दूसरों को इस तरह के बदलाव पर विचार करने में मदद कर सकते हैं, बुनियादी ढांचे की जरूरतों, निजी और सार्वजनिक लागतों और लाभों और इलेक्ट्रिक कारों में बदलने के साथ आने वाली वायु गुणवत्ता में सुधार को अच्छी तरह से समझते हैं। यह अध्ययन जर्नल ट्रांसपोर्टेशन रिसर्च पार्ट डी: ट्रांसपोर्ट एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित किया गया है।